ISRO के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर ने जारी की रिपोर्ट, बताया- हर साल कई सेंटीमीटर धंस रहा शहर
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क: जब भी इंसान प्रकृति के काम में बाधा डालेगा, पर्यावरण खराब होगा. पहाड़ों पर बसे जोशीमठ, नैनीताल, शिमला, चंपावत या उत्तरकाशी को ही धंसने का खतरा नहीं है, बल्कि वो शहर भी धंस सकते हैं, जो समुद्री तटों के किनारे बसे हैं. ISRO के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर ने एक रिसर्च रिपोर्ट जारी की थी, जिसका खुलासा अब हुआ है. जिसमें कहा गया है कि अहमदाबाद समेत गुजरात के कई तटीय इलाके समुद्री कटाव (Sea Erosion) की वजह से धंस जाएंगे. या डूब जाएंगे.
इसरो स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के साइंटिस्ट रथीश रामकृष्णन और उनके साथियों ने मिलकर रिसर्च पेपर निकाला. जिसका नाम है- 'Shoreline Change Atlas of the Indian Coast- Gujarat- Diu & Daman'. इसमें बताया गया है कि गुजरात का 1052 किलोमीटर लंबा तट स्टेबल है. 110 किलोमीटर का तट कट रहा है. 49 किलोमीटर के तट पर यह ज्यादा तेजी से हो रहा है.
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि लगातार बढ़ता समुद्री जलस्तर (Sea Level Rising) और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) इसके पीछे बड़ा कारण है. गाद यानी सेडीमेंट्स की वजह से गुजरात में 208 हेक्टेयर की जमीन बढ़ी है. लेकिन समुद्री कटाव की वजह से गुजरात ने अपना 313 हेक्टेयर जमीन खो दिया है.
एक और स्टडी सामने आई है, जिसे किया है क्रुणाल पटेल और उनके साथियों ने. इसमें गुजरात के 42 साल के भौगोलिक इतिहास की स्टडी की गई है. इसमें बताया गया है कि कच्छ जिले में सबसे ज्यादा समुद्री कटाव हुआ है. सबसे ज्यादा यानी 45.9 फीसदी जमीन का कटाव हुआ है. पटेल और उनके साथियों ने गुजरात को चार रिस्क जोन में बांटा था. 785 किलोमीटर का तटीय इलाका हाई रिस्क जोन में और 934 किलोमीटर का इलाका मध्यम से कम रिस्क कैटेगरी में. ये इलाके रिस्क जोन में इसलिए हैं क्योंकि यहां पर समुद्री जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है.
रिसर्च के मुताबिक गुजरात के 16 तटीय जिलों में 10 जिलों में कटाव हो रहा है. सबसे ज्यादा कच्छ में. इसके बाद जामगनागर, भरूच और वलसाड में. इसकी वजह ये है कि खंभात की खाड़ी का सी सरफेस टेंपरेचर 1.50 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. सौराष्ट्र तट के पास पारा 1 डिग्री सेल्सियस और कच्छ की खाड़ी में 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. तापमान में इतनी वृद्धि पिछले 160 सालों में हुई है.
1969 में अहमदाबाद जिले के मांडवीपुरा गांव के 8000 ग्रामीणों और भावनगर जिले के गुंडाला गांव के 800 लोगों को विस्थापित होना पड़ा था. क्योंकि उनकी खेती की जमीन और गांव का हिस्सा समुद्र में डूब गया था. सामाजिक कार्यकर्ता प्रद्युम्नसिंह चुडास्मा कहते हैं अहमदाबाद और भावनगर की तरह खंभात की खाड़ी के पश्चिम तट पर बसे गांव भी खतरे में हैं. ये हैं- बवालयारी, राजपुर, मिंगलपुर, खुन, झांखी, रहतालाव, कामा तलाव और नवागाम. मॉनसून में बाढ़ आने पर समुद्री हाईटाइड के समय ये सभी गांव खाली हो जाते हैं.
दक्षिण गुजरात में वलसाड और नवसारी जिले के कई गांव इसी तरह के खतरे में हैं. उमरग्राम तालुका के करीब 15 हजार लोगों का जीवन और व्यवसाय खतरे में है. क्योंकि समुद्र का पानी उनके घरों में घुस जाता है. उमरग्राम तालुका पंचायत के पूर्व प्रधान सचिन मच्छी का मानना है कि जिस तरह दमन प्रशासन ने 7 से 10 किलोमीटर लंबी प्रोटेक्शन दीवार बनाई है. वैसे ही गुजरात सरकार को 22 किलोमीटर लंबी प्रोटेक्शन दीवार बनानी चाहिए.
इन सभी गांवों में समुद्री जलस्तर बढ़ने की वजह से डूबने का खतरा है. जबकि अहमदाबाद के धंसने का. इंस्टीट्यूट ऑफ सीस्मोलॉजी रिसर्च के साइंटिस्ट राकेश धुमका की स्टडी के मुताबिक अहमदाबाद हर साल 12 से 25 मिलिमीटर यानी सवा से ढाई सेंटीमीटर धंस रहा है. वजह है ग्राउंड वाटर का तेजी से निकाला जाना. अंडरग्राउंड वाटर को निकालने से बैन लगाना चाहिए. लोगों को पीने के पानी की अलग से व्यवस्था करनी चाहिए.