लद्दाख समझौते पर चीन के साथ किसी भ्रम में नहीं है विदेश मंत्रालय

भारत और चीन के सैन्य कमांडर जल्द ही एक बार फिर बातचीत की मेज पर बैठेंगे।

Update: 2021-02-25 18:16 GMT

भारत और चीन के सैन्य कमांडर जल्द ही एक बार फिर बातचीत की मेज पर बैठेंगे। दोनों देशों का सीमा प्रबंधन कार्य समूह (डब्ल्यूएमसीसी) अपना काम कर रहा है। समझा जा रहा है कि जल्द ही इसके बाबत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के समकक्ष वांग यी के बीच में भी वार्ता के आसार है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने थोड़ी देर पहले अपने चीन के समकक्ष वांग यी से फोन पर चर्चा भी की।

चर्चा में आपसी संबंध और सौहार्दपूर्ण रिश्ते की बुनियाद मजबूत करने पर जोर रहा है। चीन के साथ संबंधों को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव दोनों बहुत संवेदनशील हैं, लेकिन अभी विदेश मंत्रालय कुछ खुलकर नहीं बोलना चाहता। दोनों देशों के बीच में कैलाश रेंज की चोटियों से भारतीय सैनिकों की वापसी तथा पैंगोंग त्सो लेकर, फिंगर एरिया में बनी सहमति पर भी काफी संयम बरत रहा है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव चीन के साथ मुद्दे के समाधान के बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा मंत्रालय द्वारा 12 फरवरी को जारी किए गए बयान का सहारा लेकर चुप हो जाते हैं। वह कहते हैं कि पैंगोंग क्षेत्र को लेकर बनी सहमति और दोनों देशों की सेनाओं के विसैन्यीकरण के 48 घंटे बाद 20 फरवरी को दोनों देशों के सैन्य कमांडर मिले हैं। बातचीत की प्रक्रिया चल रही है और इस बारे में समाधान आपसी सहमति के आधार पर होगा।

भारत के रुख में इस नरमी के माने क्या हैं?
भारत के रुख में एक नरमी के संकेत हैं। यह नरमी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान से साफ झलक रही है। उन्होंने कहा कि लद्दाख क्षेत्र में पूरी तरह से विसैन्यीकरण के लिए दोनों देशों में बातचीत की प्रक्रिया चल रही है। दोनों पक्ष सभी मुद्दों का समाधान आपसी सहमति के आधार पर करने पर सहमत हैं। जबकि इससे पहले भारत का चीन से साफ कहना था कि वह अप्रैल 2020 की स्थिति में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सीमा पर वापस ले जाए।

तब भारत की भाषा सख्त थी और भारत सरकार अपने क्षेत्र में घुस आए चीन के सैनिकों को अप्रैल 2020 के समय के तैनाती स्थल पर ले जाने के लिए कह रही थी। कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि आपसी सहमति का साफ अर्थ है कि चीन को फेस सेविंग देने के लिए कुछ हद तक भारत तैयार है। थल सेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने भी पैगोंग त्सो क्षेत्र में विसैन्यीकरण को लेकर बनी सहमति को इसी आधार पर दोनों देशों की जीत बताया है।

क्या एक और बफर जोन पर बनेगी बात?
क्या गोगरा, हॉटस्प्रिंग, डेपसांग के समाधान के लिए एक और बफर जोन के लिए तैयार रहना होगा? हालिया स्थिति को देखें तो संकेत कुछ इसी तरह के मिल रहे हैं। डेपसांग इलाके को चीन पैगोंग त्सो झील की तरह खाली करने को तैयार नहीं है। इस क्षेत्र को वह अपना बताता है। विदेश और रक्षा मंत्रालय की तरफ से भी डेपसांग में चीनी घुसपैठ को लेकर अभी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा रहा है।
यह भी साफ नहीं है कि चीन की सेना ने कब से डेपसांग क्षेत्र में घुसपैठ करके अपना अधिकार जमाया है। गोगरापोस्ट और हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में भी चीन के इसी तरह से दावे हैं। ऐसे में समझा जा रहा है कि यहां भी भारतीय क्षेत्र की जमीन पर एक बफर जोर के लिए तैयार रहना पड़ सकता है। विदेश मंत्रालय के संकेत से भी लग रहा है कि आगे का समझौता दोनों देशों की जीत होने की ही लाइन पर होगा।

चीन के साथ सांप मर जाए और लाठी न टूटे की रणनीति पर चल रहा है भारत
मुहावरे कूटनीति में बड़े काम के होते हैं। भारत-चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र का विवाद इससे अछूता नहीं है। कैलाश रेंज की चोटियों पर भारतीय सेना के कब्जे के बाद भारत ने चीन की परेशानी बढ़ा दी थी। इससे चीन की हेकड़ी ढीली करने में मदद मिली, लेकिन फरवरी 2021 में बनी सहमति और विसैन्यीकरण के बाद भारत ने कैलाश रेंज की चोटियों से सेना बुलाकर बार्गेनिंग पॉवर कम कर ली है।

वस्तुत: यह क्षेत्र भी भारत का हिस्सा था और 1962 की लड़ाई के में भारतीय सेना ने छोड़ दिया था। अब गोगरा पोस्ट, हॉट स्प्रिंग और डेपसांग में भारत के सामने चीन से अपना क्षेत्र पाने की चुनौती है। कूटनीति के जानकार पिछले साल एनएसए स्तर की बातचीत और इस साल बनी सहमति के आधार पर एक और बफर जोन की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं।
कूटनीतिज्ञों का कहना है कि बफर जोन को चीन अपना नहीं कह सकता। भारत के सैनिक भी इस क्षेत्र में गश्त नहीं कर सकते। दोनों देशों के सैनिकों के बीच में सीमा विवाद के हल तक यह बीच का सुरक्षित क्षेत्र बना रहेगा। इस तरह से भारत के पास यह कहने के लिए पर्याप्त तकनीकी अधार है कि उसने बिना एक इंच जमीन गंवाए चीन के सैनिकों को पुराने तैनाती वाले स्थल पर भेज दिया है। इस तरह से सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।



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