हाईकोर्ट ने पति को दिया झटका, मिर्गी पीड़ित पत्नी से छुड़ाना चाहता था पीछा
मांगा तलाक.
मुंबई: अगर साथी मिर्गी से जूझ रहा है, तो इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक का आधार नहीं माना जा सकता है। हाल ही में एक मामले में सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे ढेर सारे मेडिकल सबूत हैं, जो बताते हैं कि ऐसी कोई चिकित्सकीय स्थिति पति-पत्नी के साथ रहने में परेशानी पैदा नहीं करेगी।
मामले की सुनवाई कर रही बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने साल 2016 में फैमिली कोर्ट की तरफ से दिए गए फैसले को बरकरार रखा। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मीकि एस ए मेंजेस ने पति की तरफ से लगाए गए तमाम आरोपों को खारिज कर दिया। पति का कहना था कि पत्नी मिर्गी से पीड़ित है। साथ ही उसने इसे ठीक नहीं होने वाली बीमारी बताया और कहा कि मिर्गी के चलते पत्नी का मानसिक संतुलन हिल गया है।
पति के आरोप थे कि मिर्गी के चलते पत्नी का व्यवहार असामान्य हो गया है। उन्होंने कहा कि वह आत्महत्या की धमकी देती है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने दावों को नहीं माना। कोर्ट ने कहा, 'मिर्गी न ही ऐसी बीमारी है जो ठीक नहीं हो सकती और न ही मेंटल डिसॉर्डर या साइकेपैथिक डिसॉर्डर है।' उन्होंने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13(1)(iii) के तहत इसे आधार नहीं बनाया जा सकता।
खास बात है कि कोर्ट ने इस केस की सुनवाई के दौरान रघुनाथ गोपाल दफ्तरदार बनाम विजय रघुनाथ दफ्तरदार केस का सहारा लिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया कि दोनों केस एक जैसे नहीं हैं, लेकिन एक तर्क है जो लागू होता है। कोर्ट का कहना था कि ऐसे कई मेडिकल सबूत हैं, जो बताते हैं कि इस तरह की स्थिति पति-पत्नी के साथ रहने में बाधा नहीं बनेगी।
कोर्ट को जानकारी मिली की पत्नी का इलाज करने वाली न्यूरोलॉजिस्ट के मुताबिक, महिला को मिर्गी नहीं ब्रेन सीजर हुआ था। कोर्ट ने कहा, 'पेशे से न्यूरोलॉजिस्ट एक्सपर्ट की तरफ से दी गई एक और जानकारी के मुताबिक, मिर्गी ऐसी स्थिति है, जिससे जूझ रहा व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है...।'
सुनवाई के दौरान कोर्ट की तरफ से पति के उस तर्क को भी खारिज कर दिया गया कि पत्नी ने आत्महत्या के लिए पत्र लिखा था। कोर्ट को पता लगा कि पत्नी की तरफ से पेश सबूत में बताया गया है कि यह पत्र पति ने उससे लिखवाया था। साथ ही उसे घर से निकालने की भी धमकी दी थी।