कल्याण सिंह ने राम मंदिर के लिए दांव पर लगा दी थी अपनी सरकार, जाने 90 के दौर में मोदी-शाह-नड्डा का राजनीतिक सफर

Update: 2021-08-22 04:20 GMT

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह का शनिवार रात निधन हो गया. 89 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले कल्याण सिंह को भारतीय राजनीति में हमेशा एक बड़े और ताकतवर नेता के तौर पर याद किया जाएगा. राम मंदिर आंदोलन में उनकी भूमिका, यूपी में पहली बार बीजेपी की सरकार बनाने में उनका योगदान, देश के सबसे बड़े राज्य का दो बार सीएम बनने का गौरव, कल्याण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में सबकुछ पाया. 90 का दौर तो उनकी राजनीति के लिहाज से काफी खास रहा. उन्हीं सालों में उन्होंने दो बार यूपी की सत्ता भी संभाली और मंदिर आंदोलन को धार भी दी.

उस दौर में कल्याण सिंह बीजेपी के एक दिग्गज नेता थे. ऐसे नेता जिन्हें अटल बिहारी वाजयेपी के बाद सबसे ज्यादा माना जाता था. उनका भाषण देने का अंदाज भी उन्हें लोगों के बीच हमेशा लोकप्रिय रखता था. लेकिन जिस समय कल्याण सिंह के राजनीतिक सितारे बुलंदियों को छू रहे थे, तब बीजेपी के आज के दिग्गज नेता कहां थे? पीएम नरेंद्र मोदी 90 के दौर में क्या काम करते थे? गृह मंत्री अमित शाह को तब क्या जिम्मेदारी मिलती थी? बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की तब राजनीति कैसी चलती थी? एक नजर डालते हैं तीनों नेताओं के तब के राजनीतिक सफर पर-
नरेंद्र मोदी
90 के दौर में नरेंद्र मोदी बीजेपी के बड़े नेता बनने की ओर अग्रसर थे. वे पार्टी के लिए प्रचार करते थे, चुनावी रणनीति तैयार करते थे और जगह-जगह बीजेपी का विस्तार करने पर जोर देते थे. जब कल्याण सिंह पहली बार 24 जून 1991 को यूपी के सीएम बने थे, उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी संग काफी काम किया करते थे. एक तरफ उन्होंने आडवाणी संग 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाई, तो वहीं बाद में उन्होंने अपने मिशन कश्मीर को भी धार देने का काम किया.
1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा की बात करें तो उस समय लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा नरेंद्र मोदी को समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई उस रथ यात्रा में मोदी लगातार आडवाणी संग थे. यहीं से उनका मंदिर आंदोलन से जुड़ाव शुरू हुआ था जो आने वाले कई सालों में और ज्यादा मजबूत होने जा रहा था. वैसे उस मंदिर आंदोलन के दौरान भी नरेंद्र मोदी को एक बड़े नेता के तौर पर देखा जाने लगा था. उस वक्त वे नेशनल इलेक्शन कमिटी के सदस्य हुआ करते थे.
इसके दो साल बाद 26 जनवरी 1992 को नरेंद्र मोदी ने अपने मिशन कश्मीर को धार देने का काम किया था. वे बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा का हिस्सा बने थे. तब दोनों श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंचे थे. ऐसे में उस दौर में नरेंद्र मोदी सिर्फ राजनीति में सक्रिय नहीं थे, बल्कि जमीन पर जा लगातार काम कर रहे थे. उन्हें उनकी इस मेहनत का कुछ सालों बाद फल भी मिला था.
मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया था. उस वक्त तक वे गुजरात की राजनीति में तो बड़ा चेहरा बन ही गए थे, अब राष्ट्रीय राजनीति में भी धमक दिखाने लगे थे. लेकिन 1995 में जब गुजरात में बीजेपी ने पहली बार अपनी सरकार बनाई थी, तब पार्टी अंदरूनी कलह का शिकार हुई. सीएम तो वरिष्ठ नेता केशु भाई पटेल को बनाया गया, लेकिन उस फैसले ने तब शंकर सिंह वाघेला को नाराज कर दिया. उनकी नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि जब पटेल अमेरिका दौरे पर गए, उस समय वाघेला ने गुजरात बीजेपी के 55 विधायकों को अपने साथ कर लिया और उन्हें एक निजी विमान के जरिए अहमदाबाद भेज दिया.
