Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 को लेकर सामने आई चौंकाने वाली बात

चंद्रयान-3 ने बीते साल 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कर इतिहास रच दिया था।

Update: 2024-06-06 05:38 GMT
नई दिल्ली: ऐतिहासिक चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट पर काम करने वाले एक वैज्ञानिक ने ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की मौजूदा स्थिति पर बात की है। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने तीन वजहों पर चर्चा की, जिसके चलते स्पेस एजेंसी अभी आत्मनिर्भर नहीं हो सकी है। चंद्रयान-3 ने बीते साल 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कर इतिहास रच दिया था।
बिजनेस टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन में काम करने वाले एयरोस्पेस साइंटिस्ट पार्थ तिवारी का कहना है कि अब तक इसरो आत्मनिर्भर नहीं हुआ है। उन्होंने इसकी तीन वजहें भी बताईं हैं। इनमें एडवांस्ड टेक्नोलॉजी तक सीमित पहुंच, रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए पर्याप्त फंडिंग नहीं मिलना और नियामक के काम में आने वाली बाधाएं शामिल हैं।
टेक टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा, 'इन चुनौतियों से पार पाने के लिए हमें बहुआयामी कोशिशें करनी होंगी। इनमें एयरोस्पेस रिसर्च में निवेश बढ़ाना, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां, नियामक प्रक्रियाओं को आसान करना और प्राइवेट सेक्टर की भूमिका को बढ़ाना शामिल है। उदाहरण के लिए इसरो स्वदेशी तकनीक विकसित करने में कई वेंडर और स्टार्टअप की मदद कर रहा है।'
उन्होंने कहा, 'हाल के समय में प्रगति तेजी से हुई है और हम अगले दशक में एक सफल एयरोस्पेस इंडस्ट्री को देखेंगे।' फंड को लेकर उन्होंने कहा, 'भारत का स्पेस प्रोग्राम हमारे वार्षिक बजट का सिर्फ 0.25 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है, जिसका 10 फीसदी से भी कम चंद्रयान और मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) जैसे साइंटिफिक मिशन के लिए जाता है।'
वेबसाइट से बातचीत में तिवारी ने जानकारी दी, 'हमारे अधिकांश संसाधन कम्युनिकेशन और अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट्स के लिए काम करते हैं। ये सैन्य, जनसंचार, मौसम का पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन, संसाधनों पर निगरानी, योजना बनाने और शासन जैसी सेवाएं देते हैं।' उन्होंने बताया कि चंद्रयान जैसे मिशन लाखों युवाओं को साइंस और टेक्नोलॉजी के प्रति आकर्षित करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, तिवारी यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में चंद्रयान-3 मिशन की स्ट्रक्चर्स डिजाइन टीम का हिस्सा थे। उनका कई कामों में एक यह सुनिश्चित करना था कि लॉन्च और लैंडिंग के समय स्पेसक्राफ्ट यांत्रिकी वातावरण का सामना कर सके। वह साल 2017 में इसरो का हिस्सा बने थे।
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