चुनावी गठबंधन के कारण तमिलनाडु मे कांग्रेस पर हावी हो रही है क्षेत्री दल
तमिलनाडु के चुनावी गठबंधनों में राष्ट्रीय दलों पर क्षेत्रीय पार्टियां हावी हो रही हैं।
तमिलनाडु के चुनावी गठबंधनों में राष्ट्रीय दलों पर क्षेत्रीय पार्टियां हावी हो रही हैं। कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को 234 सीटों वाले विधानसभा चुनाव में केवल 20 से 25 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है।
जहां शशिकला का राजनीति से संन्यास लेने के बाद अन्नाद्रमुक गठबंधन में अधिक भ्रम नहीं है, वहीं द्रमुक गठबंधन में आधा दर्जन से अधिक सहयोगी दलों के बीच सीटों की मारामारी है।
चूंकि द्रमुक किसी भी दल को 10-12 से अधिक सीटों को देने को तैयार नहीं है। इसलिए आशंका है कि उनमें से कुछ दल उसका साथ छोड़कर कमल हासन की पार्टी मक्कल निधी मैयम के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बना सकते हैं।
द्रमुक ने अब तक कुछ दलों के साथ सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया है। इनमें एमएच जवाहिरउल्लाह की एमएमके को दो, कादर मोहिद्दीन की आईयूएएमएल को तीन और थो. थिरूमावलावन की वीसीके को छह सीटें दी गई हैं।
लेकिन अभी उसे कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम के अलावा एमडीएमके और केएमडीके के साथ भी सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप देना है। कांग्रेस का दावा 40 सीटों पर है जबकि द्रमुक उसे फिलहाल 20 सीटें देने का तैयार है।
इसलिए दूसरों को कम सीटें
द्रमुक सूत्रों के अनुसार पार्टी ने चुनाव के लिए खासी रकम खर्च कर तैयारी की है। यह गठबंधन दूसरे दलों की कम सफलता को देखते हुए उन्हें अधिक सीटें देने को तैयार नहीं है हालांकि द्रमुक पीएमके को 23 सीटें देने को राजी हो चुकी है।
फिर भी जगह नहीं... वहीं दूसरी ओर अन्नाद्रमुक गठबंधन में भले ही इतने अधिक सहयोगी दल न हों लेकिन अन्नाद्रमुक नेता भाजपा को केवल 15 सीटों की मांग की थी, लेकिन अब पार्टी के जी किशन रेड्डी एल मुरूगन और सीटी रवि जैसे नेताओं ने अपना दावा केवल 25 सीटों तक समेट लिया है।
खाता खोलना बाकी... दरअसल भाजपा अभी तक तमिलनाडु विधानसभा में अपना खाता नहीं खोल पाई है। 2011 के चुनाव में उसने 204 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 198 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इसलिए अन्नाद्रमुक उसे अधिक सीटें देने के पक्ष में नहीं है।