तनवीर जाफ़री
विगत लगभग दो महीने से भारत का प्रमुख पुर्वोत्तरीय सीमावर्ती राज्य मणिपुर हिंसा की अभूतपूर्व आग में जल रहा है। यहां फैली अराजकता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई सेनाधिकारी मणिपुर की तुलना सीरिया, लेबनान व नाइजीरिया जैसे अशांत देशों के हालात से कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक केंद्रीय मंत्री,मणिपुर राज्य की भाजपा सरकार के राज्य मंत्री ,भाजपा के कार्यालय और भाजपा विधायकों के घर उपद्रवियों द्वारा आग के हवाले किये जा चुके हैं। ख़बरों के अनुसार एक हज़ार से अधिक घर फूंके जा चुके हैं जबकि 30 हज़ार से भी ज़्यादा लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो चुके हैं। स्थानीय मैतीय व जनजातीय कुकी समुदाय के बीच एसटी का दर्जा दिए जाने को लेकर आये एक अदालती फ़ैसले के बाद छिड़ी हिंसा इस स्तर तक पहुँच गयी कि वहां सत्ता से लेकर शासन प्रशासन ,पुलिस आदि सभी जगहों पर जातीय स्तर पर विभाजन की रेखायें खिंच गयी हैं। ख़बरें तो यहाँ तक हैं कि सुरक्षा बलों व पुलिस ने अपनी अपनी जातियों के लोगों को संवेदनशील हथियार तक बाँट दिए हैं। कुछ चतुर राजनीतिज्ञ व विश्लेषक इस हिंसा को हिन्दू व ईसाई संघर्ष के रूप में भी परभाषित कर रहे हैं और ईसाई मिशनरी द्वारा कथित तौर पर कराये जाने वाले धर्मांतरण को इस हिंसा का कारण बता रहे हैं। और इस तरह का विश्लेषण करने वाले लोग एक बार फिर पंडित नेहरू को वर्तमान मणिपुर संकट का ज़िम्मेदार बताने की कोशिश में भी जुट गए हैं। बहरहाल चीन व म्यांमार जैसे देशों के सीमावर्ती इस अशांत राज्य में अब तक दो सौ से अधिक लोगों के मारे जाने व तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों के ज़ख़्मी होने का भी समाचार है।
परन्तु मणिपुर में तो डबल इंजन की सरकार है? केंद्र व राज्य दोनों ही जगह भारतीय जनता पार्टी सत्तारूढ़ है? भाजपा तो स्वयं राज्य के विकास के लिये 'डबल इंजन ' की सरकार यहाँ तक कि भाजपा स्थानीय स्वायत शासन,ज़िला परिषद् व नगर निगम /पालिकाओं के चुनाव में ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने की अपील जनता से यही बताकर करती है कि एक ही पार्टी की सरकारों से विकास होगा,क़ानून व्यवस्था सुधरेगी आम लोगों की सभी ज़रूरतें पूरी होंगी आदि। फिर क्या वजह है कि मणिपुर इतना जलने लगा कि उस की तुलना सीरिया, लेबनान व नाइजीरिया जैसे देशों के हालात से की जाने लगी ? पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर को जलता हुआ छोड़कर अमेरिका का दौरा किया। वहां संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योग के द्वारा विश्वशांति स्थापित करने की बात की। प्रधानमंत्री द्वारा विश्वशांति की बातें करने से पहले क्या अपने ही देश के राज्य मणिपुर में शांति की अपील ज़रूरी नहीं थी ? ग़ौरतलब है कि 10 जून से ही भाजपा सहित राज्य के सभी विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री से मणिपुर के हालात पर चर्चा करने हेतु उनसे मिलने का समय मांग रहे थे। परन्तु वह बिना किसी से मिले व मणिपुर के लिये कोई सन्देश दिये बिना ही मणिपुर को जलता छोड़ अपनी अमेरिका यात्रा पर चले गये।
यह भी देखा गया है कि यदि ऑस्ट्रेलिया अथवा कनाडा में किसी मंदिर पर हमले के ख़बर आती है तो सरकार की ओर से अपना विरोध दर्ज कराया जाता है। इसी वर्ष मार्च में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीज़ के साथ हुई अपनी द्विपक्षीय वार्ता के दौरान ऑस्ट्रेलिया में गत दिनों हिंदू मंदिरों पर हुए हमले का मुद्दा उठाया था। पीएम मोदी ने स्वयं कहा था कि -' मैंने ऑस्ट्रेलिया में मंदिरों पर हमले की रिपोर्ट देखी है। मैंने इस मुद्दे को प्रधानमंत्री अल्बानीज़ के सामने उठाया। