पटना: बिहार में स्नातक पाठ्यक्रम की समयावधि को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने सामने आ गई है। दरअसल, शिक्षा विभाग ने राज्य के विश्वविद्यालयों में स्नातक के चार वर्षीय पाठ्यक्रम को शुरू किए जाने के आदेश पर पुनर्विचार करने का आग्रह कुलाधिपति सह राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से को है। विभाग का कहना है कि विश्वविद्यालय में सत्र काफी विलंब से चल रहे हैं, आगे उसे दुरुस्त करना है। इसके लिए राज्य सरकार कई कदम उठा रही है।
इधर, इस मुद्दे को लेकर भाजपा अब राज्यपाल के साथ खड़ी हो गई। भाजपा के सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिहार के विश्वविद्यालयों में यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार 4 वर्ष के डिग्री कोर्स को सिमेस्टर सिस्टम के साथ लागू करने की कुलाधिपति की पहल में राज्य सरकार बेवजह अड़ंगेबाजी कर रही है। मोदी ने कहा कि 4 वर्षीय डिग्री कोर्स लागू करने के लिए राज्यपाल विगत कुछ महीनों के दौरान कुलपतियों के साथ आधा दर्जन से अधिक बैठकें कर तैयारी की और तत्संबंधी आर्डिनेंस एंड स्टैट्यूट्स को स्वीकृति देने का निर्णय किया।
उन्होंने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति ने नया पाठ्यक्रम और सिमेस्टर प्रणाली लागू करने का विरोध नहीं किया, बल्कि अधिकतर विश्वविद्यालयों की अकादमिक काउंसिल ने इस प्रस्ताव को पारित भी कर दिया। पटना विश्वविद्यालय में 4 वर्षीय डिग्री कोर्स के लिए एडमिशन प्रोसेस शुरू हो चुका है।
मोदी ने कहा कि इस विषय में कुलाधिपति के 15 मई के पत्र के महीने भर बाद शिक्षा विभाग के नये प्रधान सचिव ने राजभवन को पत्र लिख कर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर नये शैक्षणिक सत्र से पहले भ्रम की स्थिति पैदा कर दी।
इधर, सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि च्वॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) के तहत राजभवन द्वारा चार वर्षीय स्नातक कोर्स लागू करने की प्रक्रिया पर पूरी तरह से रोक लगाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार द्वारा इस पर व्यक्त की गई असहमति सराहनीय है। उन्होंने राज्य सरकार इसे संपूर्णता में खारिज करने का प्रस्ताव लेने की अपील की। उन्होंने आगे कहा कि चार वर्षीय स्नातक कोर्स नई शिक्षा नीति 2020 पर आधारित है। यह पूरी नीति ही शिक्षा के निजीकरण और दलित-वंचित व गरीब तबके को शिक्षा से बाहर कर देने की एक गहरी साजिश है। उन्होंने कहा राज्यपाल केंद्र सरकार के एजेंडे को आनन-फानन में लागू करने पर तुले हुए हैं। इसके लागू हो जाने से फीस में लगभग दोगुनी बढ़ोतरी होगी, जिसकी मार अभिभावकों पर पड़ेगी। उन्होंने कहा कि बिहार के विश्वविद्यालय पहले से ही आधारभूत संरचनाओं की कमी की मार झेल रहे हैं। सत्र भारी अनियमितता का शिकार है। इसे ठीक करने की बजाए चार वर्षीय स्नातक कोर्स लादा जा रहा है जो स्थिति को और जटिल व गंभीर बनाएगा।