सबसे ज्यादा चर्चित मुख्यमंत्री: 88 की उम्र में की दूसरी शादी, 92 की उम्र में भी बीजेपी अपनी पार्टी में लाना चाहती थी....
नई दिल्ली: वैसे तो राजनेता और विवादों का चोली-दामन का साथ रहता है. लेकिन कुछ नेता ऐसे होते हैं जिनका हर काम विवादों में रहता है. इस मामले में उत्तर प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने तो सारे रिकार्ड तोड़ दिए. वे सीएम की कुर्सी पर रहते हुए तो विवादों में रहे ही रहे 90 साल की उम्र में भी राजनीति में छाए रहे. आलम यह था कि जब बीजेपी अपने 75-80 साल के बुजुर्ग नेताओं को संरक्षक बनाकर किनारे कर रही थी, तब भी इस नेता को अपनी पार्टी में लाने की कोशिशें कर रही थी. वजह सिर्फ एक थी, इस नेता की विवादित लोकप्रियता.
हमेशा चर्चा में रहे एन डी तिवारी
विवाद होना और लोकप्रिय होना दो अलग चीजें लग सकती हैं लेकिन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के मामले में ये दोनों एक ही हैं. वे एक ऐसे नेता रहे जिसने 6 दशकों से ज्यादा समय तक राजनीति की और इस दौरान हमेशा चर्चा में भी रहे. फिर चाहे वजह उनका निजी जीवन ही क्यों न हो. नैनीताल के बूलती में 18 अक्टूबर 1925 को जन्मे एन डी तिवारी स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए राजनीति में आए. इसके बाद जेल गए, छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. प्रजा समाजवादी पार्टी से विधायक बने और फिर बाद में कांग्रेस में आ गए.
3 बार बने यूपी के सीएम
अविभाजित यूपी में एन डी तिवारी का राजनीतिक करियर खूब चमका. वे 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1976-77, 1985-85, 1988-89) रहे. बाद में 1 बार उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री (2002-2007) बने. इसके अलावा केंद्र सरकार में वित्त और संसदीय कार्य मंत्री, विदेश मंत्री भी रहे. आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे और पीएम पद के दावेदार भी रहे, लेकिन उनकी जगह पीवी नरसिम्हा राव पीएम बने.
शादी-पितृत्व भी बना विवादों की वजह
वैसे तो एन डी तिवारी 1954 में सुशीला तिवारी से शादी कर चुके थे, लेकिन कुछ साल बाद ही वे जनता पार्टी की सरकार में मंत्री रहे प्रोफेसर शेर सिंह की बेटी उज्जवला के प्यार में पड़ गए. उससे उन्हें बेटा भी हुआ लेकिन उन्होंने उसे अपना बेटा मानने से इंकार कर दिया. मामला कोर्ट तक पहुंचा और आखिरकार एन डी तिवारी को 14 मई 2014 को उज्ज्वला शर्मा से शादी करनी पड़ी. साथ ही बेटे रोहित शेखर के पिता होने की बात भी स्वीकारनी पड़ी. तब तक रोहित की उम्र 35 साल हो चुकी थी.
इतना सब होने के बाद भी राजनीति का उनसे और उनका राजनीति से मोह भंग नहीं हुआ. ना ही उनका राजनीतिक करियर किनारे लगा. अप्रैल 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले राजनाथ सिंह एन डी तिवारी से आर्शीवाद लेने पहुंचे थे. यहां तक कि इसके बाद भी बीजेपी ने एन डी तिवारी को पार्टी में लाने की कोशिश की. हालांकि तिवारी बीजेपी में शामिल नहीं हुए लेकिन अपना समर्थन जरूर दिया. आखिर में अपने जन्मदिन के दिन ही 2018 को एनडी तिवारी दुनिया को अलविदा कह गए.