Shimla. शिमला। अनुबंध अवधि की वरिष्ठता और इंक्रीमेंट इत्यादि देने के लिए हाई कोर्ट की फैसले के खिलाफ हिमाचल सरकार की एक और कोशिश सुप्रीम कोर्ट में फेल हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को द स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम लेखराम केस में दायर याचिका को डिसमिस कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बहस का भी मौका नहीं दिया और राज्य सरकार के तर्क भी नहीं सुने। हालांकि सिविल सप्लाई विभाग ने सिर्फ इसी मामले के लिए सीनियर एडवोकेट अलग से कर रखा था। हिमाचल सरकार हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ 19 दिसंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट गई थी। इसके बाद केस दो फरवरी, 2025 को रजिस्टर हुआ और चार फरवरी को वेरिफाई हुआ। 10 फरवरी को यह सुनवाई के लिए जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ में लगा, लेकिन पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए इस याचिका को डिसमिस कर दिया गया। यह सीनियोरिटी का मामला था। लेखराम बनाम हिमाचल सरकार केस में हिमाचल हाई कोर्ट में विदाउट ब्रेक इन सर्विस कांट्रैक्ट की अवधि को वरिष्ठता और इंक्रीमेंट के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे।
हालांकि हिमाचल हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने तर्क रखा था कि इस कारण 20 साल की वरिष्ठता को ऊपर-नीचे करना पड़ेगा, जिससे और दिक्कतें आएंगी। इसके बाद राज्य सरकार ने 12 दिसंबर, 2003 की पिछली डेट से कर्मचारी सेवा शर्तें विधेयक विधानसभा में पारित कर इसका एक्ट बना लिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह सब नहीं सुना। इसी तरह के मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट में दूसरी बार हारी है। अब इस तरह की वित्तीय देनदारी से बचने के लिए सिर्फ विधानसभा से पारित कर बनाए गए नए कानून का ही सहारा है। हालांकि कर्मचारी इसे भी चुनौती देंगे और यह कानून लीगल स्क्रूटनी में जाएगा। अनुबंध अवधि की वरिष्ठता इन्क्रीमेंट और पेंशन के मामलों पर शिक्षा सचिव ने मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंगलवार को एक बैठक तय कर रखी है। इसमें सभी प्रशासनिक सचिवों, एडवोकेट जनरल और संबंधित विभागों के अधिकारियों को बुलाया गया है। राज्यपाल कर्मचारी विधेयक को अनुमति देकर इस कानून में बदल चुके हैं।