नाना ने किया पोती के साथ हैवानियत, कोर्ट ने सुनाई इतने साल की सजा

Update: 2022-05-16 00:54 GMT

मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट ने अपनी 13 साल की सौतेली पोती का यौन शोषण करने और मोबाइल पर पोर्न दिखाने के आरोप में 70 साल के व्यक्ति को 7 साल के कारावास की सजा सुनाई. इस दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि आरोपी की उम्र और बीमारी उसके प्रति उदारता दिखाने का आधार नहीं हो सकता. आरोपी ने पीड़िता को धोखा दिया और उसे बर्बाद कर दिया. यह उसके पूरे जीवन (विवाहित जीवन समेत) पर निशान छोड़ेगा.

इस दौरान स्पेशल जज ने कहा, 'नाबालिग बच्चे पर यौन हमले से जुड़े अपराध को पर्याप्त सजा देकर निपटा जाना चाहिए. बलात्कार या यौन हमला न केवल सभी महिलाओं के खिलाफ अपराध है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध है. पीड़िताएं उन हमलावरों के लिए आसान शिकार हैं जो अपनी हवस को पूरा करने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. छोटी लड़की जो आरोपी के साथ निकट संबंध में है, उसे आरोपी ने लूट लिया.'

साल 2014 का है मामला

यह मामला आरोपी व्यक्ति की सौतेली बेटी ने दर्ज कराया था, जबकि पीड़िता उसकी बेटी है. महिला के मुताबिक, सितंबर 2014 में वह किसी काम से बाहर गई थी और जब वापस लौटी तो देखा कि उसका सौतेला पिता उसकी बेटी को गलत तरीके से पकड़ रहा है और उसे फोन पर कुछ वीडियो दिखा रहा है. उन पर उसकी नजर देखकर सौतेले पिता ने लड़की को छोड़ दिया था, लेकिन शक होने पर महिला ने अपनी बेटी से पूछा. तब उसने बताया कि उसका सौतेला दादा उसका यौन शोषण करता था और उसे मोबाइल पर अश्लील सामग्री दिखाता था. वहीं दूसरी ओर आरोपी पक्ष का बचाव था कि पारिवारिक विवाद के कारण उनके खिलाफ मामला फिर से शुरू हो गया था. उनकी सौतेली बेटी ने 25,000 रुपये मांगे थे जो उन्होंने नहीं दिए थे. हालांकि कई गवाहों के बयान और सबूतों को देखते हुए अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट की जांच की, जिसमें पुष्टि की गई थी कि लड़की के साथ यौन उत्पीड़न किया गया था. इस दौरान न्यायाधीश शेंडे ने इस मुद्दे पर गौर किया कि लड़की ने पहले यौन उत्पीड़न के बारे में क्यों नहीं बताया और कहा, 'पीड़िता का मेडिकल टेस्ट मजबूत सबूत है. उसकी गवाही को केवल इसलिए खारिज करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि उसने पहले इसका खुलासा नहीं किया. यह हमारे समाज के लिए कोई नई बात नहीं है कि पीड़ित इस तरह के हमले झेल रहे हैं और सालों तक चुप रहे.'

उन्होंने अपने 36 पन्नों के फैसले में कहा कि, 'इस मामले में पीड़िता अगर कह रही है कि उसे आरोपी ने यह कहकर धमकी दी थी कि अगर उसने किसी को इस बारे में बताया तो वह उसके माता-पिता को मार देगा, इसलिए वो उसके दबाव में आ गई. उसने आरोपी के बेशर्म, दुस्साहसी और नंगे चेहरे का खुलासा नहीं किया, जो उसने उसके साथ काफी समय तक किया. यह हमारे समाज में नया नहीं है. ऐसा कई बार होता है कि अपमान, पारिवारिक सम्मान आदि के डर से परिवारों ने अपना मुंह बंद कर लिया. बचपन में उनके साथ किए गए इस तरह के कृत्यों की गंभीरता को बड़ों के समर्थन की कमी के कारण उन्हें भुगतना पड़ता है और बड़े होने पर उन्हें एहसास होता है तो उनकी भावनाएं क्या होंगी, क्या वे वास्तव में ऐसे वयस्कों का सम्मान करेंगे?' मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश शेंडे ने बच्चों को बहुत कम उम्र में मोबाइल फोन दिए जाने पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, 'मैं अपनी चिंता इस बात पर रखना चाहूंगा कि माता-पिता इतनी उम्र के बच्चों को मोबाइल देने से बचें क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं या वयस्क उनके साथ क्या कर रहे हैं.

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