शाहीन बाग में प्रदर्शन के बाद किसान आंदोलन से मिला नया अवसर

ठीक एक साल पहले इन्हीं दिनों दिल्ली में भीषण दंगे हुए थे। इन दंगों की जड़ में वह शाहीन बाग आंदोलन था

Update: 2021-02-25 17:12 GMT

ठीक एक साल पहले इन्हीं दिनों दिल्ली में भीषण दंगे हुए थे। इन दंगों की जड़ में वह शाहीन बाग आंदोलन था, जिसके चलते लाखों लोगों को तीन महीने से अधिक समय तक परेशानी उठानी पड़ी थी। इस आंदोलन के चलते हजारों लोगों की रोजी-रोटी भी प्रभावित हुई थी। उस दौरान हिंसा की आशंका सदा बनी रहती थी और अंतत: हिंसा हुई भी। यह भी स्थापित हो चुका है कि उसकी तैयारी पहले से थी। हिंसा में मरे लोगों और उनके परिवारों के लिए मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आंदोलन एवं प्रदर्शन का अधिकार ऐसी त्रासदी बनकर आया, जिससे वे जीवन भर उबर नहीं पाएंगे। उस समय की हिंसा से देश का एक वर्ग प्रसन्न था।

शाहीन बाग धरना शायद लोग चलाते ही रहते, यदि कोरोना और हिंसा-आगजनी साथ-साथ न आ गए होते। जो लोग शाहीन बाग में व्यस्त थे, उन्हें किसान आंदोलन से नया अवसर मिल गया है। यह वही वर्ग है, जो एक व्यक्ति की जन-स्वीकार्यता से अपना भविष्य अंधकार में पाता है। इनमें असुरक्षित और निराश राजनेता और 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के दर्शन पर भविष्य बनाने वाले युवा शामिल हैं। इन्होंने सारी बुद्धि लगाकर 26 जनवरी का दिन चुना। जिस बेशर्मी से इस दिन पर भारत की प्रतिष्ठा और गरिमा पर कीचड़ उछाला गया, वह न तो आग्रह था, न ही उसका सत्य से कोई वास्ता था। वह पूर्णरूपेण दुराग्रह था। उस दिन देश की ही नहीं, किसान नेताओं की प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई। किसान तो एक आग्रह लेकर आए थे, लेकिन उनके बीच धीरे-धीरे गैर-किसान विध्वंसक तत्व हावी होने लगे। इसके बावजूद सरकार उनसे बातचीत करती रही। सरकार आज भी उनसे वार्ता के लिए तैयार है। यह सफल हो सकती है, यदि ये बाहरी तत्व किसान आंदोलन से अलग हो जाएं।

बहुत शिथिलतापूर्वक किया जाता है सत्याग्रह शब्द का उपयोग
गांधी जी की आंदोलन और सत्याग्रह की संकल्पना में निहित पवित्रता एवं पारदर्शिता उनके एक कथन से स्पष्ट होती है। 15 अप्रैल, 1933 को उन्होंने लिखा था, 'सत्याग्रह शब्द का उपयोग अक्सर बहुत शिथिलतापूर्वक किया जाता है, लेकिन इस शब्द के रचयिता के नाते मुझे यह कहने की अनुमति मिलनी चाहिए कि उसमें हिंसा का, फिर वह कर्म की हो या मन और वाणी की, पूरा बहिष्कार है।'


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