कोविड वैक्सीन की तरह रेमडेसिविर पर नहीं रखी जा सकी नजर, जानें ये है वजह
अस्पताल भी कहीं से भी इसकी व्यवस्था करने का अल्टीमेटम थमा रहे हैं।
भले ही देश के बड़े डाक्टर कोरोना मरीजों की जान बचाने में रेमडेसिविर की सीमित उपयोगिता को बार-बार दोहरा चुके हों लेकिन जिंदगी की आखिरी लौ बचाने की चाहत, कोरोना पीडि़त के परिवार वालों को इसकी खोज में भटकने पर मजबूर कर रही है। समस्या यह है कि रेमडेसिविर के सीमित उपयोग और सिर्फ अस्पतालों में इसकी सप्लाई करने की गाइडलाइंस के बावजूद रेमडेसिविर न सिर्फ कालाबाजार में धड़ल्ले से बिक रहा है, बल्कि अस्पताल भी कहीं से भी इसकी व्यवस्था करने का अल्टीमेटम थमा रहे हैं।
उठ रहे सवाल
ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि खुले बाजार की बजाय सिर्फ अस्पतालों को सप्लाई के लिए सीधा-सीधा निर्देश जारी होना चाहिए था लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ। कालाबाजारी रोकने के लिए कुछ वैसा ही तंत्र विकसित किया जाना चाहिए था जैसा आक्सीजन सप्लाई को लेकर किया जा रहा है।
कुछ दिन में खत्म हो जाएगी समस्या
देश में रेमडेसिविर की कमी और उसकी कालाबाजारी के बारे में पूछे जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अचानक बढ़ी मांग के कारण भले ही इसकी कमी दिख रही हो, लेकिन अगले चंद दिनों में यह समस्या समाप्त हो जाएगी। उनके अनुसार देश में रेमडेसिविर बनाने वाली सात कंपनियों के साथ बातचीत के बाद इसका उत्पादन हर महीने 37 लाख वायल (शीशी) से बढ़ाकर 78 लाख करने का फैसला किया गया लेकिन यह इतना आसान नहीं है।
इसलिए भी हो रही देर
दरअसल रेमडेसिविर बनाने वाली सातों कंपनियों ने अन्य छोटी-छोटी लगभग तीन दर्जन कंपनियों के साथ रेमडेसिविर बनाने का करार किया है। लेकिन हर नई इकाई को दवा बनाने के पहले डीसीजीआइ (औषधि महानियंत्रक) से जांच कराकर उसकी मंजूरी लेनी होती है। इस प्रक्रिया में सामान्य रूप से लगभग 14 दिन लग जाते हैं।
अगले हफ्ते आएगी अतिरिक्त डोज
रेमडेसिविर के मामले में इसे फास्टट्रैक करने को गया है। माना जा रहा है कि एक-दो दिन में डीसीजीआइ इसकी मंजूरी दे देगा और रेमडेसिविर की अतिरिक्त डोज अगले हफ्ते आ जाएगी और उसके बाद इसकी किल्लत की शिकायत भी दूर हो जाएगी लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी अस्पतालों के माध्यम से इसकी सप्लाई होने के नियम के बावजूद कालाबाजार में बिकने के सवाल का जवाब नहीं दे पाये।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि इसमें कहीं-न-कहीं से अस्पतालों की मिलीभगत भी शामिल है। वरना रेमडेसिविर बनाने वाली कंपनियों को हर अस्पताल की जरूरत के हिसाब से सप्लाई करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया है। उन्होंने स्वीकार किया कि जिस तरह वैक्सीन की एक-एक डोज पर सरकार की निगरानी थी, उसी तरह से रेमडेसिविर पर निगरानी रखने में वे विफल रहे।