Hospice. धर्मशाला। राष्ट्रीय महत्त्व के प्रोजेक्टों के लिए विस्थापन अनिवार्य शर्त है। गगल एयरपोर्ट के विस्तारीकरण से भी सैकड़ों परिवार विस्थापित होने जा रहे हैं, लेकिन विस्थापन से पहले नया शहर न बनने से सैकड़ों लोग अब अपने जुगाड़ से प्राइवेट पार्टियों से महंगे दामों पर जमीनें खरीदने लगे हैं। यूं तो प्रशासन ने विस्थापित होने वाले 942 कुटुंबों के लिए आर एंड आर प्लान के तहत टांडा खोली, उपरेहड़, घुंडी, हार, चौंधा, बैंटलू, क्योड़ी व रनेड़ आदि में जमीन चिन्हित की है, लेकिन न्यू गगल अभी धरातल पर नहीं उतर पाया है। मसलन नया शहर कहां बनना है, इसमें मार्केट, ट्रांसपोर्ट नगर व रिहायश पर काम होना बाकी है। ऐसे में लोग अपने स्तर पर जमीनें खरीदने लगे हैं। यही कारण है कि शाहपुर, धर्मशाला व कांगड़ा के कई इलाकों में धड़ाधड़ प्लाटिंग के बाद जमीनें महंगे दामों पर बिक रही हैं। शाहपुर में रैत व 45 मील से लेकर बंडी, धर्मशाला में गगल-सकोह व वाया दाड़ी रोड से सटे क्षेत्रों में कई जगह प्लाटिंग का काम चल रहा है।
इसी तरह कांगड़ा व नगरोटा बगवां के आसपास भी नई प्लाटिंग हो रही है। अकेले गगल-सकोह रोड पर करीब छह स्थानों पर प्लाटिंग का कार्य चल रहा है। आईटी पार्क के निकट मांझी खड्ड पर अस्थायी रास्ता बनाते हुए किनारों पर डंगे लगाकर जमीन डिवेल्प की जा रही है। मुआवजे की प्रक्रिया शुरू होने के बाद जमीनों के दामों में बहुत इजाफा हुआ है, लेकिन इसमें डर इस बात है कि सेल-परचेज में कई विस्थापितों का अनुभवहीन होना उन्हें संकट में डाल सकता है। अभी मुआवजा जुगेहड़ व रछियालू आदि क्षेत्रों में बंटा है। आने वाले दिनों में अगर पूरे प्रभावितों में मुआवजा बंटता है, तो जमीनों की खरीद फरोख्त और बढ़ सकती है। शिक्षाविद व पौंग विस्थापित पीसी विश्वकर्मा को याद है कि उन्हें प्रति कनाल जमीन का 400 रुपए मुआवजा मिला था। उस समय बसाव की व्यवस्था न हो पाने से कई विस्थापितों को दो हजार कनाल तक जमीन लेनी पड़ी थी। वह कहते हैं कि विस्थापन से पहले लोगों को नए क्षेत्रों में स्थापित करने का इंतजाम होना चाहिए।