SC ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए निचली अदालत का फैसला किया बहाल, कह दी बड़ी बात
जानें पूरा मामला.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल पहले हुए एक हत्याकांड में आरोपी पिता-पुत्र को बरी कर दिया है. अदालत ने अपने फैसले में काफी अहम टिप्पणियां की हैं और कहा अदालतों को ये ध्यान रखना चाहिए कि मामले में एक और एंगल होने की संभावनाएं ही किसी को बरी न करने की वजह नहीं हो सकती है. इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने स्थापित सिद्धांत को अनदेखा किया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एम ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने न्याय के स्थापित सिद्धांत की अनदेखी करते हुए निचली अदालत के आरोपियों को बरी करने का फैसला पलटा है, जबकि अपीलीय अदालत केवल इस आधार पर आरोपी को बरी करने के आदेश को पलट नहीं सकती कि उस मामले में एक और दृष्टिकोण या एक और थ्योरी भी संभव है. जिस आधार पर जांच नहीं हुई है.
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि अपीलीय अदालत जब तक बरी करने के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाती उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. उस त्रुटि का जिक्र और न्याय सम्मत होने के हवाले भी देने आवश्यक है.
पीठ की ओर से सर्वसम्मति से फैसला लिखने वाले जस्टिस ओक ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि बरी किए जाने के खिलाफ अपील पर फैसला करते समय अपीलीय अदालत को सबूतों की फिर से पड़ताल करनी होती है. इस परिप्रेक्ष्य में अपीलीय अदालत को यह भी देखना चाहिए कि निचली अदालत का फैसला मौजूद सबूतों के आधार पर उचित है या नहीं. ऐसा लगता है कि इस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को इस कसौटी पर नहीं परखा.
बता दें कि गुजरात में 1996 में हुई एक हत्या मामले में निचली अदालत ने आरोपी पिता-पुत्र को बरी कर दिया था. वो फैसला हाईकोर्ट ने पलट दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए निचली अदालत का फैसला ही बहाल कर दिया है.