रेलवे को लगाया चूना, 24 साल बाद आया फैसला, अब जिंदगी भर पछताएगा आरोपी

जुर्माने भी.

Update: 2024-03-24 11:37 GMT
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गोरखपुर: रेलवे को ढाई लाख का चूना लगाने के आरोपी और उसका साथ देने वाले कर्मचारी को अपने किए की सजा 24 साल बाद मिली। सीबीआई विशेष न्‍यायालय/ भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम के जज रजनीश मोहन वर्मा ने मुख्‍य आरोपी और सेवानिवृत हो चुके कर्मचारी को सात-सात साल कैद और जुर्माने की सजा सुनाई है। कूटरचित दस्‍तावेजों के आधार पर पूर्वोत्‍तर रेलवे (एनईआर) से 2.55 लाख का चेक प्राप्‍त करने और फर्जी बैंक खाते में भुगतान करा लेने के इस मामले में कुल पांच आरोपी थे जिनमें से तीन को दोषमुक्‍त करार दिया गया है। 24 साल तक चली अदालती कार्यवाही के बाद आए इस फैसले में सजा पाए पूर्व रेलकर्मी अजय तिवारी की उम्र 61 साल है। वह एनईआर के असिस्‍टेंट एकाउंटेंट (व्‍यय) डीएओ के पद से सेवानिवृत हो चुका है।
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यह मामला 28 मई 1998 को दर्ज हुआ था। आरोप था कि कूटरचित दस्‍तावेजों के आधार पर एनईआर से 2,55,285 रुपए का चेक प्राप्‍त कर उसे फर्जी खाते में भुना लिया गया। मामले की जांच सीबीआई इंस्‍पेक्‍टर रोहित श्रीवास्‍तव ने की। विवेचना के बाद इस मामले में गोरखपुर के अलीनगर निवासी राजेश कुमार गुप्‍ता के अलावा पूर्वोत्‍तर रेलवे के असिस्‍टेंट एकाउंटेंट (व्‍यय) डीएओ रहे अजय तिवारी, असिस्‍टेंट एकाउंटेंट पे ऑफिस एनईआर कल्‍लू लाल, सेक्‍शन ऑफिसर डीएओ एकाउंटेंट एनईआर लखनऊ एसपी सिंह और कंट्रोलर ऑफ एकाउंटेंट अनिल कुमार गुप्‍ता को आरोपी बनाया गया था। विवेचना के बाद दाखिल आरोप पत्र में कहा गया कि मैक्‍सवेल इंजीनियरिंग के प्रोपराइटर अनिल कुमार के नाम पर लखनऊ के शिवाजी मार्ग स्थित देना बैंक की शाखा में और मै.यूनिवर्सल इंजीनियरिंग के प्रोपराइटर ओमप्रकाश के नाम पर लखनऊ के ही एलडीए कॉलोनी कानपुर रोड स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में फर्जी खाते खुलवाए गए। विवेचना में पाया गया कि ये दोनों खाते राजेश कुमार गुप्‍ता ने खुद को अनिल कुमार और ओमप्रकाश बताकर फर्जी ढंग से खुलवाए थे। 17 जनवरी 1998 को राजेश कुमार गुप्‍ता ने अनिल कुमार बनकर देना बैंक में 2,55,285 रुपए का चेक (कूटरचित दस्‍तावेजों के आधार पर पूर्वोत्‍तर रेलवे से प्राप्‍त)जमा किया और कुछ समय बाद पूरी राशि निकाल ली। इस खाते की चेक बुक राजेश गुप्‍ता ने अनिल कुमार बनकर हासिल की थी।
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प्रत्‍यक्ष रूप से आरोपी राजेश गुप्‍ता द्वारा किए गए इस कृत्‍य में कुछ रेलकर्मियों की मिलीभगत रही। सीबीआई ने इसमें अजय तिवारी के अलावा तीन अन्‍य कर्मचारियों को आरोपी बनाया था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान लोक अभियोजक ने रेलवे में इस तरह प्राप्त किये गए फर्जी भुगतान के एक अन्य लम्बित मामले का उल्लेख करते हुये गबन में माहिर रैकेट के सक्रिय होने का तर्क दिया। भ्रष्‍टाचार निवारण सीबीआई कोर्ट के विद्ववान न्‍यायाधीश रजनीश मोहन वर्मा ने लम्‍बी सुनवाई के बाद तीन आरोपियों को दोषमुक्‍त करार दिया जबकि राजेश गुप्‍ता और अ‍जय तिवारी को अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग सजाएं सुनाईं। इसमें अधिकतम सजा सात साल की है। सभी सजाएं एक साथ चलेंगी और पूर्व में जेल में बिताए जा चुके समय को सजा अवधि में समायोजित किया जाएगा। इसके अलावा कोर्ट ने राजेश गुप्‍ता पर कुल 55 हजार और अजय तिवारी पर कुल 65 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में उन्‍हें अतिरिक्‍त कारावास भुगतना होगा। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक अमरीश कुमार और आरोपियों की ओर से वरिष्‍ठ अध‍िवक्‍ता दीप कमल, नीरज श्रीवास्‍तव और श्रीश चन्‍द्र ने पक्ष रखा।
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