नई दिल्ली: एक अमेरिकी अखबार में छपी रिपोर्ट के बाद पहले से ही तनावपूर्ण भारत-कनाडा के रिश्ते और भी खराब हो गए हैं। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया कि कनाडा में सिख चरमपंथियों के खिलाफ अभियान के आदेश भारत सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिए थे। पूरे घटना क्रम से यह सवाल उठता है कि कनाडा के ऐसे रवैए से दोनों देशों के रिश्ते और कितने खराब होंगे। जानकारों का मनना है कि कनाडा में सत्ता परिवर्तन ही अब दोनों देशों के संबंधों को सुधार सकता है क्योंकि जस्टिन ट्रुडो अपने राजनीतिक फायदों के लिए खालिस्तानी तत्वों को हवा दे रहे हैं।
मीडिया रिपोट्स के मुताबिक अमेरिकी अखबार 'वाशिंगटन पोस्ट' ने 14 अक्टूबर को एक रिपोर्ट छापी थी। इसमें सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कनाडा में सिख अलगाववादियों के खिलाफ अभियान के ऑर्डर दिए थे। बता दें इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने का आरोप लगाया था।
मीडिया रिपोट्स के मुताबिक मंगलवार को कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी को दिए एक सवाल के जवाब में कहा कि उन्होंने ही वाशिंगटन पोस्ट के एक पत्रकार निज्जर की हत्या के पीछे भारत के गृह मंत्री अमित शाह का नाम बताया था। वहीं भारत ने कनाडा के इन आरोपों को निराधार बताया।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कनाडाई उप विदेश मंत्री के इस बयान की तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, हाल ही हमने कनाडा उच्चायोग के प्रतिनिधि को समन किया। ओटावा को यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि भारत सरकार ने कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन द्वारा समिति के सामने केंद्रीय गृह मंत्री के खिलाफ लगाए गए 'बेमतलब और निराधार' टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए खारिज कर दिया है।"
सवाल उठता है कि भारत-कनाडा संबंध और कितना मुश्किल दौर देखेंगे और दोनों के बीच तनाव कैसे कम हो सकता है? राजनीतिक मामलों के जानकार अरविंद जयतिलक कहते हैं, “कनाडा में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी अच्छा खासा वोट बैंक रखती है। एनडीपी के वोटर्स में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो खालिस्तान को समर्थन देते हैं। कनाडा में 2021 में आम चुनाव हुए थे। इन चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। वहीं इस चुनाव में एनडीपी पार्टी ने 25 सीटों पर जीत हासिल कर किंगमेकर की भूमिका में रही। जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी चुनावों में बहुमत से 14 सीटें दूर रह गई थी। इसकी वजह से मार्च 2022 में इन दोनों दलों के बीच एक समझौता हुआ था। इसे 'सप्लाई एंड कॉन्फिडेंस' के नाम से जाता है। इस समझौते के तहत एनडीपी ने ट्रूडो से वादा किया था कि अविश्वास की स्थिति में वह उनकी सरकार को समर्थन देंगे।”
जयतिलक आगे कहते हैं, “हालांकि जगमीत सिंह ने भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ने के दौरान ट्रूडो की पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव में बाहरी समर्थन दे दिया। यही वजह है कि ट्रूडो खालिस्तानियों को खुश करके अपनी सरकार बचना चाहते हैं और इसके लिए भारत से रिश्ते खराब कर रहे हैं।”
जयतिलक ने जस्टिन ट्रूडो की पार्टी और उनके पिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया, “ऐसा नहीं है कि जस्टिन ट्रूडो यह अभी कर रहे हैं, उनकी पार्टी और उनके पिता और कनाडा के पूर्व पीएम पियरे ट्रूडो का भी इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है। वह भी खालिस्तानियों के वोट बैंक और खालिस्तानी पार्टी के समर्थन के लिए भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को खराब करने में पीछे नहीं रहे। 1985 में भारत के कनिष्क विमान धमाके के आरोपी खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार को कनाडा ने पनाह दी। इस विमान हमले में 329 लोगों की मौत हो गई थी। भारत ने इस हमले के आरोपी खालिस्तानी तलविंदर के प्रत्यर्पण की मांग की थी, तब कनाडा ने भारत की इस मांग को ठुकरा दिया था।”
जयतिलक ने कहा, “उस समय कनाडा के प्रधानमंत्री पियरे इलियट टूडो ही थे जो मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पिता थे। जस्टिन ट्रूडो इन दिनों अपने पिता के नक्शेकदम पर ही चलते हुए नजर आ रहे हैं।” वह आगे कहते हैं कि जब तक जस्टिन ट्रूडो सरकार में हैं तब तक भारत और कनाडा के रिश्ते सुधरते हुए नजर नहीं आते। हां 2025 में कनाडा में आम चुनाव होने हैं। ट्रूडो की लोकप्रियता में जबरदस्त कमी भी आई है। चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता है तो भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार आएगा।”