महाराष्ट्र न्यूज़: कुपोषण को लेकर सामने आई ये रिपोर्ट

Update: 2022-04-26 04:03 GMT

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मुंबई: पिछले तीन साल में महाराष्ट्र के 16 जिलों में बच्चों में कुपोषण के करीब 15 हजार 253 मामले सामने आए हैं. ये सभी 16 जिले आदिवासी बहुल इलाके हैं. कुपोषण के शिकार कई बच्चों की मां नाबालिग थीं. इसका खुलासा उस रिपोर्ट से हुआ है जिसे एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोनी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में पेश किया है.

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली पीठ महाराष्ट्र के मेलघाट के आदिवासी जिलों में कुपोषण के मामलों में जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही है. पिछली सुनवाई के दौरान पीठ को सूचित किया गया था कि क्षेत्र में बाल विवाह के कारण कई माताएं कुपोषित बच्चों की देखभाल करना नहीं जानती हैं. कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट और जिला कलेक्टर को 16 आदिवासी जिलों का दौरा करने और बाल विवाह के कारणों का पता लगाने के लिए कहा था.
महाराष्ट्र सरकार ने दो अधिकारियों को नियुक्त करने के बजाय तीन अलग-अलग लोगों को नियुक्त किया. इनमें पुणे स्थित जनजातीय अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान के एक आईएएस अधिकारी जो खुद आदिवासी हैं, एक एमबीबीएस और एक अन्य शामिल थे. इन तीनों लोगों ने रिपोर्ट सौंपी.
पिछले तीन वर्षों में कुपोषण के कारण मरने वाले बच्चों की कुल संख्या में से 5,031 अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे. कुंभकोनी ने अदालत में दावा किया कि उन्होंने पिछले तीन वर्षों में लगभग 1,541 बाल विवाहों को होने से सफलतापूर्वक रोका है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला परिषद के जिला कार्यक्रम अधिकारियों और जिला स्वास्थ्य अधिकारियों की ओर से एक सर्वे किया गया था जिसमें कहा गया था कि पिछले तीन वर्षों में गंभीर तीव्र कुपोषण (SAM) के 26,059 मामले सामने आए, जिनमें से 20,293 मामले अनुसूचित जनजाति के थे. इसके अलावा, मध्यम तीव्र कुपोषण (MAM) के 1,10,674 मामले सामने आए, जिनमें से 79,310 एसटी समुदाय के थे.
SAM के 3,000 मामलों में बच्चों की मां नाबालिग थीं. MAM के मामलों में यह संख्या 11,652 थी. जिन अन्य स्थानों से कुपोषण के मामले सामने आए उनमें नंदुरबार, अमरावती, नासिक, ठाणे, पालघर और गढ़चिरौली शामिल हैं.
नंदुरबार जिले में कुपोषण के कारण 1270 बच्चों की मौत, जिसमें एसटी समुदाय से 1189 मौतें शामिल हैं. इनमें 137 मामलों में बच्चों की मां नाबालिग थीं. अमरावती जिले में 729 बच्चों की मौत हुई जिसमें एसटी समुदाय से 645 बच्चों की मौत शामिल है, 75 में मामलों में मां नाबालिग थीं. वहीं, गढ़चिरौली जिले में 704 मौतें हुईं, जिसमें 465 मामले एसटी समुदाय के थे, जिनमें से 88 मामले मां के नाबालिग होने के थे.
इन आंकड़ों को देखने के बाद कोर्ट ने कहा, "आदिवासी समुदाय में प्रचलित बाल विवाहों को देखते हुए सरकार के लिए जरूरी है कि ऐसे समुदायों में बुजुर्गों को जागरूक किया जाए और उन्हें इसके दुष्प्रभावों से अवगत कराया जाए. पीठ ने आगे कहा, "हम आशा और विश्वास करते हैं कि सरकार बाल विवाह से संबंधित कानून के प्रावधानों को उचित रूप से लागू करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी. अदालत ने याचिकाकर्ताओं से सरकारी रिपोर्टों का जवाब देने और सुझाव देने को कहा और आगे की सुनवाई 20 जून के लिए स्थगित कर दी.
साभार: आजतक


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