जब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल, मस्जिद में 'जय श्री राम' के नारे लगाना अपराध कैसे है, जानें क्‍या है पूरा मामला

अदालत ने पूछा, आरोपियों की पहचान कैसे की गई...

Update: 2024-12-16 11:14 GMT
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक सरकार से पूछा है कि क्या किसी मस्जिद में जयश्री राम का नारा लगाना अपराध है। इसके साथ ही अदालत ने पूछा कि एक मस्जिद में कथित तौर पर नारेबाजी करने वाले आरोपियों की पहचान कैसे की गई ? जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह भी पूछा है कि क्या आरोपियों की पहचान तय करने से पहले सीसीटीवी फुटेज या किसी अन्य तरह के साक्ष्य की जांच की गई थी।
शीर्ष अदालत कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि मस्जिद के अंदर जय श्रीराम का नारा लगाना धार्मिक भवनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ये सवाल अपीलकर्ता के वकील से पूछे और निर्देश दिया कि राज्य सरकार को भी शिकायत की एक प्रति दें। इस मामले में राज्य सरकार ने अभी तक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं की है।
दरअसल, हाई कोर्ट ने 13 सितंबर को उन दो शख्स के खिलाफ कर्नाटक पुलिस द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जिन पर एक मस्जिद में घुसकर जय श्रीराम का नारा लगाने और दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपमानित करने के आरोप थे। इस मामले में दक्षिण कन्नड़ जिले की पुलिस ने दो युवकों को पिछले साल एक स्थानीय मस्जिद में नारेबाजी करने के आरोप में नामजद किया था। इन दोनों पर मस्जिद में घुसकर जय श्रीराम का नारा लगाने और लोगों को धमकी देने के आरोप थे। कथित तौर पर दोनों आरोपियों ने मुस्लिमों को धमकी दी थी कि वे उन लोगों को शांति से रहने नहीं देंगे।
इसके बाद स्थानीय पुलिस ने दोनों व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से की गई हरकतें), 447 (अतिचार) और 506 (आपराधिक धमकी) सहित कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, बाद में दोनों शख्स ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस साल 13 सितंबर को हाई कोर्ट की जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ ने उन्हें राहत देते हुए मामला रद्द कर दिया था।
दोनों आरोपियों को राहत देते हुए तब हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में कथित हरकत का सार्वजनिक जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। इसके बाद मामले में शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने मामले को लेकर बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया है, तथा उसका दृष्टिकोण आपराधिक मामलों को रद्द करने की याचिकाओं से निपटने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध है।
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