जल्द इतिहास के पन्नों में दर्ज रह जायेगी 'राजस्व पुलिस'
संगीन अपराधों के दौरान अपराधियों की धरपकड़ में राजस्व पुलिस कमजोर साबित हो रही है।
देहरादून (आईएएनएस)| प्रदेश के विभिन्न जनपदों में होने वाले संगीन अपराधों के दौरान अपराधियों की धरपकड़ में राजस्व पुलिस कमजोर साबित हो रही है। यही कारण है कि प्रदेश के ग्रामीणों क्षेत्रों से लगातार राजस्व क्षेत्र से इस 'गांधी पुलिस' के अधिकार लगातार छिनते जा रहे हैं। वहीं, अब नए साल 2023 से 01 हजार 800 राजस्व गांव रेगुलर पुलिस के हाथों सौंपे जाने की कवायद शुरू हो चुकी है।
जी हाँ, उत्तराखंड के 1800 राजस्व गांवों में कानून व्यवस्था अब रेगुलर पुलिस संभालेगी। सरकार ने राजस्व पुलिस की व्यवस्था को समाप्त कर इन गांवों को रेगुलर पुलिस के अधीन करने के लिए अधिसूचित कर दिया है। पहले चरण में 52 थाने और 19 पुलिस चौकियों का सीमा विस्तार किया जाएगा।
उत्तराखंड में राजस्व पुलिस (गांधी पुलिस) का इतिहास:-
ज्ञात रहे कि उत्तराखंड में राजस्व पुलिस का इतिहास काफी पुराना है। बताया जाता है कि यहां ब्रिटिश शासनकाल के दौरान से ही राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू है। प्रदेश के 60 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व पुलिसिंग व्यवस्था के जरिए लोगों को सुरक्षा दी जाती है। आम जन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है। हालांकि, अब मौजूदा सरकार इस डेढ़ दशक से पुरानी व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है।
उत्तराखंड प्रदेश में राजस्व पुलिस की व्यवस्था की शुरूआत साल 1861 में हुई थी। जिसके तहत पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी और मंडलायुक्त तक को राजस्व कार्यों के साथ ही पुलिस के कार्यों की जिम्मेदारी निभानी होती थी। इस व्यवस्था में एक बड़ा रोल पटवारी का रहता है। जिसके पास अपराधियों से टक्कर लेने के लिए आधुनिक हथियार नहीं, महज एक डंडा रहता है। भारतीय कानून के अनुसार अस्त्र-शस्त्र केवल रेगुलर पुलिस को धारण करने का अधिकार है। राजस्व पुलिस को यह सुविधा नहीं मिलती। जिस कारण इस पुलिस को उत्तराखंड में 'गांधी पुलिस' के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
वर्तमान में 07 हजार 500 गांव में राजस्व पुलिसिंग:-
आपको बता दें कि, राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 7500 गांव ऐसे हैं, जहां पर कानून व्यवस्था का जिम्मा राजस्व पुलिस के पास है। लेकिन अब वर्षों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त कर सरकार इन गांवों को रेगुलर पुलिस के अधीन लाने जा रही है। सरकार का मानना है कि इन गांवों में नियमित पुलिस व्यवस्था होने से अपराध व असामाजिक गतिविधियों में कमी आएगी।
दूसरे चरण में 6 नए थाने व 20 पुलिस चौकियों का गठन किया जाएगा। इसके तहत नए थाने व चौकियों का गठन कर लगभग 1444 राजस्व ग्राम नियमित पुलिस व्यवस्था के अधीन करने की प्रकिया जल्द पूरी की जाएगी। विशेष सचिव रिद्धिम अग्रवाल ने इसकी पुष्टि की है।
इन गांवों को किया है नियमित पुलिस के लिए अधिसूचित:-
सरकार की ओर से नियमित पुलिस व्यवस्था के लिए अधिसूचित राजस्व गांवों में देहरादून जिले के 4, उत्तरकाशी के 182, चमोली के 262, टिहरी के 157, पौड़ी के 148, रुद्रप्रयाग के 63, नैनीताल के 39, अल्मोड़ा के 231, पिथौरागढ़ के 595, बागेश्वर के 106, चंपावत के 13 गांव शामिल हैं।
न्यायालय ने भी जारी किया है आदेश:-
नैनीताल हाई कोर्ट ने साल 2018 में एक जनहित याचिका की सुनवाई की। जिसमें राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करने का आदेश दिया गया था। हाई कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि पूरे प्रदेश में सिविल पुलिसिंग को लागू किया जाये। हालांकि इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है। खास बात यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाई कोर्ट के आदेश पर न तो रोक लगाई गई औ ना ही सरकार को किसी किस्म के दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। अतएव यह कहा जा सकता है कि फिलहाल हाई कोर्ट का आदेश ही लागू होगा।
अंकिता हत्याकांड बना मुख्य वजह:-
राजस्व पुलिस के अधिकार समाप्त करने के पीछे मुख्य कारण अंकिता हत्याकांड भी माना जा रहा है। ज्ञात रहे कि इस हत्याकांड के बाद प्रदेश में राजस्व पुलिस के खिलाफ माहौल तैयार हुआ था। राजस्व पुलिस इस मामले को सुलझाने व हत्यारोपियों की गिरफ्तारी करने में नाकाम साबित हुई। तब मामला रेगुलर पुलिस के पास चला गया था।