किसी ने नहीं दिया साथ तो मुस्लिम परिवारों ने किया मां-बेटे का अंतिम संस्कार

कुशीनगर के खड्डा क्षेत्र के करदह में बीमारी से मां की मौत के थोड़ी ही देर में बड़े बेटे की तबीयत बिगड़ी और उसने भी दम तोड़ दिया।

Update: 2021-04-30 18:25 GMT

कोरोना का खौफ इस कदर है कि स्वाभाविक या दूसरी किसी बीमारी से हुई मौत में भी लोग लाश को हाथ लगाने से पीछे हट जा रहे हैं। कुशीनगर के खड्डा क्षेत्र के करदह में बीमारी से मां की मौत के थोड़ी ही देर में बड़े बेटे की तबीयत बिगड़ी और उसने भी दम तोड़ दिया। रिश्तेदार संवेदना जताने तो पहुंचे लेकिन कोरोना के डर से दरवाजे से ही निकल लिए। इस बात की भनक गांव के मुस्लिम परिवारों को हुई तो वे पीड़ित के घर पहुंचे और बेहिचक पूरे विधान से मां-बेटे के शवों का अंतिम संस्कार कराया।खड्डा क्षेत्र की ग्रामसभा करदह में शांति (75) पत्नी विश्वनाथ मिश्र पैरालिसिस का शिकार हो गईं। इससे उनका चलना-फिरना बंद हो गया। शुक्रवार को उनकी मौत हो गई। जानकारी होने पर रिश्तेदार उनके घर पहुंचे ही थे कि आधे घंटे के अंतराल पर बड़े बेटे अनिल मिश्र (45) की भी अचानक तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई। यह देख संवेदना जताने आए रिश्तेदार व अन्य लोग कोरोना के भय से शवों को छोड़कर दरवाजे से ही लौट गए।

इससे शांति का छोटा पुत्र राजन अकेला पड़ गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी मां व भाई का अंतिम संस्कार कैसे करे। तभी गांव के दर्जनों मुस्लिम परिवार सामने आ गए और मुस्लिम महिलाएं बिना किसी भय या संकोच के मृतका शांति को स्नान करा उन्हें कपड़ा पहनाया तो महाबुद्दीन, अलाउद्दीन, जुल्फीकार, तजमुल्लाह, मतीन, नसरुद्दीन, शाकिर, महगू समेत दर्जनों पुरुष सदस्य कफन, कपड़ा, पचाठी, गाड़ी आदि की व्यवस्था कर दोनों के शव लेकर पनियहवा घाट पहुंचे।
अपने हाथों से चिता सजाते हुए रमजान के पवित्र महीने में दुआ मांगी और हिन्दू विधि-विधान के तहत दोनों का अंतिम संस्कार कराया। राजन ने बताया कि मां-भाई की मौत के बाद अपनों ने साथ छोड़ दिया, लेकिन गांव के मुसलमान परिवारों ने बिना किसी भेदवाव के अंतिम संस्कार कराने में सहयोग किया।


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