कृषि कानून को लेकर वित्त मंत्री सीतारमण बोलीं- 'उनका MSP से कोई लेना-देना नहीं'
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन दो हफ्तों के बाद भी जारी है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन दो हफ्तों के बाद भी जारी है. सरकार लगातार यह बात कह रही है कि वो हर मुद्दे पर बातचीत को तैयार है लेकिन किसान संगठन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं. इस बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इंडिया टुडे के साथ कृषि कानूनों पर खुलकर बात की. चर्चा के दौरान वित्त मंत्री ने कृषि कानूनों का समर्थन किया और कहा कि इन कानूनों का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है.
कृषि कानूनों पर बात करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि मैं सबसे पहले तो यही कहना चाहूंगी कि जिन कृषि कानूनों की चर्चा हो रही है उनका एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है. एमएसपी को लेकर जो संदेह पैदा हो रहा है उसका कोई ठोस आधार नहीं है.
इंडिया टुडे और आजतक के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल से बातचीत के दौरान वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि पिछले 6 साल की मोदी सरकार को अगर आप अन्य किसी 6 साल की सरकार से तुलना करें तो देखेंगे कि कई आयामों में किसानों के हित में ही काम हुए हैं. उन्होंने आगे कहा कि एमएसपी कृषि लागत और उत्पादन समिति द्वारा हर फसल के लिए तय की जाती है. ये इतना कठिन प्रोसेस होता है कि इसमें कोई बदलाव करना मुश्किल होता है. सरकार ने हमेशा एमएसपी का सम्मान किया है.
सीतारमण ने कहा कि कई बार हम कई चीजों को एकसाथ जोड़ कर देखने लगते हैं, ऐसा ही कृषि कानूनों के साथ हो रहा है. हमने किसानों को मंडी के बाहर और अगर जरूरत पड़े तो राज्य के बाहर अपने फसल को बेचने का मौका दिया है. हमने राज्य के किसी अधिकार को क्रॉस नहीं किया है. एपीएमसी की व्यवस्था अभी भी है.
बिना चर्चा बिल पारित करने के विपक्ष के आरोप का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि फार्म बिल पर कई चरणों में चर्चा हुई है, यही नहीं कई माध्यमों से देश के किसानों से भी इस पर राय ली गई थी. बिल कई समितियों के पास भी गया. सदन में भी चर्चा हुई. अभी के हालात को देखें तो मैंने कृषि मंत्री तोमर और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की प्रेस कॉन्फ्रेंस को बहुत ही ध्यान से देखा. उन्होंने खंडवार यह बताने की कोशिश की कि वे किसानों के साथ चर्चा के लिए तैयार हैं. लेकिन तीनों कृषि कानूनों पर कोई खास सवाल नहीं खड़ा किया जा रहा है. विभिन्न तरीकों से जो भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं वो स्पष्ट नहीं हैं.
विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए वित्त मंत्री ने कहा, "अगर विपक्षी दल इस मुद्दे को उठा रहे हैं तो मैं समझ सकती हूं कि उन्हें इसका आइडिया नहीं है वो इसीलिए ऐसा कर रहे हैं. क्योंकि वो ये सब अपने खुद के मेनिफेस्टो में भी शामिल कर चुके हैं."
अपना हमला जारी रखते हुए सीतरमण ने आगे कहा, "एकतरफ आप जनता के बीच जाते हो और कहते हो कि आप हमें जिताओगे तो हम ये-ये करेंगे लेकिन जब आप नहीं जीतते और जीत कर आई सरकार जब वही सारे काम करती है तो आप उसे रिजेक्ट करते हो क्योंकि आपने उसे पास नहीं किया था. जबकि आपने उसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था, क्या आपको अपनी ही बात का आइडिया नहीं है. तो ऐसा लगता है कि इसमें ढेर सारा घालमेल है और बस केवल राजनीतिक फायदे के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है."
किसान आंदोलन पर वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने लगातार यह जताया कि वो किसान संगठनों के साथ बैठकर बातचीत के लिए तैयार है. ताजा संदेश अभी कृषि मंत्री ने जारी ही किया है कि जिस मुद्दे पर भी किसान बात करना चाहते हैं वो बात करने को तैयार हैं. सरकार ने चर्चा का विकल्प खोल रखा है. मैं चाहती हूं कि किसान आगे आएं और जो बातें उन्हें परेशान कर रही हैं उसे खुलकर रखें, सरकार उसे दूर करने की पूरी कोशिश करेगी. वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि तीनों कृषि कानून किसानों की मदद करने के लिए ही लाए गए हैं वो किसी भी तरह उनका नुकसान नहीं करने वाले.
सीतारमण ने आगे कहा कि सरकार की मंशा साफ है, दोनों सदन में चर्चा हुई है. मैं इस बात का खंडन करती हूं कि सरकार बात करने को तैयार नहीं है. बिल पास होने के बाद जिन किसानों को संशय था उनके साथ बैठकर बातचीत की गई. विपक्षी दल फिलहाल किसानों के साथ काफी सहानुभूति दिखा रहे हैं लेकिन मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि यही बातें फिर उन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में क्यों रखी थीं. क्या आपको इस बात ने उस समय हर्ट नहीं किया था. क्या ये पाखंड नहीं है. क्या आप किसानों के सामने घड़ियाली आंसू नहीं बहा रहे हैं. ये विपक्षियों का दोहरा चरित्र है.