जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद ने प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए ये इस्तीफा दिया. लेकिन कांग्रेस के ही एक दूसरे नेता ने दावा कर दिया है कि गुलाम पार्टी से खुश नहीं हैं. उन्हें इस बात का दुख है कि कुछ जमीनी नेताओं को नजरअंदाज कर दिया गया है.
पहले तो उनकी तरफ से कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया, लेकिन बाद में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर उन्होंने वो इस्तीफा दिया. लेकिन जम्मू से कांग्रेस नेता अश्विनी हांडा ने अलग ही कहानी बयां कर दी है. उनके मुताबिक कांग्रेस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के लिए जिस प्रचार कमेटी का गठन किया है, उसमें जमीनी नेताओं को छोड़ दिया गया है. उनके साथ न्याय नहीं हुआ है. इस बारे में वे कहते हैं कि कांग्रेस द्वारा बनाई गई नई प्रचार कमेटी ने जमीनी नेताओं की आकांक्षाओं को नजरअंदाज कर दिया है. उनके साथ बड़ा अन्याय किया गया है. इसी वजह से गुलाम नबी आजाद ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वे भी इस नई कमेटी से संतुष्ट नहीं थे.
अब ये अपने आप में एक बड़ा बयान है. गुलाम नबी आजाद ने अगर पार्टी से नाराज होकर इस्तीफा दिया है, मतलब स्पष्ट है- अंदरखाने सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. वैसे भी गुलाम नबी आजाद के कुछ मुद्दों को लेकर पार्टी के साथ जो मतभेद चल रहे है, उसे देखते हुए अगर अश्विनी हांडा का ये दावा सही मान लिया जाए, तो ये कांग्रेस के अंदर बगावत के नए सुर बुलंद कर सकता है.
जानकारी के लिए बता दें कि मंगलवार को कांग्रेस ने अपने जम्मू-कश्मीर संगठन में बड़ा बदलाव किया था. संगठन को और ज्यादा मजबूत करने के लिए कई नई नियुक्तियां की गई थीं. पार्टी ने वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को अभियान समिति का अध्यक्ष और तारिक हामिद कर्रा उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. गुलाम नबी आजाद को राजनीतिक मामलों की समिति और समन्वय समिति का प्रमुख भी बनाया गया था. वहीं घोषणापत्र समिति का प्रमुख प्रो. सैफुद्दीन सोज और उपाध्यक्ष अधिवक्ता एमके भारद्वाज को बनाया गया था. प्रचार और प्रकाशन समिति का अध्यक्ष मूला राम नियुक्त हुए थे. लेकिन गुलाम नबी के इस्तीफे और उसके बाद शुरू हुई इस बयानबाजी ने घाटी में कांग्रेस की चुनौतियां और ज्यादा बढ़ा दी हैं.