अभी तक वनस्पति और जीव विविधता को कोई बड़ी क्षति नहीं

Update: 2023-03-11 10:57 GMT

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नई दिल्ली: गत 05 मार्च, 2023 से गोवा के विभिन्न क्षेत्रों में वनों, निजी क्षेत्रों, सामुदायिक भूमि, वृक्षारोपण क्षेत्रों और राजस्व भूमि सहित छिटपुट आग लगने की सूचना के साथ ही इसके बारे में पता चला है। वन विभाग गोवा जिला अधिकारी (उत्तर), जिला अधिकारी (दक्षिण), पुलिस अधीक्षक (उत्तर), पुलिस अधीक्षक (दक्षिण) और अग्निशमन विभाग एवं आपातकालीन सेवा निदेशालय जैसे लाइन विभागों के साथ निकट समन्वयन और तालमेल बनाने के साथ ही सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर पर आग की स्थानीय घटनाओं पर नियन्त्रण कर रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आग के स्थानों पर नियन्त्रण पा लिया गया है और प्राकृतिक संसाधनों सहित जन-धन की हानि को शून्य/न्यूनतम रखा गया है, जनशक्ति और सामग्रियों का प्रबंधन किया जा रहा है। सभी संबंधित अधिकारियों को उच्च सतर्कता (हाई अलर्ट) पर रखा गया है एवं स्थिति की सूक्ष्मता से समीक्षा की जा रही है और सभी जिम्मेदार अधिकारियों को समय-समय पर आवश्यक निर्देश भी जारी किए जा रहे हैंI
वन अग्नि की स्थिति से निपटने के लिए विभाग द्वारा अब तक निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
(i) अग्नि के वास्तविक समय की निगरानी के लिए 24x7 नियंत्रण कक्ष: भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा जारी चेतावनी (अलर्ट) के वास्तविक समय की निगरानी के लिए एक 24x7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है। वास्तविक समय निगरानी के आधार पर वास्तविक भू-निर्देशांक (जिओ–कोऑर्डिनेट्स) और अग्नि वाले स्थानों के मानचित्रों को क्षेत्र के अधिकारियों के साथ साझा किया जाता है ताकि ऐसी आग पर तुरंत ध्यान दिया जा सके।
(ii) आग की स्थिति की निगरानी के लिए वन क्षेत्रों को सेक्टरों में विभाजित करके प्रभागीय वन संरक्षक (डीसीएफ)/सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) स्तर के अधिकारियों को प्रभारी बनाया गया है: वन क्षेत्रों को प्रभावित सेक्टरों में विभाजित करने के बाद डीसीएफ और एसीएफ स्तर के अधिकारियों इनका प्रभारी बनाकर आग पर तुरंत ध्यान देने के लिए लाइन विभागों के साथ निकट समन्वयन में अग्नि प्रभावित वन क्षेत्रों के गहन प्रबंधन के लिए दायित्व सौंपा गया है। आग लगने की घटनाओं से निपटने के लिए 750 से अधिक कर्मी युद्ध स्तर पर मैदान में उतारे गए हैं।
(iii) अनधिकृत प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और ऐसे प्रवेश को रोकने के लिए वन एवं वन्यजीव कानूनों का सख्त प्रवर्तन: वन क्षेत्रों में अनधिकृत प्रवेश की जांच और रोकथाम के लिए, डीसीएफ को वन कानूनों के प्रवर्तन को सुनिश्चित करने और जैसे भी वे लागू होते हों, को सख्ती से लागू करने के साथ ही ऐसी स्थिति में पुलिस विभाग को अपने स्तर पर जांच एवं उचित कार्रवाई के लिए स्वीकृति हेतु विशेष निर्देश भी दिए गए हैं।
(iv) लाइन विभागों के साथ समन्वयन: जिला कलेक्टर (उत्तर)/(दक्षिण), पुलिस विभाग, जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, अग्निशमन और आपातकालीन सेवा निदेशालय, पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) सहित स्थानीय समुदाय के समन्वय से आगजनी की घटनाओं पर युद्ध स्तर पर तत्काल नियंत्रण के उद्देश्य से संयुक्त टीमों को क्षेत्र में तैनात किया गया है।
(v) जिला अधिकारियों से आपदा प्रबंधन तंत्र को सक्रिय करने का अनुरोध किया गया: निदेशक (अग्निशमन एवं आपातकालीन सेवाएं) सहित जिला अधिकारियों (उपायुक्तों –डीसी) [उत्तर/दक्षिण] एवं पुलिस अधीक्षकों (एसपी) [उत्तर/ दक्षिण] से भी कहा गया है कि वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में आपदा प्रबंधन तंत्र को सक्रिय करें और आग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को निर्देश जारी करें।
(vi) प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से सार्वजनिक पहुँच (आउटरीच) : बड़े पैमाने पर जनता के बीच दावाग्नि (वन अग्नि) पर जागरूकता पैदा करने के लिए -क्या करें और क्या न करें - के रूप में निवारक और नियंत्रण उपायों का प्रचार किया जा रहा है।
(vii ) ऐसे प्रत्येक स्थान पर आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेश दिए गए हैं: सभी संबंधित प्रभागीय वन संरक्षकों (डीसीएफ) को 05.03.2023 के बाद से हुई आग लगने की हर घटना की विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया गया है।
