कर्नाटक आरक्षण मुद्दा: ध्रुवीकरण की दिशा में एक और क़दम

Update: 2023-04-02 03:55 GMT

 तनवीर जाफ़री

चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों की तारीख़ की घोषणा कर दी है। राज्य में विधानसभा चुनाव हेतु 10 मई को केवल एक चरण में ही मतदान होगा। जबकि चुनाव के नतीजे 13 मई को आएंगे। चुनावों की तारीख़ की घोषणा से ठीक एक सप्ताह पूर्व राज्य की वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की बासवराज बोम्मई सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए दिये जा रहे चार प्रतिशत आरक्षण को समाप्त करने की घोषणा की है । साथ ही आरक्षण के इस 4 % कोटे को राज्य के दो प्रमुख समुदायों को दिये जा रहे वर्तमान आरक्षण में जोड़ने की घोषणा भी कर दी। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद ओबीसी श्रेणी के 2बी वर्गीकरण के अंतर्गत राज्य के मुसलमानों को अब तक दिए जा रहे 4 प्रतिशत आरक्षण को अब दो बराबर हिस्सों में विभाजित कर दिया गया है। वोक्कालिंगा और अन्य समुदाय के लिए पूर्व में दिया जा रहा चार प्रतिशत आरक्षण अब बढ़कर छह प्रतिशत हो जाएगा। साथ ही वीरशैव पंचमसाली और अन्य (लिंगायत) समुदाय जिन्हें राज्य में अब तक पांच प्रतिशत आरक्षण हासिल था, उन्हें अब सात प्रतिशत आरक्षण मिलने लगेगा। ग़ौर तलब है कि 1994 में जब एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे उसी के बाद 1995 में राज्य के मुसलमानों को आरक्षण देने का फ़ैसला किया गया था। इसके तहत आरक्षण की कैटेगरी बी-2 बनाकर अलग से अल्पसंख्यकों को 4 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया था। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद रंगनाथ कमीशन ने मुसलमानों की दशा देखते हुये अपनी रिपोर्ट में मुस्लिमों को अलग से आरक्षण देने की सिफ़ारिश की थी।

बहरहाल इस पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण बयान गृह मंत्री अमित शाह का था। शाह ने पिछले दिनों अपने कर्नाटक दौरे पर बीदर में आयोजित चुनावी जनसभाओं को संबोधित करते हुए कर्नाटक सरकार के उस निर्णय का बचाव किया जिसके तहत मुस्लिम समुदाय को अब तक दिया जा रहा 4 फ़ीसदी आरक्षण ख़त्म कर दिया गया है। उन्होंने कथित 'वोट बैंक की राजनीति' के लिए मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान करने के लिए कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुये कहा कि- 'भाजपा कभी तुष्टिकरण में विश्वास नहीं करती। इसलिए उसने आरक्षण व्यवस्था में बदलाव का फ़ैसला किया।' उन्होंने कहा, 'बीजेपी ने अल्पसंख्यकों को दिया गया चार प्रतिशत आरक्षण समाप्त कर दो प्रतिशत आरक्षण वोक्कालिंगा और दो प्रतिशत आरक्षण लिंगायत समुदाय को दिया।' उन्होंने यह भी कहा कि 'अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण संवैधानिक तौर पर वैध नहीं है। संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। कांग्रेस सरकार ने इसे अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के तहत किया और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की।'

यहां यह भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि यही वह राज्य है जहां गत वर्ष दक्षिणपंथियों ने कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने का विरोध किया था उसके बाद यही हिजाब विवाद अंतर्राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में भी छाया था। इसी राज्य में अक्सर यही दक्षिण पंथी ताक़तें शेर-ए-मैसूर स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान का विरोध करती रहती हैं। सत्ता में आने के तुरंत बाद बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। बीजेपी की इसी बोम्मई सरकार में ही इसी राज्य में हिजाब विवाद के अतिरिक्त मलाली मंदिर-मस्जिद विवाद, हलाल मांस , मुस्लिम कारोबारियों के बहिष्कार ,कभी अज़ान का विरोध तो कभी हेडगेवार के भाषण को आधिकारिक तौर पर स्कूली पाठ में शामिल करने जैसी विवादस्पद बातों को लेकर काफ़ी सांप्रदायिक तनाव रहा है । इसके अतिरिक्त राज्य के तुमकुरु और शिमोगा में सावरकर और टीपू सुल्तान के पोस्टर को लेकर विवाद पैदा हुआ था और साम्प्रदायिक हिंसा भी हुई थी । राज्य में हिंदू संगठन रेस्टोरेंट,पार्क,बार और पब आदि में युवक-युवतियों पर हमला करके मॉरल पुलिसिंग करने की कोशिश कर चुके हैं। यहां 'लव जिहाद' नामक कैंपेन भी चलाया जा चुका है। 'लव जिहाद' के नाम पर कट्टरपंथी हिंदू संगठन मुसलमान युवकों पर शादी के ज़रिए हिंदू महिलाओं को मुसलमान बनाने का आरोप लगाते रहते हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सभी विवाद भाजपा द्वारा मुसलमानों को हाशिए पर लाने की कोशिश और इसी बहाने हिंदूवादी मतों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के प्रयास के तहत जानबूझकर पैदा किये गये।

