उठे सवाल: भारत को लेकर एलन मस्क का आया बड़ा बयान, मची है खलबली

Update: 2024-12-18 09:16 GMT
नई दिल्ली: उत्तर-पूर्व भारत में इंडियन आर्मी और असम राइफल्स को घुसपैठियों के अड्डे से Elon Musk की कंपनी SpaceX के Starlink इंटरनेट डिवाइसेस मिले हैं. खासतौर से मणिपुर के संघर्ष वाले इलाकों से. इसके बाद से सिक्योरिटी एजेंसियां, सेना और पुलिस अलर्ट मोड पर आ गई है. ये डिवाइसेस कई जिलों में मिले हैं.
स्टारलिंक डिवाइसेस को सेना और असम राइफल्स ने चूड़ाचंद्रपुर, चंदेल, इम्फाल ईस्ट और कांगपोक्पी शहरों से भी जब्त किया है. आमतौर पर जब भी ऐसा कोई छापा मारा जाता था तो उसमें सिर्फ हथियार, गोला-बारूद निकलता था. लेकिन इस बार तो कम्यूनिकेशन के लिए एलन मस्क की कंपनी का बनाया इंटरनेट डिवाइस भी मिला है.
अगर ऐसे ही हाईटेक सैटेलाइट इंटरनेट घुसपैठियों को मिलता रहा तो ये देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होगा. सिक्योरिटी फोर्सेस के लिए घुसपैठियों को हैंडल करना मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि ये इलाका काफी दुरूह है. संचार की व्यवस्था कम थी. लेकिन स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट से घुसपैठियों के बीच बेहतर कॉर्डिनेशन होगा. हमले की प्लानिंग वगैरह होगी. वो कम्यूनिकेट करेंगे तो ज्यादा परेशानी बढ़ेगी.
स्टारलिंक किसी भी रिमोट इलाके में इंटरनेट की सुविधा देता है. वह भी बिना तार या टॉवर के. सैटेलाइट से सीधे इंटरनेट मिलता है. यानी बिना किसी सरकार, सेना, खुफिया संस्थान या प्रशासन को पता चले घुसपैठिये इनका इस्तेमाल कहीं से भी कर सकते हैं. क्योंकि ये एंट-टू-एंट इनक्रिप्टेड होता है. इसे हैक करना मुश्किल है.
जो डिवाइस मिला है, उसमें रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (RPF) की मार्किंग है. जिसका संबंध चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से बताया जाता है. ये मणिपुर में सबसे ज्यादा एक्टिव आतंकी समूह है. अब सवाल ये उठ रहा है कि मणिपुर में घुसपैठियों के पास ये डिवाइस कहां से आया. क्योंकि भारत में स्टारलिंक को ब्रॉडबैंड लाइसेंस अभी नहीं मिला है.
रक्षा एक्सपर्ट्स की माने तो इस यंत्र को देश के अंदर स्मगल करके लाया गया है. या फिर इसे फेक जियोटैगिंग के जरिए कहीं और एक्टिवेट किया गया है. ताकि प्रतिबंधों को पार किया जा सके. एक्सपर्ट ने बताया कि घुसपैठियों के पास से ऐसी टेक्नोलॉजी का मिलना ये बताता है कि वो इवॉल्व हो रहे हैं. उनके पास हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा है. इससे आतंकी समूहों के बीच कम्यूनिकेशन का डायनेमिक्स बदल जाएगा.
आतंकरोधी अभियानों के लिए इस तरह के यंत्र बाधा हैं. आतंकी और घुसपैठियों के समूहों के बीच दुरूह इलाकों में भी कम्यूनिकेशन हो पाएगा. रीयल टाइम इंटेलिजेंस हासिल कर सकते हैं. प्रोपैगैंडा कैंपेन चला सकते हैं. इसे रोकना इनका पता करना बेहद मुश्किल होगा. क्योंकि पारंपरिक तरीकों को तो सेना हैंडल कर सकती है.
नए संचार तरीकों के लिए वो भी सैटेलाइट इंटरनेट को हैंडल करने की सीमित क्षमता है. स्टारलिंक के जरिए आतंकी बाहरी संस्थाओं, दुश्मन देशों, फंड प्रदान करने वालों, समर्थकों और स्थानीय नेटवर्क से जुड़ सकते हैं. इसका खतरा आम नागरिक आबादी को भी है. आतंकी आराम से उनके बीच घुसपैठ कर सकते हैं. इनके जरिए साइबरअटैक हो सकते हैं. गलत सूचना फैला सकते हैं. या फिर संवेदनशील युवाओं को अपने आतंकी समूह में भर्ती होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
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