जी20 की अध्यक्षता आत्ममंथन का समय, एनडीए सरकार के जनगणना में विफलता को उजागर करता है: कांग्रेस
नई दिल्ली: कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि जी20 के 18वें शिखर सम्मेलन की चक्रीय अध्यक्षता का क्षण विचार करने का समय है, यह ''एनडीए (नो डाटा अवेलेबल) सरकार की सबसे बड़ी विफलता'' को उजागर करता है क्योंकि वह जनगणना कराने में असफल रही है जिससे अनुमान के अनुसार 14 करोड़ नागरिक खाद्य सुरक्षा अधिकारों से वंचित हो गये हैं।
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुये कहा कि हर 10 साल पर होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन अब तक नहीं हो पाई है। जी20 के लगभग सभी देश कोविड-19 की चुनौतियों के बावजूद जनगणना कराने में सफल रहे। इंडोनेशिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में भी जनगणना का काम हुआ है। रमेश ने कहा, ''मोदी सरकार अक्षम है। वह देश का सबसे बड़ा सांख्यिकी कार्य कराने में असफल रही है जो 1951 से हमेशा समय पर हुआ है। यह देश के इतिहास में सबसे बड़ी विफलता है।'' उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जनगणना नहीं होने से लगभग 14 करोड़ लोग जनवितरण प्रणाली के तहत राशन पाने से वंचित हैं।
उन्होंने कहा, ''यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तह प्रदत्त मौलिक अधिकारों से उन्हें वंचित रखना है, जिसे संप्रग सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के जरिये लागू किया था। मोदी सरकार इसी एनएफएसए के माध्यम से कोविड-19 महामारी के दौरान बेहद गरीब लोगों तक राशन पहुंचाने में कामयाब रही थी।''
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि मोदी सरकार 2011 की जनगणना के आधार पर 81 करोड़ लोगों को एनएफएसए के तहत लाभ प्रदान करती है जबकि मौजूदा जनसंख्या अनुमान को देखते हुये 95 करोड़ लोग इसके लिए पात्र हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 में मोदी सरकार को सुधारात्मक कदम उठाते हुये जनसंख्या अनुमान के आधार पर कोटा बढ़ाने का आदेश दिया था। उन्होंने आरोप लगाया, ''इसके बावजूद कोई बदलाव नहीं किया गया। यह न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की अवमानना को दर्शाता है बल्कि देश के लोगों के संवैधानिक अधिकारों के प्रति उनकी अवहेलना को भी उजागर करता है।''
रमेश ने मोदी सरकार पर 2011 में संप्रग सरकार द्वारा कराई गई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना को दबाने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ''सरकार ने राज्य स्तर पर जातिजगणा कराने के बिहार सरकार के प्रयास का भी सुप्रीम कोर्ट में विेरोध किया है।'' उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी आबादी वाले ओबीसी की संख्या और श्रेणी के बारे में जाने बिना सभी भारतीयों के लिए विकास सुनिश्चित करना असंभव है। हम समानता में विश्वास करते हैं जिसके लिए जाति जनगणना अनिवार्य है।
उन्होंने बेरोजगारी पर नेशनल सैंपल सर्वे 2017-18 और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 के आंकड़े छुपाने का भी आरोप लगाया। पार्टी की मांगों को सामने रखते हुए रमेश ने कहा, "एनएफएसए के तहत 14 करोड़ भारतीयों को उनके मूल अधिकारों से वंचित करना बंद करें, और जनगणना होने तक लाभार्थी कोटा बढ़ाएं। एक अद्यतन राष्ट्रीय जाति जनगणना आयोजित करें, और राज्य स्तरीय जाति जनगणना प्रयासों का विरोध बंद करें। एनएसएस 2017-18 और 2022-23 सीईएस जैसे सरकार के लिए असुविधाजनक डेटा का दमन बंद करें, स्वास्थ्य संकेतकों में विफलताओं को छिपाने के लिए एनएफएचएस में हेरफेर करना बंद करें और भारत की ऐतिहासिक रूप से मजबूत सांख्यिकीय प्रणाली में विश्वास बहाल करें।''