रणदीप सुरजेवाला का इंटरव्यू, कहा- स्वायत्त चुनाव आयोग की अनुपस्थिति में प्रजातंत्र कैेसे जिंदा रह पाएगा
नई दिल्ली: केंद्र सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ा एक विधेयक राज्यसभा में लेकर आई है। इस विधेयक को भारी हंगामे के बीच राज्यसभा में पेश किया गया है।
विपक्ष का मानना है कि यदि यह विधेयक कानून बनता है तो इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता प्रभावित होगी। कांग्रेस महासचिव व राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि चुनाव आयोग का निष्पक्ष रहना लोकतंत्र के लिए बेहद आवश्यक है। सुरजेवाला के मुताबिक इस विधेयक के कानून बनने से चुनाव आयोग स्वायत्त या स्वतंत्र होने की बजाए सरकारी चुनाव आयोग में तब्दील हो जाएगा। पेश है रणदीप सिंह सुरजेवाला से बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश।
प्रश्न - राज्यसभा में पेश किए गए मुख्य चुनाव आयुक्त व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधित बिल को लेकर आपका क्या रूख है?
सुरजेवाला - प्रजातंत्र के इतिहास में संसद में यह एक काला दिवस था। चुनाव आयोग हिंदुस्तान में निष्पक्ष और प्रजातांत्रिक चुनाव कराने वाली आखिरी स्वतंत्र संस्था है। प्रधानमंत्री मोदी उसे भी 'मोदी इलेक्शन कमीशन' बनाना चाहते हैं। इसके लिए राज्यसभा में चुपचाप तरीके से 'मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी विधेयक' लाया गया।
इसका निशाना बड़ा सीधा है, सुप्रीम कोर्ट की एक सविधान खंडपीठ ने साफ तौर पर कहा है चुनाव आयोग यदि निष्पक्ष नहीं होगा तो देश में प्रजातंत्र कायम नहीं रह सकता। इसलिए मुख्य चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए 3 व्यक्तियों का पैनल बनाया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता हों ताकि एक संतुलन रहे।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के उस निर्णय को निरस्त करने के लिए राज्यसभा में गैरकानूनी विधायक पेश किया गया।
प्रश्न - इस विधेयक को लेकर आपको क्या आपत्ति है, किन प्रावधानों का आप विरोध कर रहे हैं?
सुरजेवाला - हमारे तीन सीधे-सीधे विरोध हैं। पहला विरोध यह है कि इस कानून के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ के फैसले को निरस्त करने का घिनौना षड्यंत्र सरकार कर रही है।
दूसरा विरोध यह है कि इस कानून के बनने के बाद चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रह पाएगा, क्योंकि अब मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री स्वयं, उनके एक मंत्री व विपक्ष के नेता करेंगे। यानी कि दो लोग सरकार के होंगे और एक विपक्ष का होगा और पूरे बहुमत से वह जिसे मर्जी चाहे, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त बना सकेंगे।
हमारा तीसरा विरोध यह है कि हिंदुस्तान के संविधान में सेग्रीगेशन ऑफ पावर है यानी कि न्यायपालिका और कार्यपालिका एक दूसरे की ताकत नहीं छीन सकते। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के द्वारा जो एक संतुलन बनाया गया था, इस कानून से उसे खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
प्रश्न - इस विधेयक के कानून बनने से चुनाव आयोग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
सुरजेवाला - इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता व स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी और चुनाव आयोग सरकार का पिट्ठू भर बनकर रह जाएगा। चुनाव आयोग में उनके चहेते लोगों की नियुक्तियां होंगी। यह विधयक व कानून सरासर गैरकानूनी है और गैरकानूनी तरीके से शोरगुल में इसे राज्यसभा में इसलिए पेश किया गया ताकि विपक्ष और देश की आवाज न सुनी जा सके।
प्रश्न - विधेयक में प्रस्तावित प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल से क्या आपत्ति है?
सुरजेवाला - इससे सरकार का खुद का मुख्य चुनाव आयुक्त होगा, खुद के चुनाव आयुक्त होंगे। खुद का इलेक्शन कमीशन होगा, खुद का नतीजा होगा। न प्रजातंत्र की जरूरत, न सुप्रीम कोर्ट की जरूरत, न संसद की जरूरत, न बांस रहेगा न बासुरी बजेगी। प्रजातंत्र को बंधक बनाने का यह कानून है क्योंकि जब चुनाव आयोग ही नहीं रहेगा चुनाव आयोग की स्वायत्तता ही नहीं रहेगी तो फिर प्रजातंत्र जिंदा कैसे रह पाएगा।