प्रतापगढ़ रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया श्री केशवरायजी मंदिर, होंगे कई धार्मिक आयोजन

Update: 2023-09-07 10:18 GMT
प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ शहर में मध्य श्री केशवरायजी का मंदिर कांठल के भक्तों के लिए प्रमुख केन्द्र है। यहां वर्ष पर्यंत विभिन्न उत्सवों, तिथियों पर आयोजन होते हैं। इतना ही नहीं, मंदिर में प्रस्तरों पर उकेरी गई प्रतिमाएं और कलाकृतियां भी काफी आकर्षक है। जो अपने आप में शिल्पकला का बेजोड़ नमूने है। यह मंदिर करीब 244 वर्ष पहले मंदसौर के धनाढ्य व्यापारी गुलाबचंद तरवाड़ी ने तत्कालीन प्रतापगढ़ के महारावत सामंतसिंह के कहने पर बनवाया था। इसके बाद यह मंदिर कांठलवासियों के लिए प्रमुख आस्था का केन्द्र बन गया। आज यहां रोजाना कोई ना कोई आयोजन होता रहता है. मंदिर विशाल है। इसके चारों तरफ 24 अवतार और सभी देवताओं की आकृतियां उकेरी गई है।
वर्ष भर के सारे उत्सव नियमितता और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। पुजारी श्रीहरि शुक्ल ने बताया कि यहां सावन के झूले, होली उत्सव, अन्नकूट दीपावली और जन्माष्टमी प्रमुख है. जन्माष्टमी का पर्व प्रमुख होता है. इस दिन भगवान को 108 किलो दूध से अभिषेक किया जाता है. मंदिर में श्रृंगार, लाइटिंग और फूलों का विशेष श्रृंगार, सायंकालीन विशेष आरती और श्रंगार के दर्शन होते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से परंपरागत चली आ रही है। नगर के लगभग मध्य में प्राचीन राजमहल है। उसके निकट ही तिवारी परिवार की पुरानी हवेली है. राजकीय महल के सामने नजरबाग एक और सुन्दर स्थान है। जहां ढाई सौ साल पहले विशाल वापिकाएं, विशाल वाटिका और एक मंदिर था। नजर बांग के निकट एक छोटी सी तलैया थी। महल और तलैया के बीच में रणमार्ग था. जो आज भी विद्यमान है। पुजारी श्रीहर शुक्ल ने बताया कि इतिहास के अनुसार निकटवर्ती मंदसौर में रमणजी के मंदरी की प्रतिष्ठा के अवसर पर राज परिवार को अपना अतिथि बनाने के लिए सेठ गुलाबचंद्र मंदसौर से प्रतापगढ़ आए। उन दिनों महारावल सामंतसिंह थे।
जब गुलाबचन्द निमंत्रण लेकर राज दरबार गए तो उन्होंने कहा कि यहां भी मंदिर बनाया जाना चाहिए. इस पर गुलाबचंद ने कहा कि यहां भी बनायास जा सकता है. इसके लिए निार्मण सामग्री है, जमहन की स्वीकृति दें तो कार्य शुरू किया जा सकता है. इस पर शहर के मध्य में जमीन दी गई। इसके बाद श्री केशव राय मंदिर सन् 1836 वैशाख शुक्ला तेरस को निर्माण शुरू किया गया था। जिसमें सैकड़ों लोग, मजदूर ओर कारीगर केशवरायजी मंदिर के निर्माण में लग गए. शिल्पकार, चित्रकार, मूर्तिकार, कलाकार, पाषाण पर देव प्रतिमाओं की सुंदर रेखाएं अंकित करने लगे। इसके बाद यहां एक विराट देवालय बनगया। श्री केशवरायजी की प्रतिमा मंदसौर के खिलचीपुरा से प्रतापगढ़ लाई गई। श्री केशव राय के मंदिर के लिए प्रतिष्ठा के सामंतसिंह ने भगवान की सेवा के लिए 5 बीघा जमीन बागरी दरवाजा नामक नगर द्वार के बाहर प्रदान की। जहां भी खेत वाटिका और एक कुआं मौजूद है। प्राचीन शिल्प कला से युक्त श्रीकेशव राय की मूर्तियां श्याम, श्याम की बड़ी प्रतिमा, कृष्ण की प्रतिमा दिव्य और चमत्कारी है। शहर और गांवों के कई श्रद्धालु मंदिर में पूजा करते हैं।
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