कुपोषण, एनीमिया, बाल विवाह और ट्रैफिकिंग के आंकड़ों से झांकती हैं झारखंड के बच्चों की दर्दनाक तस्वीरें

Update: 2022-11-14 09:57 GMT

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रांची (आईएएनएस)| कैसे हो बच्चों.. क्या हाल है? आज बाल दिवस के बहाने ऐसे किसी सवाल के साथ अगर हम-आप झारखंड के बच्चों का हाल टटोलने की कोशिश करें तो इनके जवाब में सामने आने वाले तथ्य बेहद मायूस करने वाले हैं। कुपोषण, एनीमिया, बाल विवाह और ट्रैफिकिंग से जुड़े आंकड़ों में आपको झारखंड के बच्चों की दर्दनाक तस्वीरें झांकती मिलेंगी।
झारखंड की गिनती उन राज्यों में होती है, जहां से सबसे ज्यादा बच्चों की तस्करी होती है। पिछले आठ सितंबर को झारखंड राज्य बाल संरक्षण समिति (जेएससीपीएस) की ओर से रांची में आयोजित एक कार्यशाला में बाल अधिकार पर काम करने वाली एक संस्था की ओर से पेश किए आंकड़े के मुताबिक, 2019 से अब तक झारखंड के कुल 996 बच्चों को तस्करों से मुक्त कराया गया है। इनमें से 126 बच्चे तो 10 साल से कम उम्र के थे और 359 बच्चे 11 से लेकर 14 साल के थे। पुलिस के आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में जनवरी 2017 से अक्टूबर 2021 तक 2727 बच्चे लापता हुए। इनमें 1114 लड़के और 1613 लड़कियां हैं। इनमें से 943 लड़के और 1412 लड़कियों को झारखंड पुलिस ने बरामद करने में सफलता पाई थी।
सेहत के मामले में भी राज्य के बच्चों का हाल बेहद बुरा है। कुछ महीने पहले आए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में अभी भी 39.4 प्रतिशत बच्चे (पांच वर्ष तक के) आयु के अनुसार कम वजन के हैं। इस आयु वर्ग के 22.4 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु के अनुसार लंबाई में नाटे हैं। वजन के पैमाने पर 9.1 फीसदी बच्चों की स्थिति बेहद गंभीर मानी गई है। यह एक तरह से गंभीर कुपोषण है, जिसका उपचार आवश्यक है। कुपोषण की अधिक समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में है। राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की वर्ष 2020-21 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में छह महीने से लेकर 59 महीने (यानी पांच वर्ष से कम) तक की आयु वर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया यानी खून की कमी से होने वाली के शिकार हैं।
झारखंड सरकार ने तीन महीने पहले कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ 1000 दिनों का समर यानी स्ट्रैटेजिक एक्शन फार एलिवेशन आफ माल न्यूट्रिशन एंड एनीमिया रिडक्शन महाअभियान शुरू किया है। फिलहाल यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पांच जिलों लातेहार, पश्चिम सिंहभूम, चतरा, सिमडेगा और साहिबगंज में चलाया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य पर्याप्त और पौष्टिक भोजन प्राप्त करनेवाले बच्चों की संख्या में वृद्धि करना तथा गर्भावस्था के दौरान मातृ-शिशु मृत्यु और मातृ व बाल स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं को कम करना है। जो बच्चा अत्यंत कुपोषित पाया जायेगा, उसे तत्काल उपचार केंद्रों में पहुंचाया जाएगा। कुपोषण और एनीमिया पीड़ित महिलाओं-बच्चों के ब्योरे एक एप में डाले जाएंगे तथा उनकी मानिटरिंग की जाएगी।
झारखंड में बच्चों को कम उम्र में ब्याह देने की समस्या भी कुछ कम गंभीर नहीं। रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया द्वारा जारी डेमोग्राफिक सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में झारखंड में सबसे अधिक बालिकाओं की शादी कम उम्र में होती है। यहां अभी भी 5.8 प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में हो जाती है, जबकि पूरे देश में ऐसी बालिकाओं का प्रतिशत 1.9 है। राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की वर्ष 2020-21 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 32.2 फीसदी मामले बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं। यानी यहां हर दस में से तीन लड़की बालपन में ब्याह दी जा रही है। एनएफएचएस की इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में बाल विवाह के मामले में झारखंड का तीसरा स्थान है। चिंताजनक तथ्य यह भी है कि राज्य में बाल विवाह की ऊंची दर के बावजूद पुलिस में इसकी शिकायतें बहुत कम पहुंचती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में साल 2019 में तीन, साल 2020 में तीन और साल 2021 में बाल विवाह के चार मामले दर्ज किए गए। जाहिर है कि 99 फीसदी से ज्यादा बाल विवाह के मामलों की रिपोर्ट पुलिस-प्रशासन में नहीं पहुंच पाती।
झारखंड राज्य बाल संरक्षण समिति (जेएससीपीएस) की निदेशक राजेश्वरी बी का कहना है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बच्चों की बेहतरी के लिए कई नीतियां बनाई गई हैं। सरकार की इन नीतियों को धरातल पर उतारने की दिशा में लगातार प्रयास चल रहे हैं।
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