Sewing. शिलाई. पांवटा-हाटकोटी-लालढांग राष्ट्रीय उच्च मार्ग-707 पर असमय जगह-जगह हो रहे भू-स्खलन क्षेत्र के लोगों के लिए आने वाले समय में मानव निर्मित आपदा बनती जा रही है। सरकारी कागजों में तो इस उच्च मार्ग को ग्रीन कॉरिडोर नाम दिया गया है, लेकिन जब से इस मार्ग का कार्य आरंभ हुआ है करीब इस 95 किलोमीटर मार्ग पर जैसे हरियाली पर ग्रहण लग गया है। पांच फेज के इस निर्माण में निर्माता कंपनियों ने सभी नियमों को ताक पर रखकर कोई कसर नहीं छोड़ी है। निर्माण में हुई अनियमितताओं के लिए जितनी जिम्मेवार निर्माता कंपनियां हैं उतनी जिम्मेदारी प्रशासन की अनदेखी है। ऐसा नहीं है कि मामले की शिकायत नहीं हुई, लेकिन यहां के भोले व सीधे लोगों की शिकायत न कंपनी प्रबंधक ने सुनी और न ही प्रशासन ने गौर किया।
पांवटा से फेडीज पुल तक आरओडब्ल्यू से बाहर 100 से ज्यादा प्राकृतिक जल स्त्रोत बावडिय़ां, चार दर्जन लोगों के निजी खेत व घासनियां, सिंचाई कूहलें, मकान, पशुशालाएं, हजारों दुर्लभ प्रजाति व ईमारती लकडिय़ों के निजी व आरक्षित वन भूमि के पेड़-पौधे, कई निजी मकानों में दरारें तथा क्षेत्र का शिला गांव में दरारें आई हैं। इसके अतिरिक्त निर्माता कंपनियों ने क्षेत्र के 80 बरसाती नालों में निर्माण का मलबा डालकर बरसाती नालों के रास्ते रोक दिए हैं जो आने वाले समय में भारी बरसात में क्षेत्र के लोगों के लिए मानव निर्मित आपदा तैयार हो जाएगी। अवैज्ञानिक ढंग से कंपन करने वाली मशीनों व बारूदी धमाकों से हिली पहाडिय़ों में गत वर्ष बरसात के मौसम में 46 स्थानों पर भारी भू-स्खलन हुआ और करीब 36 अलग-अलग दिन यह मार्ग बंद रहा। हैरानी की बात यह है कि कंपनी की डिप कटिंग से गिरे मलबे को कंपनी ने आज भी नहीं उठाया है। अधिकारियों व प्रशासन से ऊंची पहुंच होने की वजह से कंपनी ने उसे आपदा कहकर प्रदेश सरकार से मुआवजे की मांग की थी। सरकार ने कंपनियों को कितना मुआवजा दिया यह तो बता पाना मुश्किल है, लेकिन कंपनियां गत वर्ष अपनी गलती छिपाने के लिए मुआवजे की मांग करती रही। क्षेत्र के एक समाजसेवी द्वारा शासन-प्रशासन से कई मर्तबा शिकायत करने पर जब कार्रवाई नहीं हुई तो उस समाजसेवी ने थक हार कर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल दिल्ली में मामला दर्ज किया।