रेप केस: होगा साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन और हाईटेक फॉरेंसिक एग्जामिनेशन, जानिए वजह

Update: 2022-04-14 07:41 GMT

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के नादिया रेप केस मामले में सियासी तूफान खड़ा हो गया है. कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा है कि इस केस में सबूत मिटा दिए गए और सबूत इकट्ठा करने के लिए जांच एजेंसी को साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन और हाईटेक फॉरेंसिक एग्जामिनेशन का इस्तेमाल करना होगा. कोर्ट ने कहा है कि इस केस की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारियां हासिल करनी चाहिए ताकि इंसाफ हो सके.

इस मामले में पीड़िता को इंसाफ मिल सके इसके लिए कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है. कोर्ट ने बंगाल पुलिस को निर्देश दिया है कि वह नादिया रेप और मौत से जुड़ी सारी फाइलें सीबीआई को सौंप दें.
अदालत ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि "पीड़िता खून से लथपथ सड़क पर मिली थी, जिसे किसी और ने घर पहुंचाया था. पुलिस ने सड़क पर पड़े हुए खून के सैंपल नहीं जुटाए. न ही क्राइम सीन रीक्रीएट किया गया. खून के धब्बों की जांच करने के लिए न ही केमिकल टेस्टिंग की गई. पीड़िता के कपड़ों को डीएनए सैम्पल की जांच के लिए भी नहीं भेजा गया. घटना के वक्त आरोपी ने जो कपड़े पहने थे उन्हें भी जब्त नहीं किया गया."
कोर्ट ने कहा, 'पीड़िता के घर से न ही खून से सनी हुई बेडशीट ही जब्त की गई. पूरा मामला घटना के सुबूतों पर आधारित था, लेकिन जल्दबाजी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया, इसके लिए सुबूत जुटाने में थोड़ी तकनीक की मदद भी लेनी चाहिए थी.;
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, इस मामले में कोई मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) नहीं है, कोई पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं है और न ही मृत्यु प्रमाण पत्र है. ये चीजें पूरी घटना को दबाने और सबूत मिटाने की कोशिश की तरफ इशारा करती हैं. साथ ही केस डायरी इस बात की ओर भी इशारा करती है कि पीड़िता के साथ एक से ज्यादा लोगों ने बलात्कार किया है.
अब सवाल यह है कि जब पुलिस ने मौका-ए-वारदात से नमूने नहीं लिए, न ही पोस्टमार्टम हुआ तो फिर किस तरह का साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन किया जाएगा? जिससे कि यह पता चल सके कि यह रेप है या गैंगरेप. सवाल यह भी है कि लड़की के कत्ल में कितने लोग शामिल थे?
फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो अब एजेंसीज के पास रास्ता बचता है कि वह डीएनए प्रोफाइलिंग फिंगरप्रिंट्स और मोबाइल डंप डाटा के जरिए सबूत इकट्ठा कर सकती हैं.
सबसे पहले बात करते हैं कि डीएनए के जरिए कैसे सबूत हासिल किए जा सकते हैं? दरअसल जांच एजेंसी को मौका ए वारदात का मुआयना करना पड़ेगा जहां पर कथित तौर पर रेप की वारदात को अंजाम दिए जाने की बात कही गई है. उस जगह पर पुलिस को फिंगरप्रिंट्स की तलाश करनी होगी. कपड़े, बिस्तर, चादर, सोफे, कुर्सी और दीवार से नमूने लेने होंगे. वहां पर मौजूद धूल के कण और बाल वगैरह से सबूत इकट्ठे किए जाएंगे. एजेंसी आरोपी के कपड़ों की भी जांच कर सकती है.
यूं तो बिना पोस्टमार्टम के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया, लेकिन जांच के लिए एजेंसी लड़की के उन कपड़ों को इस्तेमाल कर सकती है जो रेप और कत्ल के दौरान पहने गए थे. अगर वह कपड़े मौजूद हैं तो साइंटिस्ट उन कपड़ों से खून के निशान, अंतःवस्त्रों से सीमन या खून के नमूने ले सकती है. कपड़ों पर लगे उंगलियों के निशान भी हासिल किए जा सकते हैं. ब्लड और सीमन के जरिए डीएनए प्रोफाइलिंग की जा सकती है. जिससे कि आरोप साबित करने में मदद मिलेगी. आरोपी के पास या मौके पर यदि कोई लड़की का बाल या नाखून के टुकड़े या उसके कपड़ों पर फिंगरप्रिंट पाए जाते हैं तो ऐसे बालों से भी डीएनए प्रोफाइलिंग करके कनेक्टिंग चेन तैयार की जाती है.
आमतौर पर ऐसे कैसे से देखा जाता है कि पुलिस आरोपी का ब्रेन मैपिंग टेस्ट करती है जिसके जरिए वह कितना सच बोल रहा है कितना झूठ बोल रहा है उसकी जानकारियां हासिल की जाती हैं. इस प्रक्रिया में स्क्रीन पर आरोपी को केस से जुड़ी हुई तस्वीरें जगह वीडियो दिखाए जाते हैं और मशीन के जरिए यह जानकारी ली जाती है कि उसका दिमाग किस तरह से रिएक्ट कर रहा है. जिसके बाद पूरा कंप्यूटराइज्ड एनालिसिस किया जाता है और बताया जाता है कि तस्वीरों और वीडियो या वह जगह जहां वारदात को अंजाम दिया गया देखने के बाद आरोपी किस तरह रिएक्ट कर रहा है.
