हिंदी भाषा को लेकर छिड़ी बहस, कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने की कड़ी निंदा

Update: 2022-04-09 03:09 GMT

दिल्ली। देश में एक बार फिर से हिंदी भाषा को लेकर बहस छिड़ गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए न कि स्थानीय भाषाओं के लिए. उन्होंने नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक के दौरान ये टिप्पणी की है. प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्री ने कमेटी को सुझाव दिया कि यह हिंदी शब्दकोश का संशोधन करने का समय है. उन्होंने यहां तक ​​कहा कि केंद्रीय कैबिनेट का 70 फीसदी एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री ने 9वीं क्लास तक के छात्र-छात्राओं के लिए हिंदी का प्रारंभिक ज्ञान और हिंदी शिक्षण परीक्षाओं पर अधिक ध्यान की जरुरत पर जोर दिया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि राजभाषा को देश की एकता का एक महत्वपूर्ण अंग बनाने का समय आ गया है. जब अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में संवाद करते हैं, तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जब तक हम अन्य स्थानीय भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करके हिंदी को लचीला नहीं बनाते हैं तब तक इसका प्रचार नहीं किया जा सकेगा. अमित शाह के बयानों को लेकर कांग्रेस, शिवसेना, टीएमसी समेत कई और विरोधी दलों ने आलोचना की है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ट्वीट किया, "एक कन्नड़ के रूप में, मैं गृहमंत्री अमित शाह की आधिकारिक भाषा और संचार के माध्यम पर टिप्पणी के लिए कड़ी निंदा करता हूं. हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हम इसे कभी नहीं होने देंगे."

कांग्रेस ने बीजेपी पर सास्कृतिक आतंकवाद का आरोप लगाया है. उधर, टीएमसी ने आलोचना करते हुए कहा है कि हम हिंदी का सम्मान करते हैं लेकिन हम हिंदी थोपने का विरोध करते हैं. अमित शाह को अपनी बातों पर पुनर्विचार करने की जरुरत है. वहीं शिवसेना ने आरोप लगाते हुए क्षेत्रीय भाषाओं के मूल्य को कम करने का एजेंडा बताया है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित ने स्थानीय भाषाओं के शब्दों को हिंदी शब्दकोष में अपनाने का सुझाव दिया है. हिंदी शब्दकोश को संशोधित और फिर से प्रकाशित किए जाने पर जोर दिया. शाह ने कहा कि पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में 22,000 हिंदी शिक्षकों की भर्ती की गई है और नौ आदिवासी समुदायों ने भी अपनी बोलियों की लिपियों को बदल दिया है. बहरहाल हिंदी भाषा के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच तलवारें खींच गई हैं.


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