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय की सुरक्षा और भलाई उनकी प्राथमिकता है।' ऐसे में मणिपुर के लोगों का यह सवाल क्या स्वाभाविक नहीं कि जब भारतीय राज्य मणिपुर में कथित तौर पर 600 से अधिक चर्च व मंदिर जलाये व तोड़े जा चुके हों इन हालात में क्या प्रधानमंत्री द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री को तलब नहीं करना चाहिये ? क्या उन्हें राज्य की जनता से शांति की अपील नहीं करनी चाहिये ? कितना दुखद है कि राज्य में हिंसा शुरू होने के 26 दिनों बाद गृह मंत्री द्वारा राज्य का दौरा किया गया । वे वहाँ तीन दिन रुके भी। परन्तु स्थिति नियंत्रित होने के बजाये हिंसा और भी बढ़ गयी। पूरा राज्य बंद ,ब्लॉकेड ,प्रदर्शन ,भीड़ तंत्र,आगज़नी ,लूट ,हिंसा व रक्तपात की भेंट चढ़ गया।
मणिपुर में जारी इसी हिंसा के दौरान गत 18 जून को प्रधानमंत्री ने जनता से इकतरफ़ा संवाद का अपना कार्यक्रम 'मन की बात ' पेश किया। मणिपुर में कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने इस अवसर पर 'मन की बात ' प्रसारित करते हुये सैकड़ों ट्रांजिस्टर,रेडिओ व मोबाइल को सड़कों पर तोड़ कर प्रधानमंत्री के पसंदीदा कार्यक्रम 'मन की बात ' के प्रति अपना रोष जताया। उधर प्रधानमंत्री ने भी 'मन की बात ' में मणिपुर हिंसा का कोई ज़िक्र करना या मणिपुर की जनता से शांति की अपील करना तक मुनासिब नहीं समझा। जबकि कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं द्वारा राज्य की जनता से शांति की अपील भी की गयी। मणिपुर की डबल इंजन की सरकार के मुखिया भाजपा नेता मुख्यमंत्री बीरेन सिंह स्वयं यह स्वीकार कह चुके हैं कि राज्य में फैली हिंसा इंटेलिजेंस व सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी का परिणाम है। परन्तु मुख्यमंत्री की इस स्वीकारोक्ति के बावजूद केंद्र सरकार राज्य की सरकार को बर्ख़ास्त करने व राष्ट्रपति शासन लगाने में अपनी तौहीन समझ रही है। हां गृह मंत्री अमितशाह ने गत 24 जून को मणिपुर के विषय पर एक सर्वदलीय बैठक ज़रूर बुलाई। इस बैठक में जहां सरकार की ओर से उठाए गये कदमों की जानकारी दी गयी वहीं विपक्षी दलों ने यह मांग की कि मणिपुर के वास्तविक हालात को समझने के लिये एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजा जाना चाहिए।
इन परिस्थितियों में यह सवाल भी स्वभाविक है कि यदि यही स्थिति बंगाल में होती तो क्या केंद्र सरकार ममता बनर्जी को चैन से बैठने देती ? जोकि राज्य के पंचायत चुनावों पर राजभवन के माध्यम से पूरी निगरानी रख रही है ? यदि इसी तरह सरकारी शस्त्र कश्मीर,केरल या बंगाल में उपद्रवियों के हाथ लग गये होते तो सरकार सहित इस समय जलते मणिपुर पर चुप्पी साधे बैठा देश का 'गोदी मीडिया' कितना विलाप कर रहा होता ? दरअसल मणिपुर की हिंसा मैतेई और कुकी समुदायों की जंग नहीं बल्कि भाजपा की नीतियों व मुख्यमंत्री की नाकामियों का परिणाम है। कहीं ऐसा न हो कि यह हिंसा राज्य के नागा व दूसरे समुदायों में व शेष पूर्वोत्तर राज्यों में न फैल जाये। यदि केवल सत्ता के लिए यहां भी बहुसंख्यवाद का खेल खेलने की कोशिश की जा रही है तो यह इस सीमावर्ती राज्य के लिये ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर के लिये ख़तरनाक साबित होगा। सरकार की पहली ज़िम्मेदारी है कि राज्य में परस्पर विश्वास बहाली स्थापित करे, राज्य से लगती सभी सीमाओं को सील करे। लोगों को निःशस्त्र करे और लूटे व बांटे गये हथियारों को वापस ले। राज्य की सरकार को बर्ख़ास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाये और क़ानून व्यवस्था सेना के हवाले करे। और यह स्वीकार करे कि उसका डबल इंजन फ़ार्मूला पूरी तरह फ़ेल साबित हुआ है। अन्यथा देश में सुनाई दे रही अखंड भारत की अंतर्ध्वनि के मध्य सुलगता हुआ मणिपुर सरकार की मंशा और उसकी हक़ीक़त को साफ़ परिलक्षित कर रहा है।