राजनीतिक परिवार में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष लाजिमी है...

Update: 2021-08-24 17:06 GMT

नई दिल्ली। परिवारवाद, वंशवाद एवं भाई-भतीजावाद भारतीय राजनीति का कटु सत्य है. लिहाजा राजनीतिक परिवार में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष लाजिमी है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) के परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई इसका ताजा उदाहरण है. पिता की विरासत पर पकड़ को लेकर लालू के दोनों बेटे तेजप्रताप (Tej Pratap Yadav) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की लड़ाई परिवार के बाहर आ गयी है. तेजस्वी और तेजप्रताप पहली बार मीडिया में एक-दूसरे को नसीहत देते हुए दिख रहे हैं. व्यक्ति केंद्रित, परिवार आधारित राजनीतिक पार्टी (Political Party) में विरासत की लड़ाई ज्यादा देखने को मिलती है. भारतीय राजनीति (Indian Politics) में इसके अनेक उदाहरण हैं.

पकड़ बनाने की जद्दोजहद

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार परिवार आधारित पार्टी में विरासत की लड़ाई तब तेज हो जाती है जब वहां कई पावर सेंटर बन जाते हैं. जैसे ही सुप्रीमो की पकड़ ढीली होती है वैसे ही परिवार के अन्य सदस्यों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग जाती है, फिर सब अपने हिसाब से राजनीति करना शुरू कर देते हैं. जब तक लालू यादव पूर्णत: स्वस्थ थे, राजनीति में सक्रिय थे चाहे वो जेल में ही क्यों न हों तब तक स्थिति सामान्य थी. लेकिन जैसे ही वो राजनीतिक परिदृश्य से थोड़ा ओझल हुए परिवार की लड़ाई बाहर आ गयी.

लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में भी ऐसा ही हुआ. रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद कुछ ही दिन में पार्टी दो फाड़ हो गयी. चाचा पशुपति पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को चुनौती दे दी और पार्टी का विभाजन हो गया. हरियाणा में भी चौटाला परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला को जब शिक्षक भर्ती मामले में जेल की सजा हो गयी तब परिवार की लड़ाई सरेआम हो गयी. चौटाला के दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला के मतभेद सामने आ गये और विरासत की लड़ाई तेज हो गयी. स्थिति यहां तक आ गयी की अजय चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बना ली.

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