नाबालिग लड़की की सहमति से यौन संबंध बनाने का मतलब यह नहीं है कि...अदालत ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

जानें पूरा मामला.

Update: 2024-03-21 04:01 GMT
रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि नाबालिग की सहमति से भी यौन संबंध बनाने वाले को दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता। नाबालिग लड़की की सहमति से यौन संबंध बनाने का मतलब यह नहीं है कि इस अपराध को नकार दिया जाए।
जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की अदालत ने इस संबंध में फैसला सुनाते हुए अपने आदेश में लिखा है कि विचारणीय बात यह है कि क्या पीड़ित की सहमति ने अपराध को नकार दिया है? बलात्कार के मामले में नाबालिग लड़की की सहमति कोई मायने नहीं रखती। घटना के समय (वर्ष 2005) जब बलात्कार किया गया, उस वक्त सहमति की उम्र 16 वर्ष या उससे अधिक थी। वर्ष 2013 में किए गए संशोधन के जरिए ही इसे बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया है।
दरअसल, खूंटी सिविल कोर्ट ने सचिंद्र सिंह को नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में 9 फरवरी 2021 को दोषी करार दिया गया था। सचिंद्र सिंह ने खूंटी सिविल कोर्ट के फैसले को लेकर क्रिमिनल अपील दाखिल कर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि उसने जबरन यौन संबंध स्थापित नहीं किया था, बल्कि नाबालिग की भी उसमें सहमति थी। इस कारण उस पर यौन शोषण का मामला नहीं चलाया जा सकता। अदालत को बताया गया कि पीड़िता ने अपना उम्र सही नहीं बताया है। इस संबंध में निचली अदालत में भी बात रखी गयी थी, लेकिन निचली अदालत ने इस मामले में उसके पक्ष पर गौर नहीं किया है। सभी तथ्यों पर विचार किए बिना ही आदेश दिया गया है। इसलिए निचली अदालत के आदेश को रद्द किया जाए और उसे मामले से बरी किया जाए।
सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि यह घटना पांच फरवरी 2005 को हुई थी। उस समय पीड़िता की उम्र 15 साल थी। गवाही के समय भी पीड़िता ने अपनी आयु 15 साल बतायी है। पीड़िता की मेडिकल जांच भी कराई गई थी। पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर ने रेडियोलॉजिस्ट के मंतव्य अनुसार, पीड़िता की उम्र 14-16 वर्ष आंकी है। यह साबित करने के लिए बचाव पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है कि घटना के समय पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से अधिक थी। बचाव पक्ष द्वारा दलील दी गई कि शारीरिक संबंध बनाने के दौरान नाबालिग की सहमति थी, इसलिए उस पर मामला नहीं चल सकता, यह कानून सम्मत नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता की सहमति आरोपी को उसके अपराध से मुक्त करने का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।
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