वेतन और पेंशन के बकाया बिल बढ़ने से ओपीएस के कारण बढ़ स्कती है हिमाचल की परेशानी
विशाल गुलाटी
शिमला (आईएएनएस)| वेतन और पेंशन पर होने वाले खर्च के कारण छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पर पहले से ही काफी वित्तीय दबाव है। राज्य सरकार काफी हद तक बाजार से ली गई उधारी पर निर्भर है। उस पर ऋण का बोझ 75,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है। इसके अलावा कर्मचारियों और पेंशनभोगियों का बकाया भी 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने के लिए सरकार के पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं।
कर्ज के पहाड़ के बावजूद पांच महीने से भी कम पुरानी कांग्रेस सरकार ने 1.36 लाख सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस और सभी महिलाओं के लिए 1,500 रुपये के मासिक भत्ते के प्रावधान को लागू किया है। पहले चरण में 22.4 लाख लाभुक महिलाओं में से 2.5 लाख को पेंशन देने की शुरुआत की गई है।
दिसंबर 2022 में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत का स्वाद चखने के एक महीने बाद कांग्रेस सरकार की कैबिनेट ने अपनी पहली बैठक में पार्टी शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तर्ज परएनपीएस के तहत कवर सभी कर्मचारियों को ओपीएस प्रदान करने के निर्णय के साथ एक महत्वपूर्ण चुनावी वादा पूरा किया। ओपीएस भविष्य के कर्मचारियों के लिए भी लागू है।
ओपीएस लागू करने से मौजूदा वित्त वर्ष में राज्य सरकार को 1,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त करने होंगे। ओपीएस में सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम मूल वेतन और सेवा की अवधि के आधार पर पेंशन मिलता है।
नीति के अनुसार, ओपीएस लाभार्थियों को जीपीएफ के दायरे में भी लाया जाएगा। इसके अलावा एनपीएस के तहत आने वाले 15 मई 2003 के बाद सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी ओपीएस में लाया जाएगा।
राज्य सरकार ने कहा है कि 1 अप्रैल से कर्मचारियों के वेतन से एनपीएस का पैसा नहीं काटा जाएगा। यदि कोई कर्मचारी एनपीएस के तहत बने रहना चाहता है तो वह इस संबंध में सरकार को अपनी सहमति दे सकता है।
कैबिनेट ने 3 मार्च को अपनी बैठक में 1 अप्रैल से ओपीएस को लागू करने का फैसला किया और एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से राज्य के एनपीएस के तहत काटे गए 8,000 करोड़ रुपये वापस करने को कहा।
हालांकि, केंद्र सरकार ने पहले ही घोषणा कर दी है कि गैर-भाजपा राज्य जो ओपीएस को फिर से शुरू करना चाहते हैं, उनके द्वारा मांगे गए संचित एनपीएस कोष की वापसी के लिए पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।
हालांकि केंद्र सरकार ने खुद अपना रुख नरम करते हुए 4 मई को एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी कर कर्मचारियों से कहा है कि वे 60 दिन के अंदर यह बताएं कि वे ओपीएस में जाना चाहते हैं या एनपीएस में रहना चाहते हैं।
एक बार विकल्प देने के बाद उसे बदला नहीं जा सकेगा। यदि किसी कर्मचारी द्वारा 60 दिनों के भीतर विकल्प का प्रयोग नहीं किया जाता है तो यह माना जाएगा कि कर्मचारी एनपीएस के तहत बने रहना चाहता है।
ओपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पूरी पेंशन राशि का भुगतान सरकार करती है और इस मद में सेवाकाल के दौरान उनके वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 2004 में ओपीएस को बंद कर दिया और एनपीएस की शुरुआत की। इस पेंशन योजना के तहत, प्रत्येक कर्मचारी सेवाकाल में हर महीने एक निश्चित राशि का योगदान कर सकता है और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन प्राप्त कर सकता है।
ओपीएस बहाल करने पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने मीडिया से कहा था, हम ओपीएस को वोट के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा देने और हिमाचल के विकास का इतिहास लिखने वाले कर्मचारियों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए बहाल कर रहे हैं।
भाजपा के अंदरूनी सूत्र आईएएनएस से बातचीत में निजी तौर पर स्वीकार किया कि ओपीएस एक बड़ा गेम-चेंजर साबित हुआ और कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने में सक्षम हुआ।
भाजपा से 4 मई को प्रतिष्ठित शिमला नगर निगम (एसएमसी) की सत्ता छीनने के बाद कांग्रेस में काफी उत्साह है। चुनाव में भाजपा को दहाई अंक तक पहुंचने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। सुक्खू ने कहा कि कांग्रेस ने भाजपा की विचारधारा को हरा दिया है। उन्होंने कहा, लोगों ने हमारे चार महीने के शासन में विश्वास जताया है, हालांकि हमने कुछ कड़े फैसले लिए हैं।
व्यापक सांगठनिक अनुभव वाले सुक्खू ने आईएएनएस से कहा कि नगर निकाय चुनाव के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ेगा। यह देखते हुए इन परिणामों का महत्व बढ़ जाता है कि भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और वरिष्ठ नेता अनुराग ठाकुर भी हिमाचल से हैं।
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में ओपीएस का वादा नहीं करने के पार्टी के फैसले को सही ठहराते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल ने कहा कि राज्य की अनिश्चित वित्तीय स्थिति के कारण इसकी घोषणा नहीं की गई।
कर्मचारियों के ऋण और वेतन के पुनर्भुगतान में खर्च होने वाले धन के बड़े हिस्से और राज्य की गंभीर वित्तीय स्थिति को स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार को विरासत में भारी कर्ज मिला है और सरकारी कर्मचारियों के बकाया वेतन, पेंशन और महंगाई भत्ते के कारण पिछली सरकार के समय की लगभग 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त देनदारी है।
उन्होंने कहा, पिछली सरकार की नीतियों के कारण हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति पर 92,833 रुपये का कर्ज हो गया है।
बजट 2023-24 के अनुसार, सरकार द्वारा खर्च किए गए प्रत्येक 100 रुपये में से 26 रुपये वेतन पर, 16 रुपये पेंशन पर, 10 रुपये ब्याज भुगतान पर, 10 रुपये ऋण अदायगी पर, स्वायत्त संस्थानों को अनुदान पर 9 रुपये तथा शेष 29 रुपये पूंजीगत कार्यों सहित अन्य गतिविधियों पर खर्च किए जाएंगे।
एक वरिष्ठ नौकरशाह ने आईएएनएस से कहा, हिमाचल पहले से ही वेतन, पेंशन और ऋण चुकाने के लिए बजट का 60 प्रतिशत से अधिक खर्च कर रहा है। पुरानी पेंशन योजना लंबे समय तक चलने वाली नहीं है और इससे राज्य दिवालिया हो जाएगा।
उन्होंने कहा, सरकार को अपने अन्य प्रमुख चुनावी वादों से चूक सकती है।
हिमाचल प्रदेश के आर्थिक विकास में पर्यटन, बागवानी और जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख योगदान है।