(viii) वनों में आग से बचाव के उपाय तेज किए गए: क्षेत्र के अधिकारी और टीमें अग्नि-सीमा बनाने और आग के प्रसार को रोकने के लिए झाड़ियों को काटने/ उखाड़ने , अग्नि शमन, सूखी पत्तियों के ढेरों हटाने जैसे कार्यों से आग को आगे फैलने से रोकने पर ध्यान दे रहे हैं ।
(ix) आग लगने की पुनरावृत्ति को रोकने और उस पर नियन्त्रण पाने के लिए एहतियाती उपाय के रूप में उन सभी स्थलों की नियमित निगरानी की जा रही है जहां आग बुझाई जा चुकी है।
(x) वन अग्नि प्रबंधन के लिए भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना से हवाई सहायता: भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के दो हेलीकॉप्टर राज्य भर में आग की सीमा का पता लगाने के लिए लगातार वन क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर रहे हैं। सक्रिय अग्नि क्षेत्रों की सीमा का आकलन करने के लिए ड्रोन का भी उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा, दुर्गम क्षेत्रों के मामले में, भारतीय नौसेना/भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने भी हेलीबकेट के माध्यम से आग बुझाने में हवाई सहायता प्रदान की है।
वन क्षेत्रों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 05.3.2023 से और 10.3.2023 की सुबह 10 बजे तक, 48 अग्नि –स्थलों (फायर-स्पॉट) का पता लगाया गया है और इसके लिए क्षेत्र (फील्ड) अधिकारियों द्वारा पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) सहित लाइन विभागों और स्थानीय जनता के साथ निकट समन्वयन में भाग लिया गया है।
10.3.2023 को सुबह 10 बजे तक आग लगने की 7 घटनाएं सक्रिय बताई जा रही हैं । अन्य विभागों, अग्निशमन और आपातकालीन सेवाओं और पीआरआई की जनशक्ति सहित 500 से अधिक संख्या में कर्मचारियों और अन्य को तैनात किया गया है और 41 स्थानों में आग पहले ही बुझाई जा चुकी है I
पिछले कुछ दिनों में देखे गए कुछ विचारणीय बिंदु नीचे दिए गए हैं
लंबे समय तक मौसम के शुष्क दौर (अर्थात् मध्य अक्टूबर, 2022 के बाद से राज्य में वर्षा के न होने) ने भी ग्रीष्मकालीन उच्च तापमान के साथ वातावरण में आर्द्रता की कमी ने भी इस क्षेत्र में आग लगने की परिस्थितियों के लिए एक अनुकूल वातावरण बना दिया है जिसमें पिछले कुछ सप्ताह से विशेष रूप से सूर्यास्त के बाद चलने वाली तेज़ हवाओं से और बढ़ोतरी हो गई है।
राज्य में वन अग्नि की सूचना अधिकतर पर्णपाती वनों वाले भागों से मिली है। अब तक देखी और अनुभव की गई अग्नि का स्वरूप और प्रकृति सतह पर लगी हुई आग है। सतह पर लगने वाली अग्नि अधिकतर इधर-उधर फैले हुए सूखे पत्तों के कचरे, सूख चुकी जड़ी-बूटियों वाली वनस्पतियों, झाड़ियों, छोटे पेड़ों और ऐसे पौधों को जलाती है जो भूमि की सतह पर या उसके पास पनपे हुए होते हैं। सतह की आग का विस्तार और प्रसार वहां पर पड़े हुए उस ईंधन के भार से निर्धारित होता है जो ऐसे क्षेत्र में पहले से पड़े हुए/एकत्र करके रखे गए हैं, जबकि कई स्थानों पर सूखे पेड़/गिरी हुई लकडियाँ भी अग्नि की तीव्रता में बढ़ोतरी करते हैं। जलते हुए मलबे के कारण लगातार धुंआ और लपटें देखी जा रही हैं जो एक बड़े क्षेत्र में फैली हुई हैं।
मवेशियों के साथ इन क्षेत्रों में निवास करने वाली स्थानीय जनसंख्या चरागाहों और घास के मैदानों वाले ऐसे क्षेत्रों में विद्यमान वनस्पति को कृषि कार्यों के लिए काटो और जलाओं (स्लेश एंड बर्न) वाली आदिम पद्यति का पालन करने के लिए करने के लिए जानी जाती हैं जो बाद में उनके मवेशियों के समूह के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। मुख्य रूप से नई घास के निकलने को बढ़ावा देने के लिए पुरानी घास के पठारों वाले बड़े हिस्से को जला दिया गया है।
इसी तरह, काजू बागानॉन की सांस्कृतिक और प्रवृत्त गतिविधियों में लागत-कटौती के उपाय के रूप में भी काजू बागान मालिकों और श्रमिकों द्वारा इस काटो और जलाओं (स्लेश एंड बर्न) तकनीक का प्रयोग किया जाता है और जिसका उद्देश्य अधिकतर हो मलबे को कम करने एवं काजू के पेड़ों के नीचे उग रही खर-पतवार को समाप्त करना होता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांशतः इस तरह की आग मानव निर्मित प्रकृति की होती है और जिसके कारण अनजाने में या अन्यथा हो सकते हैं। जिसके लिए जांच शुरू कर दी गई है। अभूतपूर्व उच्च तापमान और तेज हवाओं के कारण अग्नि के प्रसार को और बढ़ावा मिला है।
अभी तक वनस्पति और जीव विविधता को कोई बड़ी हानि नहीं हुई है।
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