पंडित किशन महाराज, जिन्होंने तबले की थाप के जरिए बिखेरा उंगलियों का जादू

Update: 2024-09-03 06:31 GMT
नई दिल्ली: मॉर्डन युग और नई तकनीकों की संगीत में वो लुत्फ कहां जो पंडित किशन महाराज की ताल के धमक में थी। जब तबले पर उनकी उगलियां पड़ती थीं, तब मानों ऐसा लगता था कि संगीत खुद-ब-खुद हवाओं में तैर रहा है। उनकी सादगी के लोग कायल तो थे ही लेकिन जो कमाल उन्होंने तबले पर किया उसकी ही देन हैं उस्ताद जाकिर हुसैन!
बनारस घराने के सुप्रसिद्ध तबला वादक पंडित किशन महाराज की 3 सितंबर को जयंती है। पद्मश्री, पद्म विभूषण व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित तबला वादक पंडित किशन महाराज ने तबले पर अपनी उंगलियों का जादू ऐसा बिखेरा कि हर कोई उनका कायल हो गया।
पंडित किशन महाराज ने तबला वादन में अपने नाम का परचम लहराया। उन्होंने उस्ताद फैयाज खान, पंडित ओंकार ठाकुर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान जैसे कलाकारों के साथ संगत की। तबले की थाप को विश्व मंच तक पहुंचाने का काम किया।
किशन महाराज का जन्म 3 सितंबर 1923 को वाराणसी के एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ। कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात को जन्म होने के कारण उनका नाम किशन रखा गया। उन्होंने अपने पिता पंडित हरि महाराज से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल की। पिता की मौत के बाद उनके चाचा पंडित बलदेव सहाय ने ही उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी संभाली।
किशनजी बहुमुखी कला के धनी थे। उनके माथे पर एक लाल रंग का टीका हमेशा लगा रहता था। वह जब संगीत कार्यक्रमों में जाते तो वहां मौजूद हर शख्स तबले की धाप में खो जाता। वह पखावज, मृदंग, ढोल बजा सकते थे। यही नहीं, उन्हें सितार और सरोद में भी महारत हासिल थी। उन्होंने एडिनबर्ग और 1965 में ब्रिटेन में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ कला समारोह में परफॉर्म किया।
किशन महाराज बिंदास जिंदगी जीते थे। उन्होंने जिंदगी को हमेशा आज में ही जिया। ठेठ बनारसी थे। लुंगी-कुर्ते में पूरे मुहल्ले में टहलना और पान की दुकान पर दोस्तों के साथ गुफ्तगू करना मुख्य शगल था। अंतिम दम तक यही मिजाज बना रहा। पंडित किशन महाराज को लय भास्कर, संगीत सम्राट, काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, ताल चिंतामणि, लय चक्रवती, उस्ताद हाफिज अली खान व अन्य कई सम्मान से नवाजा गया। उन्हें पद्मश्री और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
किशन महाराज का 4 मई 2008 को निधन हो गया। वे कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर 3 सितंबर 1923 की आधी रात को ही इस दुनिया में आए थे और आधी रात को ही उन्होंने अलविदा कह दिया।
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