जन्माष्टमी पर उत्सव, नंदोत्सव पर पालना में झूलेंगे ठाकुरजी, होंगे कई कार्यक्रम

Update: 2023-09-07 11:25 GMT
कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पर गुरुवार से अष्ट आयाम के दर्शन शुरू हो जाएंगे। प्रथम पीठ के युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा ने बताया कि कोरोना काल के दौरान अष्ट आयाम के दर्शन बंद हो गए थे। जिन्हें अब पुष्टिमार्गीय परंपरा के अनुसार फिर से शुरू किया जा रहा है। मिलन बावा ने बताया कि वैदिक परंपरा के अनुसार श्री मथुराधीश मंदिर पर जन्माष्टमी का पर्व गुरुवार को ही मनाया जाएगा। वहीं शुक्रवार को नंदोत्सव धूमधाम से मनाएंगे। जन्माष्टमी पर सुबह पांच बजे पंचामृत, 8 बजे श्रृंगार तिलक, 11 बजे राजभोग, शाम 6 बजे उत्थापन तथा रात 10 से 11.30 बजे तक जागरण के दर्शन होंगे। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर साक्षात पंचामृत कराया जाता है। जिसके दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। मिलन कुमार गोस्वामी ने बताया कि रात को 12 बजे से जन्म के दर्शन होंगे। इस दौरान थाल, घंटा, मंत्र आदि गुंजायमान होंगे। सभी सेवक ग्वाल बाल बनेंगे। हल्दी मिला हुआ दूध, दही उछाला जाएगा।
जानकारी देते हुए मिलन बावा ने बताया कि देश में वल्लभ संप्रदाय की सप्तपीठ में से प्रथम पीठ कोटा में श्री मथुराधीश मंदिर के रूप में मौजूद है। अगर काशी विश्वनाथ की तर्ज पर नंदग्राम के नाम से प्रसिद्ध कोटा के पाटनपोल को रिवर फ्रंट से जोड़ा जाए तो हाडोती में धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में दर्शनार्थी पहुंचते हैं। वे सभी प्रथम पीठ के दर्शन करने के लिए कोटा आना चाहते हैं, लेकिन आधारभूत ढांचा विकसित नहीं होने के कारण कोटा में पर्यटकों का अभाव रहता है। उन्होंने कहा कि श्री मथुराधीश मंदिर तकरीबन 550 साल पुराना है और यहां पर तकरीबन 350 साल से मथुराधीश प्रभु विराजमान हैं। इस प्राचीन मंदिर को बिना छेड़छाड़ किए हुए श्री बड़े मथुराधीश टेंपल बोर्ड सौंदर्यीकरण कराएगा। वहीं ठाकुर जी के उत्सव करने के लिए भव्य प्रांगण में ऑडिटोरियम बनाया जाएगा। श्री मथुराधीश मंदिर की रिवर फ्रंट से पैदल दूरी केवल 5 मिनट की है। मंदिर के पीछे का कॉरिडोर रिवर फ्रंट को टच करता है। यहां बृजेश्वर मंदिर पर पार्किंग बनाने की प्लानिंग चल रही है। यहीं पर श्री विट्ठलनाथ जी की पाठशाला है। जहां पर धर्मशाला का निर्माण कार्य कराया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अनंत सेन जी का भी प्राचीन स्वरूप मथुराधीशजी में ही विराजमान है।
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