और इन सब के साथ यह भी अति महत्वपूर्ण यह कि पिछले दिनों इसी राज्य से होकर राहुल गाँधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा गुज़री है । इस यात्रा ने राज्य में क़रीब 500 किलोमीटर का फ़ासला तय किया है। 24 दिनों तक लगातार कर्नाटक से गुज़रते हुये भारत जोड़ो यात्रा को प्रतिदिन अभूतपूर्व जन समर्थन हासिल हुआ। माना जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा की सफलता और इस यात्रा से राज्य में कांग्रेसजनों के बढ़े हौसले आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को काफ़ी लाभ पहुंचा सकते हैं। किसी समय में कर्नाटक कांग्रेस का अभेद दुर्ग माना जाता था। भाजपा इसी बात को लेकर भयभीत है। अन्यथा देवगौड़ा सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों को दिये गये चार प्रतिशत आरक्षण के लिये कांग्रेस पर 'तुष्टिकरण ' जैसा आरोप लगाने की क्या ज़रुरत थी ? परन्तु भाजपा इस बात से वाक़िफ़ है कि उसका हिंदूवादी वोट बैंक हिंदू हितों पर आधारित नहीं बल्कि प्रखर मुस्लिम विरोध के फलस्वरूप हासिल होता है। गुजरात को संघ की प्रयोगशाला यूँही नहीं कहा जाता। यहाँ भाजपा की मज़बूती का आधार मुस्लिम विरोध और उन्हें हाशिये पर डालना ही था। यही वास्तविक गुजरात मॉडल है जिसे पूरे देश में लागू करने के प्रयास किये जा रहे हैं। असम में बड़ी संख्या में मदरसों को बंद कराया जाना,भाजपा शासित विभिन्न राज्यों में ज़िलों,शहरों,क़स्बों व स्टेशन्स के नाम बदला जाना, मुसलमानों के विरुद्ध खुले आम सार्वजनिक स्थलों से अनेकानेक विशिष्ट राजनैतिक व धार्मिक लोगों द्वारा विष वमन करना,दंगाइयों,मॉब लिंचिंग करने वालों यहाँ तक कि मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों को महिमामंडित करना, गोया किसी न किसी बहाने मुस्लिम विरोध का परचम बुलंद रखना यहाँ तक कि कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का ख़त्म किया जाना आदि, यह सभी धर्म के आधार पर हिंदूवादी मतों को अपने पक्ष में लामबंद करने के ही प्रयास हैं।

भारतीय जनता पार्टी इस समय मंहगाई,बेरोज़गारी से लेकर भारतीय इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक घोटाले यानी अडानी प्रकरण को लेकर काफ़ी दबाव में है। पुरानी पेंशन बहाली को लेकर सरकारी कर्मचारी जगह जगह आंदोलनरत हैं। किसान व छात्र भी सरकार से नाराज़ हैं। और पिछले दिनों सूरत की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी को संसद की सदस्य्ता से अयोग्य ठहराये जाने का मामला भी नरेंद्र मोदी सरकार के लिये गले की फांस बन गया है। इन परिस्थितियों में मुस्लिम विरोध व उत्पीड़न के साथ हिन्दुत्ववाद की धर्म ध्वजा को बुलंद रखना केवल यही रणनीति भाजपा को फ़ायदा पहुंचा सकती है। सरकार की तमाम नाकामियों के बीच कर्नाटक में मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म किये जाने का मुद्दा राज्य में 10 मई को होने जा रहे विधानसभा चुनाव से लेकर 2024 के आम चुनावों तक एक मुद्दा ज़रूर रहेगा। इससे भाजपा को क्या लाभ होगा यह तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा परन्तु यह तो तय है कि कर्नाटक आरक्षण मुद्दा भाजपा के हिंदूवादी मतों के ध्रुवीकरण के प्रयासों की दिशा में ही एक और क़दम है। 

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