पुरानी पेंशन बहाली को लेकर फिर लामबंद हुए कर्मचारी

पुरानी पेंशन मामले पर मोदी गवर्नमेंट ने भी बनाई है समिति

Update: 2024-03-23 04:17 GMT

दिल्ली: वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में जोरशोर से उठाया गया पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा, इस बार कितना असर दिखाएगा? यह लाख टके का प्रश्न राजनीतिक दलों की नींद उड़ाए हुए हैं. वजह बीते विधानसभा चुनावों में सपा ने इसे मामला बनाया और बैलेट से पड़ने वाले ज्यादातर वोट उसकी झोली में गए. कर्मचारियों की नाराज़गी को भांपने के बाद ही हालांकि केंद्र की बीजेपी गवर्नमेंट ने पुरानी पेंशन बहाली के शोध के लिए कमेटी गठित कर दी है. इस बार लोकसभा चुनावों की आरंभ के साथ ही कर्मचारी संगठन एक बार फिर लामबंद हो रहे हैं. उनकी मांग आठवें वेतनमान के साथ ही पुरानी पेंशन की हर हाल में बहाली और आउट सोर्सिंग की विदाई पर टिकी हुई हैं. आइए जानें कि क्या यह मांग लोकसभा चुनावों में मामला बन असर डालेगी?

पुरानी पेंशन योजना की बहाली का बड़ा दबाव सियासी दलों पर नजर आ रहा है. इण्डिया गठंबधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी इसे प्रमुखता से उठाने की तैयारी में हैं. राहुल गांधी कई बार अपनी इन्साफ यात्रा में इस मामले को पुरजोर ढंग से उठा चुके हैं. वहीं बीजेपी भी इस मामले से अपने को दूर नहीं कर पा रही है. केंद्र गवर्नमेंट द्वारा इस पर विचार के लिए बनाई गई कमेटी जो सुझाव और प्रस्ताव मिले हैं, उस पर शोध करने में जुटी है. कुल मिलाकर यह चुनाव कर्मचारियों के नजरिये से आशा की एक किरण के रूप में है. पुरानी पेंशन की बहाली के लिए आंदोलित देशभर के कर्मचारियों की नजरें इस आम चुनाव में सियासी दलों के चुनावी घोषणापत्र पर लगी हैं. काबिलेगौर होगा कि सपा-कांग्रेस के साथ ही बीएसपी क्या अपने घोषणापत्र में इसे शामिल कर किस तरह की आशा बंधाते हैं और उनके दावे में कितना दम होगा.

कैसे गुजरेगा बुढ़ापे में सुरक्षित जीवन: देश के पांच करोड़ कर्मचारी सीधे-सीधे पुरानी पेंशन की बहाली, 8वें वेतन आयोग का गठन तथा आउटसोर्स कर्मियों की सेवा सुरक्षा की नियमावली पर सियासी दलों का रूझान जानने और भांपने में लगे हैं. कर्मचारी प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर गवर्नमेंट रिटायर होने के बाद उनके गुजर-बसर की क्या गारंटी देगी? बेरोजगारी के आलम में स्थितियां ऐसी भी हैं कि सैकड़ों कर्मचारियों के बच्चे मुनासिब रोजगार नहीं पा पाते।।. ऐसे में बच्चों का भरण-परोषण के अतिरिक्त स्वयं और पत्नी के इलाज आदि की व्यवस्था कहां से और कैसे होगा?

नई पेंशन इतनी ही अच्छी तो जनप्रतिनिधि क्यों नहीं ले रहे: सचिवालय संघ के अध्यक्ष अर्जुन देव भारती कहते हैंः नयी पेंशन योजना इतनी ही अच्छी है तो राजनेता इसे स्वयं क्यों नहीं अपनाते हैं? सांसदों के साथ ही विधायक, विधान परिषद सदस्य सभी के लिए अब भी पुरानी पेंशन योजना ही है. वहीं 30-35 वर्ष सेवा के बाद भी कर्मचारियों को इससे वंचित करने का काम किया गया है. पुरानी पेंशन बहाली हर हाल में होनी चाहिए.

पुरानी पेंशन मामले पर मोदी गवर्नमेंट ने भी बनाई है समिति: इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीपी मिश्रा कहते हैं कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान, केरल, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु की सरकारें अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दे रही हैं. लगातार आंदोलनों के बाद पिछले वर्ष केंद्र की नरेंद्र मोदी गवर्नमेंट ने इस मामले पर रिपोर्ट देने के लिए वेतन समिति का गठन किया. कर्मचारी नेताओं से पुरानी पेंशन के मामले पर समिति को कहा गया है कि एनपीएस के अनुसार सरकारें जो 14 प्रतिशत अंशदान कर रही है, उतने से ही सरकारें पुरानी पेंशन दे सकती हैं. इसे देने के लिए सरकारों पर कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं आएगा. इस मामले से सीधे-सीधे राष्ट्र के करीब पांच करोड़ कर्मचारी जुड़े हैं.

