भारत ने अपने कई मित्र देशों के साथ अपनी पनडुब्बी बचाव क्षमताओं के लिए पेशकश की

भारत समेत अमेरिका, चीन, रूस और सिंगापुर समेत 12 देशों के पास है पनडुब्बी बचाव क्षमता

Update: 2024-02-24 03:46 GMT

दिल्ली: पानी के अंदर पनडुब्बी की खोज और बचाव क्षमता हासिल करने के बाद भारत ने अपने कई मित्र देशों के साथ अपनी पनडुब्बी बचाव क्षमताओं के लिए पेशकश की है, जिसमें कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है। इस सिस्टम से समुद्र की गहराई में संकटग्रस्त पनडुब्बी के सटीक स्थान का पता लगाकर उसे खोजा जा सकता है। मौजूदा समय में यह सुविधा भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन, रूस और सिंगापुर के अलावा 12 देशों के पास है।

भारतीय नौसेना की विशाखापट्टनम में स्थित डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (डीएसआरवी) यूनिट के ऑफिसर इंचार्ज कैप्टन विकास गौतम ने बताया कि भारतीय नौसेना के पास समुद्र की गहराई में जलमग्न पोत की बचाव क्षमता है। इस प्रणाली में संकटग्रस्त पनडुब्बी का पता लगाने के लिए एक साइड स्कैन सोनार है, जो दूर से संचालित वाहन (आरओवी) की मदद से आपातकालीन कंटेनरों को तैनात करके पनडुब्बी के चालक दल को बचाता है। दरअसल, पनडुब्बी दुर्घटना में तीव्रता के साथ जीवन की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए इस सिस्टम को फ्लाईअवे कॉन्फ़िगरेशन में खरीदा गया है, जिससे समुद्र की गहराई में संकटग्रस्त पनडुब्बी के सटीक स्थान का पता लगाया जा सकता है।

कैप्टन गौतम ने बताया कि भारत ने डूबे हुए जहाजों और पनडुब्बियों का पता लगाने और जरूरत के अनुसार बचाव अभियान चलाने के लिए भारत ने 2018 में गहरे जलमग्न बचाव वाहन (डीएसआरवी) तैनात करने की क्षमता हासिल की है। दुर्घटनाग्रस्त पनडुब्बी को खोजने और बचाने की यह सुविधा कुछ चुनिन्दा देशों के पास ही है लेकिन भारतीय डीएसआरवी प्रौद्योगिकी और क्षमताओं के मामले में नवीनतम है। पनडुब्बी आकस्मिकता से निपटने के लिए भारत को यह प्रौद्योगिकी ब्रिटेन की कंपनी जेम्स फिशेज डिफेंस ने आपूर्ति की है, जो भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट पर स्थापित की गई है। इस प्रौद्योगिकी के जरिये विभिन्न प्रकार की पनडुब्बियों को खोजने के साथ ही कर्मियों को बचाकर पनडुब्बी से डीएसआरवी में सुरक्षित स्थानांतरण किया जा सकता है।

भारतीय नौसेना की पनडुब्बी बचाव इकाई के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हासिल की गई इन क्षमताओं को अज्ञात समुद्री धाराओं के मानचित्रण के लिए महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है, जो भारतीय नौसेना के पानी के नीचे प्लेटफार्मों के लिए उन्नत नेविगेशन समर्थन प्रदान करता है। लगभग 16 मीटर की औसत गहराई के कारण विशाखापत्तनम उन कुछ बंदरगाह शहरों में से एक है, जहां समुद्र में चलने वाले जहाजों के लिए गहरे प्रवेश द्वार हैं। यहां की प्राकृतिक खूबियों से पनडुब्बियों को तट के नजदीक तक संचालित किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में यह सुविधा भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन, रूस और सिंगापुर के अलावा 12 देशों के पास है। समुद्र में 650 मीटर की गहराई तक काम करने में सक्षम यह उन्नत तकनीक क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा के प्रति भारतीय नौसेना की प्रतिबद्धता को उजागर करती है। पनडुब्बी क्षमता वाले लगभग 40 देशों में से भारत सबसे आगे है। हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (एचएसएल) ने पनडुब्बी बचाव कार्यों के लिए स्वदेशी रूप से दो डाइविंग सपोर्ट जहाज (डीएसवी) निर्मित किये हैं, जिन्हें 22 सितंबर, 22 को लॉन्च किया गया था। नौसेना के लिए एचएसएल में स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित किए गए डाइविंग सपोर्ट वेसल्स (डीएसवी) अपनी तरह के पहले जहाज हैं।

उन्होंने बताया कि इन जहाजों को गहरे समुद्र में गोताखोरी कार्यों के लिए तैनात किया जाएगा। इसके अतिरिक्त गहरे जलमग्न बचाव वाहन (डीएसआरवी) के साथ आवश्यकता पड़ने पर 118.4 मीटर लंबे और 9,350 टन विस्थापन के साथ डीएसवी को पनडुब्बी बचाव अभियान चलाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अलावा ये जहाज निरंतर गश्त करने, खोज एवं बचाव अभियान चलाने और ऊंचे समुद्र में हेलीकॉप्टर संचालन करने में सक्षम होंगे। लगभग 80% स्वदेशी सामग्री के साथ डीएसवी परियोजना ने काफी स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा किए हैं और स्वदेशीकरण को भी बढ़ावा दिया है, जो बदले में भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में सहायता करेगा।

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