'चयनित' राज्यपाल को चुनी हुई सरकार को धमकाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं: मुख्यमंत्री भगवंत मान
चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शनिवार को कहा कि एक 'चयनित' राज्यपाल को निर्वाचित प्रतिनिधियों को धमकाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने शनिवार को कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने की राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित की 'धमकी' पंजाब के 3.5 करोड़ लोगों का अपमान है। पंजाबियों ने देश को खाद्यान्न उत्पादन में सरप्लस बनाने के अलावा, देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अभूतपूर्व बलिदान दिया।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह ऐसी धमकियों के आगे झुकने वाले नहीं हैं। राज्य और इसके लोगों के हितों से कोई समझौता नहीं करेंगे। मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि राज्यपाल जानते हैं कि उन्होंने यह पत्र किसके दबाव में लिखा है, जिन्होंने उन पंजाबियों को अपमानित किया है, जिन लोगों ने भारी जनादेश के साथ अपनी सरकार चुनी थी। मान ने कहा कि 'चयनित' राज्यपाल को जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों को धमकाने या लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल ने संविधान का अपमान किया है। ऐसे नखरों से इसके मुख्य वास्तुकार बीआर अंबेडकर का भी अपमान हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान के अनुसार लोगों को अपनी पसंद की सरकार चुनने का पूरा अधिकार है। लेकिन, राज्यपाल दिल्ली, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों के कामकाज में बाधाएं पैदा करने के लिए केंद्र सरकार की कठपुतली के रूप में काम कर रहे हैं।
मान ने कहा कि वह राज्यपाल को स्पष्ट करना चाहते हैं कि राज्यपाल ने अनुच्छेद 356 के तहत पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी दी है। लेकिन, हम इससे नहीं डरते हैं। देश में अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग से सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब को हुआ है। मुख्यमंत्री ने निराशा व्यक्त की कि पंजाब ने पिछली केंद्र सरकारों की मनमानी कार्रवाइयों और दुर्व्यवहार का भारी खामियाजा भुगता है। एक बार फिर केंद्र की मौजूदा सरकार राज्यपाल के माध्यम से राज्य के लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि सच्चाई में राज्यपाल सत्ता हथियाने की साजिश कर रहे हैं और इसीलिए वह एक चुनी हुई सरकार को हटाने की धमकियां दे रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल को पिछले दरवाजे से सत्ता हासिल करने की कोशिश करने के बजाय राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने की चुनौती भी दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वह राज्यपाल के पत्राचार का लगातार जवाब दे रहे हैं और 16 में से नौ पत्रों का जवाब दे चुके हैं। शेष पत्रों के जवाब शीघ्र ही भेजे जाएंगे। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि राज्यपाल चुनी हुई सरकार पर असंवैधानिक तरीके से अनुचित दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मान ने कहा कि उनकी सरकार ने पिछले डेढ़ साल में विधानसभा में छह विधेयक पारित किए हैं। लेकिन, राज्यपाल ने अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे विधेयक लंबित हैं।
अनसुलझे मुद्दों पर राज्यपाल की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास निधि (आरडीएफ) और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) आवंटन के करोड़ों रुपये रोक रखे हैं। फिर भी राज्यपाल इन अहम मामलों पर चुप हैं।
उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार ने पंजाब के किसानों की चिंताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया है। यह और भी चिंताजनक है कि राज्यपाल ने पंजाब के वास्तविक मुद्दों को उजागर करते हुए केंद्र को एक भी पत्र नहीं लिखा है। पंजाब यूनिवर्सिटी से संबंधित एक बैठक के संबंध में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यपाल ने लगातार हरियाणा का पक्ष लिया, जो पंजाबियों के प्रति वफादारी की कमी को दर्शाता है।
वहीं, चंडीगढ़ के प्रशासक के तौर पर राज्यपाल ने पंजाब को छह महीने के लिए इस पद से वंचित करने के साथ ही यूटी में तैनात पंजाब कैडर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को रातों-रात हटा दिया। उन्होंने यह भी कहा कि पड़ोसी राज्य हरियाणा के राज्यपाल नूंह जिले में सांप्रदायिक हिंसा के कारण हुए जान-माल के बड़े नुकसान पर चुप रहे। अत्यधिक संवेदनशील मणिपुर में भी, राज्य के राज्यपाल ने शायद ही कोई ध्यान दिया।
दूसरी तरफ पंजाब के राज्यपाल बार-बार राज्य सरकार के रोजमर्रा के मामलों में अपनी नाक घुसा रहे हैं और अब 'बेशर्मी' से सरकार को गिराने की धमकी दे रहे हैं। मान ने कहा कि उनकी सरकार लोगों के हितों की रक्षा के लिए लगातार प्रयास कर रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि जहां राज्य सरकार युवाओं को मुफ्त बिजली, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवा और रोजगार प्रदान करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रही है। वहीं, उस राज्य के राज्यपाल इसे अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं।”
राज्य के बाढ़ प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के मुद्दे को उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने केंद्र से बार-बार राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) से 9,660 करोड़ रुपये जारी करने के मानदंडों में ढील देने का आग्रह किया है ताकि पंजाब के लोगों को बहुत जरूरी राहत मिल सके।
अफसोस है कि केंद्र सरकार ने अभी तक सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। राज्यपाल को भी इस गंभीर मामले पर केंद्र से बात करनी चाहिए।