हाईकोर्ट का फैसला: केरल में मुस्लिम महिलाओं को अदालत से बाहर भी तलाक का अधिकार

केरल उच्च न्यायालय

Update: 2021-04-14 16:01 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: केरल उच्च न्यायालय ने अपने करीब 50 साल पुराने फैसले को पलटते हुए अदालती प्रक्रिया से इतर तलाक देने के मुसलमान महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया है। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। बता दें कि इस संबंध में परिवार अदालतों में दायर विभिन्न याचिकाओं में राहत देने की मांग की गई थी।

पीठ ने फैसले में कहा कि मुसलमान महिलाओं की दुविधा, विशेष रूप से केरल राज्य में, समझी जा सकती है जो 'केसी मोईन बनाम नफीसा एवं अन्य' के मुकदमे में फैसले के बाद उन्हें हुई। इस फैसले में मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 समाप्त होने के मद्देनजर न्यायिक प्रक्रिया से इतर तलाक लेने के मुसलमान महिलाओं के अधिकार को नजरअंदाज कर दिया गया था।एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि किसी भी परिस्थिति में कानूनी प्रक्रिया से इतर एक मुस्लिम निकाह समाप्त नहीं हो सकता है। वहीं, न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुश्ताक और सीएस डियास की खंड पीठ ने इस्लामी कानून के तहत निकाह को समाप्त करने के विभिन्न तरीकों और शरिया कानून के तहत महिलाओं को मिले तलाक के अधिकार पर विस्तृत टिप्पणी की।
केसी मोइन मामले में घोषित कानून सही नहीं
निकाह समाप्त करने के इन तरीकों में तलाक-ए-तफविज, खुला, मुबारत और फस्ख शामिल हैं। खंड पीठ ने नौ अप्रैल के अपने फैसले में कहा, 'शरीयत कानून और मुस्लिम निकाह समाप्ति कानून के विश्लेषण के बाद हमारा विचार है कि मुस्लिम निकाह समाप्ति कानून मुसलमान महिलाओं को अदालत के हस्तक्षेप से इतर फश के जरिए तलाक लेने से रोकता है।'
अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'शरीयत कानून के प्रावधान दो में जिन सभी न्यायेतर तलाक के तरीकों का जिक्र है, वे सभी अब मुसलमान महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं। इसलिए हम मानते हैं कि केसी मोइन मामले में घोषित कानून, सही कानून नहीं है।' पीठ ने कहा कि पवित्र कुरान में भी पुरुषों और महिलाओं को तलाक देने के समान अधिकार की मान्यता दी गई है।
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