जस्टिस एन वी रमना होंगे देश के 48 वें मुख्य न्यायाधीश

Update: 2021-03-24 06:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने अपने उत्तराधिकारी यानी अगले सीजेआई की नियुक्ति के लिए सरकार को जस्टिस एन वी रमन्ना (Justice NV Ramana) के नाम की सिफारिश भेजी है. जस्टिस एन वी रमन्ना एस ए बोबडे के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज हैं. जस्टिस एस ए बोबडे का कार्यकाल 23 अप्रैल को खत्म हो रहा है. सीजेआई बोबडे ने अपने कार्यकाल में कुछ अहम फैसलों में भूमिका निभाई है. कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों का मामला रहा हो या किसानों के आंदोलन को लेकर सुनवाई, सीजेआई बोबडे उसमें प्रमुख भूमिका में रहे. इसके अलावा, अयोध्या राम जन्मभूमि केस और पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के खिलाफ यौन शोषण के मामलों में भी एस ए बोबडे का अहम रोल रहा. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस 65 साल तक की उम्र तक पद पर रह सकते हैं और उन्हें संसद में अभियोग चलाए बगैर हटाना संभव नहीं होता. अनुच्छेद 124(4) इस अभियोग प्रक्रिया के बारे में बताता है. इसके अलावा, सीजेआई अपनी मर्जी से राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा देकर भी पद छोड़ सकते हैं.

कौन हैं जस्टिस एन वी रमन्ना?

जस्टिस नाथुलापति वेंकट रमन्ना का जन्म अविभाजित आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में अगस्त 27, 1957 को हुआ था. 2 फरवरी, 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. फिलहाल उनके कार्यकाल के दो ही साल बचे हैं, वे 26 अगस्त, 2022 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्होंने वकालत का काम 10 फरवरी, 1983 में शुरू किया था. चंद्रबाबू नायडू के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के दौरान, जस्टिस रमन्ना आंध्र प्रदेश सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल भी रहे थे. किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले रमन्ना ने विज्ञान और कानून में स्नातक की डिग्रियां हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट, केंद्रीय प्रशासनिक ट्राइब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट में कानून की प्रैक्टिस शुरू की. राज्य सरकारों की एजेंसियों के लिए वो पैनल काउंसिल के तौर पर भी काम करते थे. 27 जून, 2000 को वे आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में स्थायी जज के तौर पर नियुक्त किए गए. इसके बाद साल 2013 में 13 मार्च से लेकर 20 मई तक वो आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस रहे.

2 सितंबर 2013 को उनकी पदोन्नति हुई और वो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए. इसके बाद 17 फरवरी 2014 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों की पंक्ति में मौजूदा सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस एसए बोबडे के बाद वो दूसरे नंबर पर हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर के साथ विवाद?

मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने एक पत्र लिख कर कहा था कि जस्टिस एनवी रमन्ना और एन चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छे रिश्ते हैं. उन्होंने कहा था, "ये न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच गैर-जरूरी नजदीकी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं." अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि अविभाजित आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के बारे में एनवी रमन्ना की रिपोर्ट और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की टिप्पणी में समानताएं थीं. अपने पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा था, "माननीय जज और आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री के बीच नजदीकी के बारे में सभी जानते हैं. सच को साबित करने के लिए सबूत की जरूरत नहीं है. मुख्यमंत्री की टिप्पणी और माननीय जज की टिप्पणी में इतनी समानताएं हैं कि वो एक जैसी लगती हैं. दोनों चिट्ठियों के समय को देखें को इससे एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों के बीच बातचीत जारी थी."

जस्टिस एन वी रमन्ना ने दिया था जवाब

जब ये चिट्ठी लिखी गई थी, उस वक्त जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम के सदस्य थे. इस चिट्ठी का नतीजा ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एनवी रमन्ना की दी गई रिपोर्ट को खारिज कर दिया और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति की. उस वक्त अपने इंटरव्यू में जस्टिस रमन्ना ने कहा था, "देश के चीफ जस्टिस ने छह वकीलों पर मेरी राय मांगी थी जो मैंने किया. इससे आगे मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने क्या राय दी है, इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है."

उस वक्त मुख्यमंत्री और एनवी रमन्ना के पत्र सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को तीन दिन के अंतराल में मिले थे. दिए गए सुझावों पर जवाब देने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने एक महीने का वक्त लिया था, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एन चंद्रबाबू नायडू ने अपना जवाब भेजने के लिए 11 महीनों का वक्त लिया था. एक बार पुस्तक विमोचन के एक आयोजन के दौरान जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा था, "जजों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. चूंकि आरोपों पर सफाई देने का कोई रास्ता नहीं है इसलिए उन्हें आसान निशाना बनाया जा रहा है. ये गलत धारणा है कि रिटायर्ड जज आराम वाली जिंदगी जीते हैं."

जस्टिस रमन्ना के खिलाफ आपराधिक मामला?

बात साल 1981 की है जब जस्टिस रमन्ना नागार्जुन यूनिवर्सिटी में छात्र हुआ करते थे. उस दौरान यूनिवर्सिटी के बाहर बस स्टॉप की मांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में उन्होंने हिस्सा लिया था. इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट की एक बस में तोड़फोड़ की गई थी. मामले में दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि जस्टिस एनवी रमन्ना को सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से हटाया जाना चाहिए. वकीलों का आरोप था कि जस्टिस रमन्ना ने ये बात छिपाई कि बस में तोड़फोड़ के मामले में उनके खिलाफ आपराधिक मामला बना था. हालांकि इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया और दोनों वकीलों पर जुर्माना लगा दिया.

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