कर्मचारियों के वेतन से काटी गई राशि शेयर बाजार में लगाने का विरोध: राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी इस समय बीजेपी के नेता बन गए हैं. 2022 विधानसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी में थे. समाजवादी पार्टी के चुनावी एजेंडे में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल कराने में इनकी बड़ी किरदार थी. वह बताते हैं कि हिंदुस्तान गवर्नमेंट द्वारा पुरानी पेंशन बहाली के मामले पर बनाई गई कमेटी तेजी से अपना काम कर रही है. बीते 14 मार्च को इस कमेटी की अहम बैठक भी हुई है. उत्तर प्रदेश के पूर्व उप सीएम राज्यसभा सांसद डा। दिनेश शर्मा को भी इस कमेटी में अहम जिम्मेदारी मिली है. हरिकिशोर का बोलना है कि नयी पेंशन योजना में कर्मचारियों का पेंशन फंड शेयर बाजार में लगाए जाने का हर स्तर पर विरोध होगा.

2005 से लागू है नयी पेंशन योजना: उत्तर प्रदेश के नजरिये से देखें तो यहां 2005 में पुरानी पेंशन बंद कर दी गई थी. इसके बाद से सरकारी सेवा में आए सभी कर्मचारी नयी पेंशन योजना (एनपीए) से आच्छादित हैं. उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में करीब 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर सीधे-सीधे इस मामले से जुड़े हुए हैं. समाज में वैचारिक माहौल बनाने वाला यह शिक्षित वर्ग है. उत्तर प्रदेश के इन कार्मिकों और पेंशनरों के परिवार को भी जोड़ लें तो इनसे जुड़े वोटरों की तादाद ही करीब एक करोड़ हो जाएगी.

विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इसे बनाया था मुद्दा: यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने इस मामले पर बढ़त लेने का काम किया था, इसके बावजूद समाजवादी पार्टी को गवर्नमेंट बनाने लायक बहुमत नहीं मिला. यह बात दीगर है कि उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिला अथवा नहीं इसे उसके चुनाव परिणामों से देखा और समझा जा सकता है. समाजवादी पार्टी की सीटें 2017 में 47 थीं जबकि इसके मुकाबले 2022 में समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी रालोद और सुभाषपा की सीटें बढ़कर 125 तक पहुंच गई थीं. इसके पीछे बताया जा रहा है कि राज्य गवर्नमेंट के कर्मचारियों का एक धड़ा समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा था. हालांकि इस बढ़त के कई और जातीय समीकरण भी कारण थे.

विधायकों के वेतन-भत्ते में हुई है 926 प्रतिशत वृद्धि: पचास के दशक में प्रदेश में राज्यकर्मियों और इंटर के शिक्षकों का वेतन करीब 45 रुपये से 55 रुपये के बीच हुआ करता था जो आज बढ़कर 70 हजार के आसपास पहुंच चुका है. इस प्रकार से कर्मचारियों और शिक्षकों के वेतन में करीब 127 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी प्रकार से विधायकों को वेतन-भत्ते के रूप में 110 से 150 रुपये के आसपास मिलता था जो आज बढ़कर 1.25 लाख हो गया है. इसमें वेतन 25 हजार है. इस प्रकार से विधायकों के वेतन भत्ते में एक अनुमान के अनुसार करीब 926 गुना की वृद्धि हुई है.

2024-25 में पेंशन के मद में 86487 करोड़ का प्राविधान है: वित्तीय साल 2024-25 में प्रदेश गवर्नमेंट ने करीब 12 लाख पुरानी पेंशन योजना से आच्छादित पेंशनर्स, पारिवारिक पेंशनर्स के लिए बजट में करीब 86487 करोड़ रुपये का प्राविधान किया है. इस प्रकार हर महीने उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट पर पेंशन देने के लिए करीब 7207 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा है. उत्तर प्रदेश में करीब आठ से दस लाख कर्मचारी नयी पेंशन स्कीम (एनपीएस) से आच्छादित हैं. इन कर्मचारियों की वेतन से कटने वाली पेंशन की राशि से इतर 14 प्रतिशत का अंशदान राज्य गवर्नमेंट करती है. पुरानी पेंशन में पुरानी पेंशन प्रबंध बहाल होने पर इन कर्मचारियों के सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का भार हर महीने गवर्नमेंट में आएगा. पेंशनर्स की संख्या वर्ष 10 वर्ष बढ़ने पर बजट में इसका भार भी बढ़ता जाएगा.

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