प्रश्नावली के जरिए उससे सवाल पूछे जाते हैं और उसके जवाब पर एनालिसिस किया जाता है. खासकर ऐसे मामले में जब सबूत पुलिस के पास कम हो तो नारको एनालिसिस टेस्ट भी भी सहारा लिया जाता है. इसमें बेहोशी की हालत में आरोपी से जानकारी हासिल की जाती है और केस के बारे में पूछे जाते हैं सवाल उन सवालों के जवाब के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है कि आखिर इस वारदात के पीछे क्या वजह थी और कैसे इसे अंजाम दिया गया था.
अगर एजेंसी को शक होता है कि आरोपी झूठ बोल रहा है तो इस हालत में उसका लाई डिटेक्टर टेस्ट भी करवाया जा सकता है लाई डिटेक्टर टेस्ट तकनीक के जरिए एक क्वेश्चन दिया जाता है जो केस से जुड़ा होता है और वह आरोपी को उसमें हां या ना में जवाब देना होता है जिसका एनालिसिस बताता है यह किस-किस बातों का जवाब आरोपी झूठ की शक्ल में दे रहा है या आरोपी सच बोल रहा है.
जांच एजेंसी मोबाइल डंप डाटा के जरिए भी यह पता लगा सकती है कि वारदात के वक्त उस जगह पर कितने मोबाइल फोन एक्टिव थे. डंप डाटा निकालकर यह पता लगाया जाता है कि उस टावर में खासकर उस जगह के आस पास कितने मोबाइल नंबर उस वक्त सक्रिय थे. जब इस वारदात को अंजाम दिया गया. उसके जरिए भी आरोपियों की फिल्टरिंग की जा सकती है. आसपास में अगर सीसीटीवी फुटेज मौजूद हैं तो पुलिस यह जानकारी ले सकती है कि मौका ए वारदात पर किन लोगों की आवाजाही थी. बर्थडे की पार्टी में किन-किन लोगों को बुलाया गया था. आरोपी के कौन-कौन साथी इस पार्टी में शामिल हुए थे. उनसे पूछताछ कर जानकारियां हासिल की जाएंगी.
साइंटिफिक और फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह न होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है. भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है.
27 सितंबर, 2008 को जर्मनी की एक लड़की को चंडीगढ के ताज होटल से अपहरण कर लिया गया था. उसे पास के एक फार्महाउस में ले जाया गया, जहां पांच युवकों ने लड़की के साथ गैंगरेप किया था. यह मामला अपने आप में फॉरेंसिक एग्जामिनेशन की एक नजीर बना था जिसमें साइंटिस्ट ने लड़की के मौका ए वारदात पर मिले हुए बाल और लड़की के कपड़ों और चादर पर आरोपियों के सीमेन के निशान की डीएनए प्रोफाइलिंग की गई थी. रेप के बाद लड़की के नाखून में आरोपियों के खाल के टुकड़े अपने कब्जे में ले लिए थे जिसके बाद डीएनए प्रोफाइलिंग के जरिए इन सभी आरोपियों की फार्म हाउस पर मौजूदगी और सीमेन के मिलान से यह साबित कर दिया था कि लड़की को किडनैप करके गैंगरेप किया गया है जिसके बाद अदालत ने सभी आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.
निठारी केस की बात करें तो इस दौरान भी जांच एजेंसियों के पास बच्चों की पहचान का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन जांच एजेंसी ने चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब से सभी बच्चों के डीएनए प्रोफाइलिंग कराई और उनकी दांत से लिक्विड लिए गए. जिसके बाद बच्चों के दांत के लिक्विड को उनके माता-पिता के ब्लड से मिलाया गया और उनकी पहचान हो सकी. जिन बच्चों की पहचान डीएनए से नहीं हो सकी उन बच्चों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने फेशियल रिकॉनस्ट्रक्शन किया और फेशियल सुपरिंपोजिशन के जरिए उनके कंकालों को उनकी पहचान दी गई तब जाकर इस केस में आरोपियों को सजा हुई.
पश्चिम बंगाल के नदिया के हांसखाली में एक नाबालिग की कथित गैंगरेप के बाद मौत हो गई थी. लड़की के परिजनों का आरोप है कि टीएमसी नेता के बेटे ने बर्थडे पार्टी में नाबालिग के साथ गैंगरेप किया. इसके बाद उसकी मौत हो गई. पीड़ित लड़की की उम्र 14 साल थी. पुलिस का कहना है कि पीड़ित परिवार ने लड़की की मौत के चार दिन बाद 9 अप्रैल को आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
पुलिस के मुताबिक पीड़िता के पिता ने समर गोआला के बेटे ब्रजगोपाल गोआला पर उनकी बेटी का रेप कर हत्या करने का आरोप लगाया था. पुलिस ने ब्रजगोपाल को गिरफ्तार कर लिया है. पीड़ित परिवार की तहरीर पर पुलिस ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376(2), 302 (हत्या), 204 (सबूतों से छेड़छाड़) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज किया है.
हालांकि, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने रेप की बात से इनकार किया है. उन्होंने कहा, ऐसा दिखाया जा रहा है कि नाबालिग लड़की की रेप की वजह से मौत हुई है. लेकिन आप इसे रेप कहेंगे. वो गर्भवती थी या फिर ये कोई लव अफेयर था? उन्होंने कहा था कि मेरी पुलिस से बात हुई है. ये गलत हुआ है. पुलिस ने गिरफ्तारी की है. लेकिन मुझे बताया गया है कि लड़की का लड़के संग अफेयर था'.

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