मुंबई: साइलेंट किलर के नाम से मशहूर INS करंज पनडुब्बी आज नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो गई. ये पनडुब्बी बिना किसी आवाज के दु्श्मन को उसके इलाके में घुसकर तबाह कर देती है. नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी कमान के मुख्यालय में सैन्य परंपरा के तहत करंज को जंगी बेड़े में शामिल किया गया. फ्रांस की मदद से आईएनएस करंज को मझगांव डॉकयार्ड (एमडीएल) ने तैयार किया है.
इससे पहले स्कॉर्पिन क्लास की कलवरी और खंडेरी भी जंगी बेड़े में शामिल हो गई हैं. जबकि बाकी चौथी पनडुब्बी के समुद्री-ट्रायल चल रहे हैं. पांचवी पनडुब्बी वागिर को भी समंदर में लॉन्च कर दिया गया है. जैसे जैसे भारतीय सीमाओं की सुरक्षा को लेकर खतरा बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे अब इस सुरक्षा व्यवस्था को अभेद्य, अखंड बनाने की तैयारी भी की जा रही है.
INS करंज कलावरी क्लास की तीसरी सबमरीन है. ये पनडुब्बी 221 फुट लंबी, 40 फुट ऊंची, गहराई 19 फुट, 1565 टन वजनी है. इसमें मशीनरी सेट अप इस तरह किया गया है की इसमें लगभग 11 किलोमीटर लंबी पाइप फिटिंग है. लगभग 60 किलोमीटर की केबल फिटिंग की गई है. स्पेशल स्टील से बनी सबमरीन में हाई टेंसाइल स्ट्रेंथ है जो पानी के अधिक गहराई में जाकर काम करने की क्षमता रखती है.
करंज पनडुब्बी45-50 दिन तक पानी में रह सकती है. स्टील्थ टेक्नोलॉजी से यह रडार की पकड़ में नहीं आता. किसी भी मौसम में कार्य करने में सक्षम है. आईएनएस करंज के भीतर 360 बैटरी सेल्स है. प्रत्येक बैटरी सेल्स का वजन 750 किलो के करीब है. इसके भीतर दो 1250 केडब्ल्यू डीजल इंजन है. आईएनएस करंज 45-50 दिनों के सफर पर जा सकता है. इन्ही बैटरियों के दम पर आईएनएस करंज 6500 नॉटिकल माइल्स यानी करीब 12000 किमी का रास्ता तय करना सकता है.
ये सबमरीन 350 मीटर तक कि गहरायी में भी जाकर दुश्मन का पता लगाती है. इसके टॉप स्पीड की बात करे तो ये 22 नोट्स है. इस सबमरीन को साइलेंट किलर भी कहा जा सकता इसके भीतर एडवांस वेपन है, जो युद्ध जैसे समय में आसानी से दुश्मनों के छक्के छुड़ा सकता है. जैसे सबसे ज़रूरी इसके पीछे के हिस्से में magnetised propulsion मोटर जिसकी तकनीक को फ्रांस से लिया गया है,इसकी वजह से इसके अंदर से आने वाली आवाज़ को बाहर नहीं आने दिया जाता है. इससे दुश्मन के खोजी हवाई जहाज हो या सबमरीन या वॉर वेसल्स को इसकी जानकारी ठीक से नही मिल पाती है, इससे पकड़ में आये बिना हमला करना उचित होता है.
आईएनएस करंज दो पेरिस्कोप से लैस है. आईएनएस करंज के ऊपर लगाए गए हथियारों की बात की जाए तो इस पर 6 टॉरपीडो ट्यूब्स बनाई गयी है, जिनसे टोरपीडोस को फायर किया जाता है. इसके अलावा इसमे एक वक्त में या तो अधिकतम 12 तोरपीडोस आ सकते है या फिर एन्टी शिप मिसाइल SM39, इसके साथ ही माइंस भी ये सबमरीन बिछा सकती है. कौन कितनी संख्या में रखा जाएगा सबमरीन में, ये इस बात पर निर्भर करता है कि वो कौन से मिशन पर जाने वाला है. सबमरीन में लगे हथियार और सेंसर हाई टेक्नोलॉजी कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम से जुड़े है.
सबमरीन में अन्य नोसेना के युद्धपोत से संचार करने की सभी सुविधाए मौजूद है .यह पनडुब्बी हर तरह के वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर और इंटेलिजेंस को इकट्ठा करने जैसे कामों को भी बखूबी अंजाम दे सकती है. इस सबमरीन पर करीब 40 लोगों का क्रू एक साथ काम कर सकता है जिनमे से 8 से 9 अफसर होते है. सबमरीन में जगह कम होने के कारण कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है. सबमरीन में किचन को गैली कहा जाता है. यहां खाना बनाने में भी काफी सावधानी बरतनी पड़ती है. खाना बनाते वक्त यहां छौंका नहीं लगा सकते, क्यूंकि धुएं को बाहर जाने का रास्ता नहीं मिल पाता.
इसके अलावा जवानों के सोने के लिए अलग अलग कंपार्टमेंट होते है. 3-3 घंटे की ड्यूटी के बाद जवान, 6 घंटे का ब्रेक लेते है. जहां तक हो सके पानी का इस्तेमाल कम किया जाता है. सबमरीन पर हर डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी कुछ खास लोगो पर होती है. जैसे अगर टॉरपीडो को फायर करना है तो उसके लिए खास तौर पर एक शख्स होता है ,अगर टॉरपीडो फायर करने से पहले उसके लिए कम्युनिकेशन के लिए एक खास शख्स जिम्मेदार होता है, कॉम्बैट के लिए एक अलग टीम होती है, इसी तर्ज पर मोटर और टेक्निकल चीज़ों के लिए अलग अलग शख्स होते है.
भारतीय नेवी की परंपरा रही है कि नेवी से रिटायर हो चुके युद्धपोत, सबमरीन के नाम से ही नए सबमरीन और युद्धपोत के नाम रखे जाते हैं. आईएनएस करंट 1969 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था और साल 2003 में सेवानिवृत्त किया गया. अब नए सबमरीन का नाम एनएस करंज हैं.