तालिबान के कब्जे में पंजशीर: भारत के लिए खतरा, पूर्व CIA अधिकारी ने कही यह बात

Update: 2021-09-06 04:40 GMT

काबुल. दक्षिण और दक्षिण पश्चिम एशिया में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) का ऑपरेशन संभालने वाले डगलस लंडन (Douglas London) ने एक बातचीत में कहा है कि काबुल (Kabul) में तालिबान (Taliban) के उभार को लेकर भारत के पास चिंतित होने के वाजिब कारण हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान को पाकिस्तान (Pakistan) का समर्थन है और इससे क्षेत्र में सुरक्षा स्थितियां और ज्यादा जटिल और उलझाऊ हो जाती हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सीआईए के पूर्व अधिकारी ने कहा कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में जो हुआ, वह सिर्फ इंटेलिजेंस की असफलता नहीं है, बल्कि इससे कहीं ज्यादा है. डगलस ने अमेरिका और तालिबान के बीच 2020 के शांति समझौते को अमेरिका द्वारा किया गया अब तक का सबसे खराब समझौता करार दिया.

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को लेकर भारत की चिंताओं के बारे में पूर्व सीआईए अधिकारी डगलस ने कहा कि भारत के पास चिंतित होने की वाजिब वजहें हैं. पाकिस्तान की नीतियां अलग-अलग जिहादी समूहों को समर्थन देने की रही हैं और तालिबान भी उनमें से एक हैं. इसे भारत के साथ पाकिस्तान की दुश्मनी की नजरों से देखा जाना चाहिए. इस्लामाबाद भारत को एक खतरे की तरह देखता है और किसी भी तरह के मुद्दे और चुनौतियों को उसी नजर से देखा जाना चाहिए. डगलस ने कहा कि मुख्य चिंता ये है कि जिहादी समूहों को पाकिस्तान का समर्थन है और ये जिहादी ग्रुप नियंत्रण से बाहर भी जा सकते हैं. यहां तक कि पाकिस्तान के लिए भी खतरा बन सकते हैं. अगर जिहादी समूहों ने जनरल्स के खिलाफ बगावत कर दी तो भारत के पड़ोस में इस्लामिक स्टेट जैसा आतंकी समूह पैदा हो सकता है, जोकि बेहद खतरनाक हो सकता है.
उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि भारत ने उग्र इस्लाम विरोधी अभियानों और देश में राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रवाद और धर्म के इस्तेमाल से खुद की मदद की है. मुझे लगता है कि यह भारत को अंदर से और साथ ही बाहर से भी खतरों के प्रति काफी संवेदनशील बना देगा.' डगलस ने कहा कि चीन को लेकर भी तनाव की वजहें हैं. चीन पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है और अफगानिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की फिराक में है. जहां तक चीन की बात है, तो अगर तालिबान बीजिंग के खिलाफ जाकर उइगर मुसलमानों का समर्थन करता है, तो चीन क्या करेगा? हालांकि ऐसा होने की संभावना बेहद कम दिख रही है, लेकिन तालिबान के नेता ऐसे जिहादी समूहों को समर्थन और बढ़ावा देने को उतावले दिख रही है, जिनके साथ उनकी लंबी लड़ाई रही है, सहयोगी रहे हैं या साथ मिलकर काम किया है. ये पाकिस्तान, भारत और सेंट्रल एशिया के देशों के लिए खतरा है.
उन्होंने कहा कि तालिबान अब अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज है और ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वे आतंकी समूहों के साथ अपने संबंधों को खत्म करेंगे. चाहे कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ने वाले आतंकी समूह ही क्यों ना हो, जैसे कि लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद. पूर्व सीआईए अधिकारी ने कहा कि समय की जरूरत है कि भारत, पाकिस्तान के जनरल्स, ईरान और सेंट्रल एशिया के देशों को मिलकर कुछ करना पड़ेगा. इन देशों को यह मानना पड़ेगा कि रणनीति में बदलाव करने का समय आ गया है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए उन्हें मिलकर काम करना होगा.
डगलस ने कहा कि लोगों को बात करने की जरूरत है. पाकिस्तानी जनरल्स को यह मानना होगा कि समय उनके साथ नहीं है, जिन लोगों को उन्होंने बढ़ावा दिया है, वे इस्लामाबाद को भी खा सकते हैं. पूर्व सीआईए अधिकारी ने कहा कि भारत के लिए सबसे चिंताजनक बात ये है कि इस समय भारत सरकार अपने मुस्लिम नागरिकों के साथ खड़ी नहीं दिख रही है. शायद यही वजह है कि वह चीन या पाकिस्तान के साथ समझौता करने की स्थिति में नहीं दिख रही है.
डगलस लंदन ने कहा कि अफगानिस्तान का हक्कानी नेटवर्क और आईएसआई एक सिक्के के दो पहलू हैं. हालांकि उन्होंने ये नहीं कि कहा कि हक्कानी और तालिबान आईएसआई के प्रोडक्ट हैं. लेकिन डगलस ने कहा कि आईएसआई के समर्थन के बिना तालिबान या हक्कानी अपने लोगों को नहीं बचा सकते थे, हथियारों और लड़ाकों को इस पार लाकर सुरक्षित नहीं रख सकते थे.
उन्होंने कहा कि हक्कानी नेटवर्क अपराधियों का एक नेटवर्क है, जो नारकोटिक्स, वसूली और रियल एस्टेट के कारोबार में लगा है और यह सालों से चल रहा है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हक्कानी नेटवर्क को पूरा समर्थन दिया है. इसे एक दूसरे के फायदे वाला रिश्ता कह सकता है. हक्कानी को आईएसआई से फायदा मिला और आईएसआई को हक्कानी से फायदा मिला है.
पूर्व सीआईए अधिकारी ने कहा कि सोशल मीडिया पर आ रही तस्वीरें सिर्फ छलावा है, ये वही पुराना तालिबान है. वे अपने दुश्मनों को ढूंढ़ रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं, उन्हें टॉर्चर कर रहे हैं. महिलाओं को घरों में बंद किए हुए हैं. यही तालिबान है. लेकिन ये फैसले बरादर, स्टैनकजई और अन्य लोग नहीं कर रहे हैं, जो कैमरे पर दिखाई देते हैं. ये फैसले वे लोग कर रहे हैं, जिन्हें हम कैमरे पर नहीं देखते हैं.

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