पुराना कांगड़ा के कुओं का हो रहा कायाकल्प

Update: 2024-05-22 11:28 GMT
कांगड़ा। जलशक्ति विभाग के प्रयासों के बाद अब पुराना कांगड़ा के ऐतिहासिक कुओं की कायाकल्प होने जा रही है। बाकायदा छत्र बनाकर इन कुओं को दुरुस्त किया जा रहा है। इन कुओं का वजूद कायम रहे, इसके लिए भरपूर प्रयास जारी हैं। अगर यह ईमानदारी से सिरे चढ़े तो 500 साल पुराने कुएं अपना वजूद बचा लेंगे। सन् 1765 से 1824 के मध्य 500 साल से भी ज्यादा पुराना है कांगड़ा शहर के कुओं का इतिहास । कटोच वंशिय राजा संसार चंद ने एक साथ 108 कुएं यहां बनवाए थे । कांगड़ा किले के भीतर लगभग सात कुएं हैं और यहां रानी कच्चे सूत से पानी भरती थीं। कोट कांगड़ा किले के प्रवेश महाराजा रणजीत सिंह द्वार के बाहर गौमुख का पानी भी प्राकृतिक स्रोत है। किंवदंती है कि यह पानी मणिमहेश के गोरी कुंड से आता है। करीब 25000 आबादी वाले कांगड़ा शहर की प्यास बुझाने वाले पानी के प्राकृतिक स्रोत रखरखाव व अनदेखी के अभाव में अपना वजूद खो रहे हैं। हालांकि आज भी दर्जन भर कुएं बाबडिय़ां व झरने जीवंत हैं। इन कुओं से वर्तमान में नया कांगड़ा व पुराना कांगड़ा के लोग अपनी जरूरत को पूरा कर रहे हैं। समुद्र तल से 2350 फीट ऊंचाई पर बाण गंगा तथा मांझी नदी के तट पर बसे कांगड़ा शहर के कुओं का इतिहास लगभग पांच सौ वर्ष पुराना है। 18वीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में महाराजा संसार चंद के राज्य काल में 32 जातियों के लोगों के लिए अलग-अलग 108 कुओं का निर्माण करवाया गया था। कटोच वंशज की कुआं निर्माण कला शैली के बेजोड़ नमूने आज भी कांगड़ा के विभिन्न हिस्सों में उपलब्ध हैं।
कुओं के आर-पार लगे लंबे पत्थर आज अचरज का विषय हैं। कुछ कुओं में पानी भरने के लिए पत्थर से बनी सीढिय़ों से उतर कर जाना पड़ता था। वहीं कुछ कुओं पर धूरी (घिरनी) के माध्यम से रस्सी की मदद से पानी भरना पड़ता था, लेकिन 1905 में भूकंप से कांगड़ा शहर के असंख्य कुएं दफन हो गए। तदोपरांत बचे 23 कुएं 2000 के दशक तक जनता की प्यास बुझाते रहे। उधर, बाण गंगा और मांझी खड्ड में पिछले दो दशकों से बढ़ रहे खनन से पानी न के बराबर रह गया है। समझा जाता है कि आने वाले दस वर्षों में पुराना कांगड़ा व नया कांगड़ा शहर के लिए पीने के पानी की भारी किल्लत होने वाली है। लोगों का कहना है कि ऐसे में शासन प्रशासन को चाहिए कि वे खनन माफिया पर शिकंजा कसे और जल आपूर्ति विभाग व नगर परिषद कांगड़ा कुओं में छत्र लगाकर कायाकल्प करने के साथ-साथ कुओं के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए उनके शुद्धि करण हेतु ठोस कदम उठाएं। इसके अलावा कांगड़ा में कुओं के अलावा करीब छह बाबडिय़ां, तीन झरने, चक्रकुंड तथा सूरज कुंड से आम जनता को पानी उपलब्ध होता रहा है। वर्तमान में पुराना कांगड़ा में आठ-नौ कुएं तथा नया कांगड़ा में तीन-चार कुओं में उपलब्ध पानी मोटर पंप मशीनों के माध्यम से स्थानीय लोगों की जरूरत को पूरा कर रहा है। इसके अलावा दर्जन भर कुएं अनदेखी का शिकार होकर रह गए। कुछ कुओं पर झाडिय़ों ने डेरा डाल दिया है। लोगों ने कुओं में कूड़ा-कर्कट फेंक कर पानी को दूषित कर दिया है। पुराना कांगड़ा की जनता अपने स्तर पर ही कुओं का रखरखाव तथा साफ सफाई करती है, जबकि नया कांगड़ा में रखरखाव के अभाव में तीन चार कुओं के अलावा अन्य का वजूद ही समाप्त होकर रह गया है। अब जलशक्ति विभाग के प्रयास शुरू हुए हैं तो लोगों को उम्मीदें बंधी है।
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