हर साल यहां खेली जाती है 'जूता मार होली'... इस बार के लिए 30 थाना प्रभारी और 900 सिपाही की हुई मांग...जाने दिलचस्प बातें

Update: 2021-03-22 07:45 GMT

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शाहजहांपुर. जिस तरह मथुरा के बरसाना और नंदगांव की 'लट्ठमार होली' दुनिया भर में प्रसिद्ध है, उसी तरह शाहजहांपुर जिले में हर साल होली के दिन खेली जाने वाली 'जूता मार होली' की भी एक अलग पहचान है. इसकी तैयारी में पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से जुट गया है.

आयोजकों के मुताबिक इस बार 'लाट साहब' दिल्ली से आएंगे जबकि पिछली बार 'लाट साहब' रामपुर से लाए गए थे. होली के दिन भैंसा गाड़ी पर निकलने वाले जुलूस में 'लाट साहब' मुख्‍य आकर्षण होते हैं. अपर पुलिस महानिदेशक अविनाश चन्द ने बुधवार रात जिलाधिकारी तथा पुलिस अधीक्षक के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ 'लाट साहब' के जुलूस के मार्ग पर फ्लैग मार्च किया तथा अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए.
लाट साहब को जूसे से मारते हैं
स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. विकास खुराना ने 'पीटीआई भाषा' को बताया कि 'यहां होली वाले दिन 'लाट साहब' का जुलूस निकलता है और उन्हें भैंसा गाड़ी पर तख्त डालकर बिठाया जाता है. लाट साहब का जुलूस बड़े ही गाजे-बाजे के साथ निकलता है और इस दौरान लाट साहब की जय बोलते हुए होरियारे उन्हें जूतों से मारते हैं.'
डॉ खुराना ने बताया, ''शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक लड़ाई के चलते फर्रुखाबाद चले गए. वो 1729 में 21 साल की उम्र में वापस शाहजहांपुर आए. वह हिंदू-मुसलमानों के बड़े प्रिय थे और इसी बीच होली का त्योहार आ गया और तब दोनों समुदाय के लोग उनसे मिलने के लिए घर के बाहर खड़े हो गए. जब नवाब साहब बाहर आए तो लोगों ने होली खेली. बाद में उन्हें ऊंट पर बैठाकर शहर का एक चक्कर लगाया गया इसके बाद से यह परंपरा बन गई.''
उन्होंने बताया कि 1857 तक हिंदू- मुस्लिम दोनों मिलकर यहां होली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते थे तथा नवाब साहब को हाथी या फिर घोड़े पर बैठा के शहर में घुमाया जाता था परंतु हिंदू मुस्लिम का यह सौहार्द प्यार अंग्रेजों को रास नहीं आया. खुराना ने बताया, ''इसके बाद 1858 में बरेली के सैन्य शासक खान बहादुर खान के सैन्य कमांडर मरदान अली खान ने एक टुकड़ी के साथ शाहजहांपुर में हिंदुओं पर हमला कर दिया जिसमें तमाम हिंदू मुसलमान मारे गए थे. तब शहर में सांप्रदायिक तनाव हो गया क्योंकि विद्रोह के बाद अंग्रेजों की नीति थी फूट डालो और राज करो.''
क्यों पड़ा 'लाट साहब' नाम
डॉक्टर खुराना के मुताबिक 1947 के बाद नवाब साहब के जुलूस का नाम बदल कर प्रशासन ने 'लाट साहब' कर दिया और तब से यह लाट साहब के नाम से जाना जाने लगा. इसी दौरान अंग्रेज यहां से चले गए और फिर अंग्रेजों के प्रति लोगों में जो आक्रोश था उससे ही इस नवाब के जुलूस का रूप विकृत हो गया. लाट साहब का यह जुलूस चौक कोतवाली स्थित फूलमती देवी मंदिर से निकलता है और वहां लाट साहब मंदिर में मत्था टेकते हैं तथा पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद कोतवाली में सलामी लेते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर में पहुंचते हैं और पुन यह जुलूस चौक में ही आकर समाप्त हो जाता है.
पुलिस प्रशासन सख्त
पुलिस अधीक्षक एस आनंद ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि होली पर निकलने वाले छोटे तथा बड़े लाट साहब के जुलूस के लिए पुलिस प्रशासन की ओर से पांच पुलिस क्षेत्राधिकारी, 30 थाना प्रभारी तथा 150 उपनिरीक्षक, 900 सिपाही के अलावा दो कंपनी पीएसी तथा दो कंपनी आरपीएफ तथा दो ड्रोन कैमरों की मांग की गई है जो संभवत 25 मार्च तक यहां आ जाएंगे.
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