Factories के खिलाफ प्रतिनिधियों का पैदल मार्च

Update: 2024-07-04 11:14 GMT
Nahan. नाहन। औद्योगिक क्षेत्र में संचालित उद्योगों की मनमानी से तंग आकर कालाअंब और त्रिलोकपुर पंचायत के प्रतिनिधियों ने बुधवार को कालाअंब से डीसी आफिस नाहन कार्यालय तक पैदल मार्च कर विरोध दर्ज करवाया। प्रतिनिधिमंडल ने इस दौरान उपायुक्त को ज्ञापन सौंपकर औद्योगिक नगरी कालाअंब में उद्योगपतियों की मनमानी से पनप रही अव्यवस्थाओं को लेकर ठोस समाधान की मांग की है। वहीं चेताया है कि यदि दस दिनों के भीतर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो पंचायतवासी डीसी कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल पर बैठेंगे। प्रतिनिधिमंडल में शामिल दिनेश अग्रवाल, जिला परिषद सदस्य कालाअंब वार्ड पुष्पा देवी, हर्ष, नीरज, राहुल और अतुल इत्यादि ने बताया कि कालाअंब में स्थित लोहा, फार्मा, पेपर मिल उद्योगों से भारी मात्रा में निकलने वाला कचरा कालाअंब और त्रिलोकपुर पंचायत के नागरिकों के लिए भारी परेशानी का सबब बनी हुई है। उन्होंने बताया कि सडक़ों के किनारे ही उद्योगों का सामान लोड और अनलोड हो रहा है, जिसके चलते लोगों को सडक़ों से निकलना मुश्किल हो गया है। हालत यह है कि पंचायत के लोग घरों में बैठकर खाना तक बाहर नहीं खा सकते हैं। भारी धूल से हालात खराब हो चुके हैं। वहीं लोगों को कपड़े तक सुखाना भारी
धूल में मुश्किल हो चुका है।
प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि पंचायत द्वारा वर्ष 2004 में करवाए गए स्वास्थ्य सर्वे में उद्योगों के चलते कालाअंब व त्रिलोकपुर पंचायत के 90 प्रतिशत लोग चर्म रोग की चपेट में हैं। वहीं लोहा उद्योग, पेपर मिल उद्योग अपने कारखानों का सारा कचरा खुले में ढेर लगा रहे हैं। वहीं बरसातों के दौरान उद्योगों से निकलने वाला कचरा लोगों के लिए आफत बना हुआ है। प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने बताया कि कालाअंब स्थित पॉल्यूशन, जीआईसी इत्यादि तमाम महकमों को शिकायत के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों है। जबकि उद्योगपतियों से कई मर्तबा आग्रह किया जा चुका है, मगर उल्टे उन्हें ही इस मामलें में चेतावनी दी जाती है। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि त्रिलोकपुर में उत्तर भारत की प्रसिद्ध महामाया माता बालासुंदरी का सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है, मगर यहां पर पहुंचने के लिए सडक़ों की हालत किसी से छिपी नहीं है। उन्होंने बताया कि शक्तिपीठ स्थल की सडक़ को मिट्टी व चूना डालकर लीपापोती की जा रही है। प्रतिनिधिमंडल ने कहा है कि अब वह उपायुक्त सिरमौर के द्वार पहुंचे हैं। वहीं 10 दिनों के भीतर यदि ठोस समाधान नहीं हुआ तो मजबूरन भूख हड़ताल पर बैठने को मजबूर होना पड़ेगा।
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