केरल राज्यपाल ने पढ़ाया- रामचरित मानस के दोहे और अरबी की कहावत से धर्मनिरपेक्षता का पाठ

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सोमवार को दिल्ली में भाजपा नेता जगदीश ममगांई की लिखी किताब 'लहू से लिखी आजादी' का करते हुए।

Update: 2021-08-10 09:14 GMT

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सोमवार को दिल्ली में भाजपा नेता जगदीश ममगांई की लिखी किताब 'लहू से लिखी आजादी' का करते हुए. कार्यक्रम में मौजूद लोगों को ऋग्वेद-गीता के उपदेश, रामचरित मानस के दोहे और अरबी की कहावत के जरिए सेक्युलिरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल खान ने कहा कि भारत का सेक्युलिरिज्म कोई पश्चिम से आयातित कल्पना नहीं है। सेक्युलिरिज्म का मतलब भारत में धर्म विरोधी भावना नहीं है। सेक्युलिरिज्म का मतलब है देश में विभित्ता को स्वीकरना और उसका आदर करना है। आज दूसरे देशों की संस्कृतियां नस्ल, भाषा और धार्मिक आस्था के आधार पर प्रभावित होती है। लेकिन भारत की संस्कृति आज भी आत्मा से परिभाषित होती है। आज देश की संस्कृति ही हमारी एकता का आधार है। आज भारत ने किसी भी बांटने वाली संस्कृति को अपना आधार नहीं बनाया है। बल्कि जो बदल नहीं सकता ऐसी संस्कृति को आधार माना है। हमारी संस्कृति की मांग केवल एक ही है, अपने आप में दूसरे को देखो और सबके अंदर एक को देखो और एक में सबको देखो।

इतिहास को भुला देंगे तो भूगोल को भी होगा खतरा
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल खान ने कहा कि आज चाहे हम आजादी की चर्चा करें चाहे संस्कृति की चर्चा करें या फिर नैतिकता की बात करें। ये काम बात करने से कभी पूरा नहीं होता है। इस काम को हमारी नस्लों को आगे बढ़ाना होता है। अगर आज हम अपने इतिहास को भूला देंगे तो भूगोल को भी खतरा पैदा हो जाएगा। समारोह में अरबी की कहावत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'अगर तुम ज्ञान को सुरक्षित रखना चाहते हो तो उसे लिख लो। लिखना ऐसे जैसे जंगली जानवर को पालतू बना लेना। ताकि इससे लोगों को फायदा हो जाए।'
1857 की क्रांति का जिक्र का करते हुए खान ने कहा कि 1857 का आंदोलन असफल जरूर हुआ लेकिन इस आंदोलन से आजादी पाने की इच्छा हमारे लोगों में पैदा हुई थी। अगर इस तरह का आंदोलन नहीं होता तो देश को आजादी हासिल करने में बहुत समय लग जाता। पहले कदम के तौर पर 1857 का आंदोलन एक कामयाब कदम था। लेकिन लक्ष्य के तौर पर हमें उसमें सफलता नहीं मिली। देश के आजादी के जो क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी रहे उनके साथ जो हमें सम्मान करना चाहिए था वह हम नहीं कर सके। इसलिए हम दोषी भी हैं। लेकिन अगर हमें हमारी गलती का अहसास भी हो जाता है तो ये भी अपने आप में एक सकारात्मक है।
भारतीय संस्कृति समन्वय की संस्कृति
खान ने कहा, रामचरितमानस को हम धार्मिक दृष्टि से देखते हैं। अगर हम उसकी गहराई में जाएं तो जानेंगे कि तुलसीदास केवल भक्त नहीं थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होनें जो कुछ अपने पात्रों के मुंह से कहलवाया है, वे सभी चीजें उस वक्त भारत में बिल्कुल गैरहाजिर थी। भारतीय संस्कृति समन्वय की संस्कृति है। हम उस रास्ते से भटक गए हैं इसलिए हमें पतन के काल से भी गुजरना पड़ा। इसके परिणामस्वरुप जिसने जब चाहा भारत पर कब्जा किया। जब तक समन्वय के माध्यम से समाज में एकता स्थापित नहीं होगी हमारी ये दुर्दशा बनी रहेगी। समन्वय ही समाज को सजग बनाता है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में हुए इस पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में अमर उजाला डॉट कॉम के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा और वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी ने अपने विचार रखे।
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