ऐसा कर वाघेला ने बीजेपी हाई कमान पर तगड़ा दवाब बनाया और उनके सामने अपनी सबसे बड़ी मांग भी रख दी. उन्होंने नरेंद्र मोदी को गुजरात से दूर भेजने की शर्त रख दी. अब क्योंकि उस दौर में बीजेपी ने गुजरात में नई-नई सरकार बनाई थी, ऐसे में वाघेला की मांग को मान लिया गया और फिर नरेंद्र मोदी 1995 से 2001 तक गुजरात से बाहर रहे. लेकिन उस समय भी मोदी की गुजरात पर पकड़ ढीली नहीं पड़ी थी. उन्हें हर छोटी- बड़ी गतिविधि की जानकारी रहती थी. उसकी मुख्य वजह थी अमित शाह.
अमित शाह
नरेंद्र मोदी की तरह अमित शाह भी काफी कम उम्र में राजनीति के साथ जुड़ गए थे. उनका चाणक्य वाला अंदाज भी कई साल पहले ही बीजेपी समझ चुकी थी. वे चुनावी रणनीतियां बनाने में सिर्फ आज माहिर नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक प्रचार तो वे पिछले तीन दशक से काफी प्रभावी अंदाज में करते आ रहे हैं. जब 1991 में कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब शाह यूपी से 1399 किलोमीटर दूर गुजरात में लाल कृष्ण आडवाणी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. बाद में 1996 में शाह ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी यही काम किया था. चुनाव प्रचार करते-करते अमित शाह खुद एक लोकप्रिय नेता में बदल गए और फिर उन्होंने अपना पहला चुनाव साल 1997 में लड़ा.
शाह ने गुजरात की सरखेज विधान सभा सीट पर उपचुनाव लड़ा था और उन्होंने पहली ही बार में जीत हासिल की. इसके बाद से शाह लगातार चार बार जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में अब तक हर चुनाव जीता है. 90 के दौर में तो उन्होंने इसकी सिर्फ एक झलक दिखाई थी. इसके बाद साल 1999 में अमित शाह को एक और बड़ी जिम्मेदारी मिल गई थी. वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक के प्रेसिडेंट बन गए थे. हमेशा जाति के दम पर जिस चुनाव को जीता जाता था, उस चुनाव में शाह ने फतेह हासिल की थी. उन्होंने सिर्फ एक साल के अंदर एक डूबते हुए बैंक को प्रॉफिट में ला दिया था. ये अलग बात रही कि तब विपक्ष आरोप लगाता था कि उस बैंक में ज्यादातर पदों पर सिर्फ बीजेपी के लोगों को ही जिम्मेदारी दी जाती थी.
जेपी नड्डा
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राजनीति में काफी लंबा और सफल सफर तय कर लिया है. अखिल भारतीय विद्यार्थी (ABVP) से अपनी राजनीति शुरू करने वाले नड्डा को साल 1991 में पहली बड़ी जिम्मेदारी मिली थी. वे भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा (BJYM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए थे. इसके ठीक दो साल बाद 1993 में जेपी नड्डा ने पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा था. उन्होंने हिमाचल प्रदेश की बिलासपुर सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वे उसमें जीत गए. उन्हें तब नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया गया था. अब नड्डा की उस जीत के मायने इसलिए भी काफी ज्यादा रहे क्योंकि 1993 के हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली थी. वो ऐसी हार थी जिसमें सीएम खुद अपनी कुर्सी भी नहीं बचा पाए थे. लेकिन उस मुश्किल परिस्थिति में भी जेपी नड्डा ने अपनी चुनावी राजनीति का जीत से आगाज किया था.
नड्डा ने 90 के दौर में अपनी चुनावी जीत का सिलसिला जारी रखा था. 1993 के बाद 98 के चुनाव में भी जेपी नड्डा विजयी रहे थे. तब बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री बनाया था और नड्डा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बना दिए गए थे. 90 के दशक में जेपी नड्डा एक बड़े नेता के तौर पर जरूर उभर रहे थे, लेकिन क्योंकि उन्हें लो प्रोफाइल रहना पसंद रहता था, ऐसे में वे कभी ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहे और बस पार्टी के निर्देशों पर चल काम करते रहे.


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