देश के CJI एनवी रमण का बयान, अदालत के आदेशों की अनदेखी करने की बढ़ती सरकारी प्रवृत्ति चिंता का विषय
नई दिल्ली. भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमण (NV Ramana) ने रविवार को कहा कि यह धारणा एक मिथक है कि न्यायाधीश (Justice) ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं क्योंकि न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है. सीजेआई ने इस दौरान शासन की ओर से कोर्ट के आदेश न मानने और असम्मान करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि जब तक शासन और विधायिका के बीच तालमेल और सहयोग नहीं होगा, तब तक अकेले न्यायपालिका लोगों को न्याय दिलाना सुनिश्चित नहीं कर सकती.
सीजेआई एनवी रमण ने यह बात विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय में पांचवें श्री लवु वेंकेटवरलु धर्मार्थ व्याख्यान में 'भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां' विषय पर बोलते हुए कही. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने के लिए अधिदेशित किया गया है कि कार्यकारी निर्णय और विधायी कार्य संविधान के अनुरूप हों. सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक अदालतें सरकार द्वारा निर्णय की वैधता का परीक्षण करते समय संवैधानिक कसौटी पर कोई ढिलाई नहीं दिखा सकती हैं.
सीजेआई ने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़े हैं और कई बार अनुकूल फैसला नहीं आने पर कुछ पक्षकार प्रिंट और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं और ये हमले प्रायोजित और समकालिक प्रतीत होते हैं. उन्होंने कहा कि लोक अभियोजकों के संस्थान को स्वतंत्र करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है.
उन्होंने अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की कोशिश को लेकर केंद्र सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा की गई कुछ नामों की अनुशंसा को अब भी केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से उच्चतम न्यायालय भेजा जाना है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार मलिक मजहर मामले में तय समयसीमा का अनुपालन करेगी. सीजेआई ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों, खासतौर पर विशेष एजेंसियों को न्यायपालिका पर हो रहे दुर्भावनापूर्ण हमलों से निपटना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब तक न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करता और आदेश पारित नहीं करता, तब तक आमतौर पर अधिकारी जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं करते.
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, 'सरकार से उम्मीद की जाती है और उसका यह कर्तव्य है कि वह सुरक्षित माहौल बनाए ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी बिना भय के काम कर सकें.' उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारत में अभियोजक सरकार के नियंत्रण में रहते हैं. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वे स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करते. वे कमजोर और अनुपयोगी मामलों को अदालतों तक पहुंचने से रोकने के लिए कुछ नहीं करते. लोक अभियोजक अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना स्वत: ही जमानत अर्जी का विरोध करते हैं. वे सुनवाई के दौरान तथ्यों को दबाते हैं ताकि उसका लाभ आरोपी को मिले.
उन्होंने सुझाव दिया कि पूरी प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए काम करने की जरूरत है. लोक अभियोजकों को बाहरी प्रभाव से बचाने के लिए उनकी नियुक्ति के लिए स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जा सकता है. अन्य न्यायाधिकार क्षेत्रों का तुलानात्मक अध्ययन कर सबसे बेहतरीन तरीके को अंगीकार किया जाना चाहिए.